केरल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ BCI की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस
Amir Ahmad
3 Dec 2025 12:26 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) की उस अपील पर नोटिस जारी किया, जिसमें केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई, जिसमें कहा गया कि 6 मई, 2024 के बाद केरल राज्य बार काउंसिल के पास अनुशासनात्मक कार्यवाही जारी रखने का कोई अधिकार नहीं बचता, क्योंकि उसका कार्यकाल समाप्त हो चुका था। कानून के अनुसार विशेष समिति का गठन नहीं किया गया था।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्या बागची की पीठ ने इस मामले में नोटिस जारी करते हुए सुनवाई शुरू की।
यह मामला केरल हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन के वर्तमान अध्यक्ष यशवंत शेनॉय से जुड़ा है। पूर्व हाईकोर्ट जज मैरी जोसेफ ने बार काउंसिल को शिकायत में आरोप लगाया कि सुनवाई के दौरान शेनॉय ने उनसे ऊंची आवाज में बात की उनका अपमान किया और यह कहा कि वह उन्हें पद से हटवा देंगे। इस शिकायत के आधार पर केरल बार काउंसिल ने पेशेवर आचरण और शिष्टाचार से जुड़े नियमों के उल्लंघन को लेकर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की थी।
इस प्रकरण को लेकर मार्च, 2023 में हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए आपराधिक अवमानना की कार्यवाही भी शुरू की थी, जिसे बाद में खंडपीठ ने यह कहते हुए समाप्त किया कि अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की प्रक्रिया का सही तरीके से पालन नहीं किया गया।
शेनॉय ने बार काउंसिल द्वारा 14 फरवरी, 2023 को जारी कारण बताओ नोटिस को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उनका तर्क था कि यदि कार्यवाही किसी शिकायत पर आधारित थी तो इसे स्वतः संज्ञान के रूप में नहीं चलाया जा सकता था, इसके अलावा शिकायत भी निर्धारित प्रारूप में नहीं थी।
सिंगल जज ने उनकी याचिका खारिज करते हुए बार काउंसिल को कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी थी। हालांकि, 20 जून, 2025 को हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सिंगल बेंच के आदेश को पलटते हुए कारण बताओ नोटिस को रद्द कर दिया। अदालत ने माना कि यह कार्यवाही वास्तव में 9 फरवरी, 2023 की शिकायत पर आधारित थी, न कि स्वतः संज्ञान पर।
खंडपीठ ने यह भी कहा कि 6 मई, 2024 को बार काउंसिल का विस्तारित कार्यकाल समाप्त होने के बाद उसके पास अनुशासनात्मक अधिकार नहीं रहे। एडवोकेट एक्ट की धारा 8ए के तहत विशेष समिति का गठन आवश्यक था, जो नहीं किया गया। अदालत ने बार काउंसिल की उस दलील को भी खारिज कर दिया, जिसमें उसने 2015 के बार काउंसिल सत्यापन नियमों के नियम 32 का हवाला देते हुए कार्यवाही जारी रखने का अधिकार बताया। हाईकोर्ट के अनुसार यह नियम केवल प्रमाण पत्र सत्यापन प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति देता है, न कि अनुशासनात्मक कार्यवाही को।
साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि अवमानना की कार्यवाही पहले ही समाप्त कर दी गई। इसलिए उन्हीं आरोपों पर दोबारा कार्रवाई नहीं की जा सकती।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी, जिसे 17 अक्टूबर, 2025 को हाईकोर्ट ने खारिज किया। अदालत ने कहा कि पुनर्विचार के लिए आवश्यक कानूनी आधार मौजूद नहीं हैं और रिकॉर्ड पर कोई स्पष्ट त्रुटि नहीं दिखाई गई।
इसके बाद BCI ने हाईकोर्ट के मूल फैसले और पुनर्विचार याचिका खारिज किए जाने के आदेश, दोनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। अब इस मामले पर आगे की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होगी।

