आरक्षण के बाद छह महीने से लंबित फैसलों की जानकारी सार्वजनिक करें हाईकोर्ट्स: सुप्रीम कोर्ट का सुझाव

Amir Ahmad

12 Nov 2025 4:16 PM IST

  • आरक्षण के बाद छह महीने से लंबित फैसलों की जानकारी सार्वजनिक करें हाईकोर्ट्स: सुप्रीम कोर्ट का सुझाव

    न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रस्ताव रखा कि देश के सभी हाईकोर्ट्स अपनी वेबसाइट पर 'डैशबोर्ड' तैयार करें, जिसमें यह जानकारी उपलब्ध हो कि किन मामलों में फैसले सुरक्षित रखे गए, कब उच्चारित किए गए और कब वेबसाइट पर अपलोड हुए।

    जस्टिस सूर्या कांत और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन (या बगची मूल पाठ में बगची) की खंडपीठ ने कहा कि अब समय आ गया कि यह जानकारी सार्वजनिक की जाए कि किसी हाईकोर्ट में किस जज ने कितने निर्णय सुरक्षित रखे कितने निर्णय सुनाए और उन्हें वेबसाइट पर अपलोड करने में कितने दिन लगे।

    जस्टिस सूर्यकांत ने कहा,

    “हर किसी को यह पता होना चाहिए कि इस हाईकोर्ट में कितने फैसले सुरक्षित रखे गए कितने सुनाए गए और उनमें कितना समय लगा। यह जानकारी स्वतः सार्वजनिक होनी चाहिए। इससे न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही लोगों के सामने आएगी।"

    खंडपीठ झारखंड हाईकोर्ट में आरक्षित फैसलों के लंबित रहने के मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी। पहले दिए गए निर्देशों के तहत सभी हाईकोर्ट्स के रजिस्ट्रार जनरल्स को उन मामलों की रिपोर्ट पेश करनी थी, जिनमें 31 जनवरी, 2025 तक निर्णय आरक्षित था लेकिन 5 मई 2025 तक नहीं सुनाया गया।

    सुनवाई के दौरान कोर्ट ने बताया कि कुछ हाईकोर्ट्स ने अपनी रिपोर्ट दाखिल कर दी है, जबकि कुछ ने अब तक जवाब नहीं दिया। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने गैर-अनुपालक हाईकोर्ट्स को चेतावनी दी कि वे दो सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट दाखिल करें अन्यथा संबंधित रजिस्ट्रार जनरल्स को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना पड़ेगा।

    कोर्ट ने एमिकस क्यूरी फौज़िया शकील की रिपोर्ट पर विचार करते हुए सभी हाईकोर्ट्स को निर्देश दिया कि वह एक शपथपत्र दाखिल करें, जिसमें यह बताया जाए

    उनके यहां वर्तमान में आरक्षण, उच्चारण और अपलोडिंग की तिथि दर्ज करने की क्या व्यवस्था है?

    31 जनवरी, 2025 के बाद आरक्षित फैसलों का विवरण और उनके उच्चारण व अपलोडिंग की तारीखें और यह भी कि सार्वजनिक डोमेन में ऐसी जानकारी लाने में उन्हें कौन सी व्यावहारिक कठिनाइयाँ या संभावित नकारात्मक प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी हाईकोर्ट्स को यह प्रक्रिया चार सप्ताह के भीतर पूरी करनी होगी।

    सुनवाई के दौरान जस्टिस कांत ने यह भी टिप्पणी की कि कुछ हाईकोर्ट्स ने इस दिशा में उल्लेखनीय सुधार किया और पारदर्शिता के लिए अच्छे कदम उठाए।

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