अगर ट्रायल कोर्ट ने केस खारिज कर दिया, तब भी अपीलेट कोर्ट अंतरिम राहत दे सकता है: सुप्रीम कोर्ट
Amir Ahmad
25 Nov 2025 12:31 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि अगर वास्तविक केस खारिज भी हो गया हो तब भी अपीलेट कोर्ट अंतरिम राहत दे सकता है।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा,
"सिर्फ इसलिए कि ओरिजिनल केस खारिज हो गया, इसका मतलब यह नहीं है कि पेंडिंग अपील में अपीलेट कोर्ट मांगी गई सही राहत नहीं दे सकता।"
बेंच ने गुजरात हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें हाई कोर्ट ने इस आधार पर वादी की यथास्थिति ऑर्डर की रिक्वेस्ट को मना कर दिया था कि केस पहले ही खारिज हो चुका है।
कोर्ट ने कहा,
"अपील को ओरिजिनल केस का ही एक हिस्सा माना जाता है और अपीलेट कोर्ट के पास अपूरणीय नुकसान को रोकने और अपील के फाइनल निपटारे तक यथास्थिति बनाए रखने के लिए सही अंतरिम राहत देने की पूरी पावर है।"
कोर्ट ने आगे कहा कि अचल संपत्ति से जुड़े के केस में अगर मांगी गई राहत नहीं दी जाती और पीड़ित पार्टी अपील विशेष प्रदर्शन करती है तो अपीलेट कोर्ट के सामने यथास्थिति बनाए रखने के लिए दायर की गई एप्लीकेशन को सिर्फ इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि विशेष प्रदर्शन का केस खारिज हो गया था।"
अपीलकर्ता ने धोखाधड़ी के आरोपों पर सहमति डिक्री को चुनौती देते हुए दो सिविल केस दायर किए। एक केस मंजूर हो गया, जबकि दूसरा खारिज कर दिया गया। इसके बाद अपीलकर्ता ने डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में पहली अपील दायर की और केस वाली प्रॉपर्टी पर यथास्थिति बनाए रखने के लिए एक अंतरिम आदेश मांगा।
पहली अपीलेट कोर्ट ने यह कहते हुए मना कर दिया कि चूंकि केस खारिज हो गया, इसलिए लागू करने के लिए कोई डिक्री नहीं थी और इसलिए CPC के ऑर्डर XLI रूल 5 पर गलत तरीके से भरोसा करते हुए बड़े नुकसान का कोई सवाल ही नहीं था।
गुजरात हाईकोर्ट ने इस विचार की पुष्टि करते हुए कहा कि जिस वादी ने ट्रायल कोर्ट में पहले ही केस हार दिया हो, उसके पक्ष में कोई रोक नहीं लगाई जा सकती।
हाईकोर्ट के फैसले से दुखी होकर अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि अगर कोई वादी प्रथम दृष्टया मामला, अपूरणीय नुकसान, और सुविधा का संतुलन साबित करता है, तो ओरिजिनल केस खारिज होने पर भी अपीलेट कोर्ट यथास्थिति अंतरिम राहत देने की अपनी पावर से वंचित नहीं होता है।
कोर्ट ने कहा,
“पहला अपीलीय कोर्ट फैक्ट और कानून दोनों सवालों की दोबारा जांच कर सकता है और रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों को फिर से देख सकता है। इसकी शक्तियां ओरिजिनल कोर्ट जितनी ही बड़ी हैं, जिसका मतलब है कि यह अंतरिम सुरक्षा की ज़रूरत पर दोबारा विचार कर सकता है।”
कोर्ट ने आगे कहा कि अपीलीय कोर्ट को अपील के फाइनल निपटारे तक अंतरिम राहत के लिए एप्लीकेशन पर अपने दम पर और तय कानूनी सिद्धांतों के आधार पर स्वतंत्र रूप से विचार करना चाहिए। इसे सिर्फ सूट के फाइनल नतीजे को नहीं देखना चाहिए।”
कोर्ट ने अपीलकर्ता को अंतरिम राहत देने से मना करने के लिए ऑर्डर XLI रूल 5 CPC लागू करने के लिए विवादित फैसले की आलोचना की यह कहते हुए कि ऑर्डर XLI रूल 5 तभी लागू होता है जब कोई डिक्री लागू की जा रही हो और अपीलीय स्टेज पर स्टे मांगा जा रहा हो। चूंकि अपीलकर्ता का सूट खारिज कर दिया गया था इसलिए कोई डिक्री पास नहीं की गई थी जिसके लिए ऑर्डर XLI रूल 5 CPC लागू करने की ज़रूरत पड़े।
कोर्ट ने कहा,
“हम जिस बात से सहमत नहीं हैं वह यह कानूनी बयान है कि एक बार जब सूट खारिज हो जाता है तो ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए ऐसे फैसले और आदेश के खिलाफ दायर अपील के लंबित रहने के दौरान कोई अंतरिम राहत नहीं दी जा सकती है। इसके अलावा हमारी राय में पहले अपीलीय कोर्ट द्वारा स्टेटस को देने से इनकार करते समय ऑर्डर XLI रूल 5 पर भरोसा करना पूरी तरह से गलत है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसके तहत दिए गए विचार जैसे कि स्टे के लिए अप्लाई करने वाली पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाना तभी माना जा सकता है जब किसी डिक्री के एग्जीक्यूशन पर स्टे मांगा जा रहा हो जो कि इस मामले में नहीं है।”

