सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांग कैदियों के अधिकारों की रक्षा के लिए पूरे भारत में निर्देश जारी किए, राज्यों/UTs से सहायक उपकरणों पर रिपोर्ट मांगी
Shahadat
7 Dec 2025 7:02 PM IST

दिव्यांग कैदियों के अधिकारों और सम्मान को मज़बूत करने की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने जेल सिस्टम में एक बड़ा, दिव्यांगों को शामिल करने वाला फ्रेमवर्क लागू करने का निर्देश दिया।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने सत्यन नरवूर की PIL पर सुनवाई करते हुए ये निर्देश जारी किए, जिसमें दिव्यांग कैदियों के लिए ज़रूरी सुविधाओं और सही कानूनी सिस्टम की मांग की गई।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता में उठाई गई कई चिंताओं पर एल. मुरुगनंथम बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में पहले ही बात हो चुकी थी, जहां तमिलनाडु की जेलों के लिए बड़े पैमाने पर गाइडलाइंस बनाई गईं। यह देखते हुए कि ये सुरक्षा उपाय पूरे देश में लागू होने चाहिए, बेंच ने औपचारिक तौर पर मुरुगनंथम के निर्देशों को सभी राज्यों और UTs तक बढ़ा दिया।
पूरे देश में दिव्यांगता-अधिकारों के स्टैंडर्ड का पालन
कोर्ट ने माना कि देश भर की जेलों में दिव्यांग कैदियों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए “कमी” है और दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार एक्ट, 2016 को ठीक से लागू नहीं किया जा रहा है। कोर्ट ने यह बात दर्ज की कि कई जेल मैनुअल में रैंप, सहायक उपकरण, आसानी से मिलने वाले टॉयलेट और इलाज की सुविधाओं जैसे ज़रूरी एक्सेसिबिलिटी नियमों की कमी है।
मुरुगनंथम फ्रेमवर्क को एक जैसा अपनाने का निर्देश देते हुए कोर्ट ने आदेश दिया कि सभी जेलों में व्हीलचेयर-फ्रेंडली जगहें, आसानी से मिलने वाला इंफ्रास्ट्रक्चर, खास थेरेपी रूम, ट्रेंड मेडिकल स्टाफ, सही डाइट, रेगुलर फिजियोथेरेपी और दिव्यांगता-संवेदनशील प्रोसीजर बनाए रखने होंगे।
जारी किए गए निर्देश
पहले के निर्देशों को पूरे देश में लागू करने के अलावा, कोर्ट ने कई नए आदेश भी जोड़े:
1. स्वतंत्र शिकायत निवारण सिस्टम: हर राज्य और UT को दिव्यांग कैदियों के लिए खास तौर पर एक मज़बूत, आसानी से मिलने वाला शिकायत सिस्टम बनाना होगा ताकि उन्हें गलत व्यवहार और अनदेखी से बचाया जा सके।
2. सबको साथ लेकर चलने वाली शिक्षा: किसी भी कैदी को दिव्यांगता की वजह से पढ़ाई के मौकों से दूर नहीं किया जाना चाहिए। जेलों को उनकी भागीदारी को मुमकिन बनाने के लिए सही बदलाव करने होंगे।
3. RPwD Act की धारा 89 लागू होगा: दिव्यांगता-अधिकारों की ज़िम्मेदारियों का उल्लंघन करने पर सज़ा के तौर पर ₹5 लाख तक का जुर्माना, ज़रूरी बदलावों के साथ जेलों पर लागू होना चाहिए। अधिकारियों को जेल स्टाफ़ और उससे जुड़े स्टेकहोल्डर्स के बीच इस नियम के बारे में जागरूकता फैलानी होगी।
4. असिस्टिव डिवाइस: सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए कोर्ट ने हर राज्य और UT से जेलों के अंदर मोबिलिटी एड्स और दूसरे असिस्टिव इक्विपमेंट देने और उनके रखरखाव के लिए डिटेल्ड प्लान मांगा।
5. बढ़े हुए विज़िटेशन अधिकार: बेंचमार्क दिव्यांगता वाले कैदियों को इमोशनल सपोर्ट और उनकी ज़रूरतों की मॉनिटरिंग पक्का करने के लिए बेहतर विज़िटेशन अरेंजमेंट मिलना चाहिए। राज्यों को सुरक्षा और एक्सेसिबिलिटी के बीच बैलेंस बनाते हुए खास तरीके बनाने होंगे।
अप्रैल 2026 तक कम्प्लायंस रिपोर्ट देनी होगी
बेंच ने सभी राज्यों और UT को चार महीने के अंदर पूरी कम्प्लायंस रिपोर्ट फाइल करने का निर्देश दिया। इनमें मुरुगनंथम गाइडलाइंस और इस ऑर्डर में जारी किए गए एडिशनल निर्देशों को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों के साथ-साथ असिस्टिव एड देने और दूसरे उपायों के लिए प्रस्तावित तरीकों की आउटलाइन होनी चाहिए।
कम्प्लायंस रिपोर्ट के रिव्यू के लिए पिटीशन पर अगली सुनवाई 7 अप्रैल, 2026 को होगी।
Case : SATHYAN NARAVOOR v. UNION OF INDIA | Writ Petition(s)(Civil) No(s). 182/2025

