सुप्रीम कोर्ट ने विदेशी नागरिक होने के आरोपी व्यक्ति को UAPA मामले में जमानत देने के खिलाफ केंद्र की याचिका पर नोटिस जारी किया

Shahadat

14 May 2024 5:19 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने विदेशी नागरिक होने के आरोपी व्यक्ति को UAPA मामले में जमानत देने के खिलाफ केंद्र की याचिका पर नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (13 मई) को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA Act) के तहत अपराध करने के आरोप में गैर-नागरिक को दी गई जमानत रद्द करने की मांग वाली यूनियन की याचिका पर नोटिस जारी किया।

    यह मामला मद्रास हाईकोर्ट द्वारा आरोपी (संघ द्वारा दावा किया गया श्रीलंकाई नागरिक) को जमानत देने से संबंधित है, जिसमें कहा गया कि संघ के पास यह साबित करने के लिए खुफिया रिपोर्ट के अलावा कोई सामग्री नहीं है कि आरोपी एक श्रीलंकाई नागरिक है और हाईकोर्ट अदालतों के पास UAPA की धारा 43डी (7) के तहत ऐसे व्यक्ति को भी जमानत देने का विवेक था, जो भारतीय नागरिक नहीं है।

    हाईकोर्ट ने कहा,

    “यूए (पी) अधिनियम, 1967 के 43-डी (7) में कहा गया कि ऐसे व्यक्ति को जमानत नहीं दी जा सकती, जो भारतीय नागरिक नहीं है और अनाधिकृत या अवैध रूप से देश में प्रवेश किया… ऐसा नहीं है कि हाईकोर्ट को कोई विवेकाधिकार नहीं है। अदालत ऐसे व्यक्ति को भी जमानत दे सकती है, जो असाधारण परिस्थितियों में नागरिक नहीं है।''

    यह अभियोजन पक्ष (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) का मामला है कि आरोपी ने विभिन्न तरीकों से अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया और अपनी राष्ट्रीयता को दबा दिया। यह प्रस्तुत किया गया कि श्रीलंकाई होने के नाते आरोपी रिफास UAPA की धारा 43डी (7) के तहत जमानत का हकदार नहीं है।

    हाईकोर्ट के निर्णय के विरुद्ध संघ ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।

    संघ की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि आरोपी/प्रतिवादी ने श्रीलंका की अपनी विदेशी राष्ट्रीयता का खुलासा न करके अपनी राष्ट्रीयता को छुपाया है। उन्होंने दलील दी कि NIA की खुफिया रिपोर्ट के आधार पर पहचान छिपाने के लिए आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।

    जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने एएसजी भाटी से यह बताने को कहा कि क्या संघ के इस दावे को साबित करने के लिए कोई सामग्री है कि आरोपी/प्रतिवादी श्रीलंकाई नागरिक है।

    खंडपीठ के सवाल का जवाब देते हुए एएसजी ने अदालत को अवगत कराया कि संघ के पास आरोपी का श्रीलंकाई पासपोर्ट नहीं है, लेकिन यह NIA की खुफिया रिपोर्ट पर आधारित है कि आरोपी के खिलाफ खुद को श्रीलंकाई पहचान छिपाने के लिए एफआईआर दर्ज की गई।

    इसके अलावा, पीठ ने एएसजी से पूछा कि क्या अपीलकर्ता ने आरोपी को अपना पासपोर्ट दिखाने के लिए बुलाया था।

    इससे इनकार करते हुए एएसजी ने अदालत को सूचित किया कि यह हाईकोर्ट की टिप्पणी के कारण है कि अभियुक्त को अपीलकर्ता द्वारा नहीं बुलाया गया, क्योंकि हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार जब अभियुक्त बाहर आ जाता है तो उसे बुलाने के लिए कोई असाधारण परिस्थितियां उत्पन्न नहीं होती हैं। आरोपी को अपना पासपोर्ट दिखाना होगा।

    उपरोक्त दलीलों के आधार पर अदालत ने आरोपी/प्रतिवादी को नोटिस जारी किया।

    मामले को 10 सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया।

    केस टाइटल: भारत संघ बनाम मोहम्मद रिफ़ास @ मोहम्मद रिफ़ास, डायरी नंबर - 13002/2024

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