सुप्रीम कोर्ट ने अपहरण मामले में भवानी रेवन्ना को दी गई अग्रिम जमानत को चुनौती वाली याचिका पर नोटिस जारी किया

Shahadat

10 July 2024 6:44 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने अपहरण मामले में भवानी रेवन्ना को दी गई अग्रिम जमानत को चुनौती वाली याचिका पर नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (10 जुलाई) को कर्नाटक विशेष जांच दल (SIT) द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया। उक्त याचिका में एक महिला के कथित अपहरण के मामले में प्रज्वल रेवन्ना की मां भवानी रेवन्ना को अग्रिम जमानत देने के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई।

    जनता दल (यूनाइटेड) के नेता प्रज्वल रेवन्ना कई महिलाओं के खिलाफ कथित यौन अपराधों के मामलों का सामना कर रहा है।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ ने हालांकि शुरुआत में कर्नाटक SIT की याचिका पर आपत्ति जताई, लेकिन अंततः आरोपी को नोटिस जारी करने पर सहमत हो गई।

    कर्नाटक SIT की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि भवानी रेवन्ना को दी गई राहत "बेहद दुर्भाग्यपूर्ण" है।

    इस मौके पर जस्टिस कांत ने कहा,

    "मिस्टर सिब्बल, राजनीतिक कारणों को छोड़ दें। लेकिन हाईकोर्ट द्वारा दिए गए कारणों को देखें। आरोपी महिला है, जिसकी उम्र 55 वर्ष है। उसके बेटे पर जघन्य कृत्यों में संलिप्त होने के गंभीर आरोप हैं। वह भाग गया और अंततः पकड़ा गया। इस तरह के आरोपों के मामले में अपने बेटे द्वारा किए गए अपराध को बढ़ावा देने में मां की क्या भूमिका होगी?"

    सिब्बल ने कहा कि ऐसे बयान हैं, जो संकेत देते हैं कि पीड़िता का वास्तव में अपहरण किया गया था।

    हालांकि, खंडपीठ ने राज्य से पूछताछ जारी रखी और पूछा कि उसके खिलाफ क्या सबूत हैं।

    जस्टिस भुयान ने एक बिंदु पर टिप्पणी की कि उसके खिलाफ "कुछ भी प्रत्यक्ष" नहीं था। खंडपीठ ने यह भी आश्चर्य व्यक्त किया कि क्या प्रतिवादी मां होने के नाते अपने बेटे द्वारा कथित रूप से किए गए यौन अपराधों में शामिल हो सकती है।

    खंडपीठ को मनाने के लिए सिब्बल ने जोर देकर कहा कि न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयान में उसे बंधक बनाने में भवानी की भूमिका का उल्लेख किया गया।

    सिब्बल ने कहा,

    "पीड़िता परिवार के निर्देशों के तहत बंधक थी। उसने (भवानी) ही फोन किया, उसने ही बंधक बनाने का निर्देश दिया। 164 कथन में ऐसा कहा गया।"

    जस्टिस कांत ने कहा,

    "हम केवल महिला की स्वतंत्रता के प्रश्न पर विचार कर रहे हैं।"

    उन्होंने कहा कि खंडपीठ केवल गिरफ्तारी से उसे दी गई सुरक्षा के बारे में सीमित बिंदु पर विचार कर रही है। यदि वह दोषी है तो अंततः यह मुकदमे में साबित हो जाएगा। सिब्बल ने कहा कि खंडपीठ को यह नहीं समझना चाहिए कि वह केवल इसलिए अपराध में शामिल नहीं थी, क्योंकि वह महिला है।

    सिब्बल ने कहा,

    "यदि आप माननीय न्यायाधीश यह सोच रहे हैं कि मां को इस बारे में जानकारी नहीं थी तो मुझे पूरी तरह संदेह है। मानवीय आचरण के सामान्य क्रम में मां को यह सब पता होगा। यदि आप माननीय न्यायाधीश सोचते हैं कि वह नहीं जानती थी कि पीड़िता के साथ कैसा व्यवहार किया गया, तो यह अलग बात है। लेकिन सामान्य क्रम में ऐसा संभव नहीं है।"

    अंततः, खंडपीठ ने नोटिस जारी करने पर सहमति जताई।

    आदेश सुनाने के बाद जस्टिस कांत ने कहा,

    "इसमें कुछ भी नहीं है। हमें इस मामले का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए।"

    केस टाइटल- कर्नाटक राज्य बनाम भवानी रेवन्ना

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