सुप्रीम कोर्ट ने हिरासत में मौत के मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास को चुनौती देने वाली अपील पर नोटिस जारी किया
Shahadat
27 Aug 2024 12:36 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात राज्य को भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी संजीव भट्ट की याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें उन्होंने जामनगर कोर्ट द्वारा लगाए गए दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ उनकी चुनौती को खारिज करने के गुजरात हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी। यह दोषसिद्धि वर्ष 1990 में हिरासत में यातना और मौत के कथित मामले के संबंध में थी।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना भालचंद्र वराले की खंडपीठ ने नोटिस जारी करते हुए वर्तमान याचिका को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया।
भट्ट की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और देवदत्त कामत ने जोर देकर कहा कि इस मामले पर सुनवाई की जरूरत है। अदालत के इस प्रस्ताव पर सहमति जताई कि इस मामले को उसके समक्ष लंबित अन्य मामलों के साथ जोड़ा जा सकता है। इसे देखते हुए उपरोक्त आदेश पारित किया गया और नोटिस को चार सप्ताह के भीतर वापस करने योग्य बनाया गया।
भट्ट की ओर से एडवोकेट जी इनामदार और शाश्वत आनंद भी पेश हुए।
यह घटना नवंबर 1990 में प्रभुदास माधवजी वैष्णानी नामक व्यक्ति की मौत से संबंधित है, जो कथित तौर पर हिरासत में यातना के कारण हुई थी। उस समय भट्ट जामनगर के सहायक पुलिस अधीक्षक थे, जिन्होंने अन्य अधिकारियों के साथ मिलकर भारत बंद के दौरान दंगा करने के आरोप में वैष्णानी सहित लगभग 133 लोगों को हिरासत में लिया था।
नौ दिनों तक हिरासत में रखे गए वैष्णानी की जमानत पर रिहाई के दस दिन बाद मौत हो गई। मेडिकल रिकॉर्ड के अनुसार, मौत का कारण गुर्दे का काम करना था। उनकी मृत्यु के बाद हिरासत में यातना के आरोपों पर भट्ट और कुछ अन्य अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। मामले का संज्ञान 1995 में मजिस्ट्रेट ने लिया। हालांकि, गुजरात हाईकोर्ट द्वारा रोक लगाए जाने के कारण 2011 तक मुकदमा स्थगित रहा। बाद में रोक हटा दी गई और मुकदमा शुरू हुआ।
जून 2019 में राज्य के जामनगर जिले की सेशन कोर्ट ने भट्ट और पुलिस कांस्टेबल (प्रवीनसिंह जाला) को आईपीसी की धारा 302, 323 और 506 (1) के तहत दोषी ठहराते हुए मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
उनके अलावा, पुलिस कांस्टेबल प्रवीणसिंह जडेजा, अनोपसिंह जेठवा और केशुभा डोलुभा जडेजा और पुलिस उप-निरीक्षक शैलेश पंड्या और दीपककुमार भगवानदास शाह को भी हिरासत में यातना देने का दोषी पाया गया। उन्हें आईपीसी की धारा 323 और 506 (1) के तहत दोषी ठहराया गया।
अपनी सजा को चुनौती देते हुए जाला, भट्ट, शाह और पांड्या ने 2019 में हाईकोर्ट का रुख किया।
उनकी आपराधिक अपील खारिज करते हुए जस्टिस आशुतोष शास्त्री और जस्टिस संदीप एन. भट्ट की खंडपीठ ने कहा कि जामनगर कोर्ट द्वारा दिया गया तर्क सही था। इसलिए सजा के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं था।
केस टाइटल: संजीव कुमार राजेंद्रभाई भट्ट बनाम गुजरात राज्य, डायरी नंबर - 14516/2024