BREAKING: सुप्रीम ने किया हिंदू महिलाओं से वसीयत बनाने का आग्रह, कहा- बिना वसीयत मरने वाली महिलाओं के उत्तराधिकार में मुकदमे-पूर्व मध्यस्थता अनिवार्य

Praveen Mishra

19 Nov 2025 5:02 PM IST

  • BREAKING: सुप्रीम ने किया हिंदू महिलाओं से वसीयत बनाने का आग्रह, कहा- बिना वसीयत मरने वाली महिलाओं के उत्तराधिकार में मुकदमे-पूर्व मध्यस्थता अनिवार्य

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि देश की सभी महिलाओं, खासकर हिन्दू महिलाओं, को चाहिए कि वे अपनी मृत्यु के बाद संपत्ति के बंटवारे को लेकर किसी भी तरह के विवाद से बचने के लिए वसीयत (Will) अवश्य बनाएं। अदालत ने यह सुझाव इसलिए दिया ताकि भविष्य में माता-पिता और ससुराल पक्ष के बीच संपत्ति से जुड़े मुकदमेबाज़ी से बचा जा सके।

    खंडपीठ ने कहा, “हम सभी महिलाओं, विशेषकर उन हिन्दू महिलाओं से जो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 15(1) की स्थिति में हो सकती हैं, अपील करते हैं कि वे अपनी संपत्ति—विशेषकर स्वयं अर्जित (self-acquired) संपत्ति—के लिए तुरंत वसीयत बनाएँ, ताकि उनका हित सुरक्षित रहे और आगे चलकर किसी भी तरह का विवाद न हो।”

    जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 15(1)(b) को चुनौती देने वाली याचिका को गुण-दोष के आधार पर नहीं सुना और इस प्रावधान की वैधता का मुद्दा भविष्य के उपयुक्त मामलों के लिए खुला छोड़ दिया।

    धारा 15(1)(b) क्या है?

    यदि कोई हिंदू महिला बिना वसीयत (intestate) के मर जाती है और पीछे पति, पुत्र या पुत्री नहीं छोड़ती, तो उसकी संपत्ति पहले उसके पति के उत्तराधिकारियों को जाती है। उसके बाद, यदि पति के कोई उत्तराधिकारी न हों, तब महिला के माता-पिता धारा 15(1)(c) के अनुसार संपत्ति के उत्तराधिकारी बनते हैं।

    कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्देश – पहले प्री-लिटिगेशन मेडिएशन

    सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि यदि ऐसी महिला की संपत्ति पर उसके माता-पिता या उनके उत्तराधिकारी दावा करते हैं, तो कोर्ट में मुकदमा दायर करने से पहले अनिवार्य रूप से प्री-लिटिगेशन मेडिएशन कराना होगा।

    अदालत ने कहा कि मेडिएशन में हुआ समझौता अदालत के डिक्री (फैसले) के समान माना जाएगा।

    याचिका में क्या मांग थी?

    यह याचिका एक अधिवक्ता द्वारा दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि धारा 15(1)(b) महिला की माता-पिता के साथ असमानता करती है और यह अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है।

    याचिकाकर्ता का तर्क था कि महिला की स्वयं अर्जित संपत्ति पर पति के परिवार को प्राथमिकता देना अनुचित और मनमाना है।

    केंद्र सरकार का जवाब

    ASG के.एम. नटराज ने कहा कि यह चुनौती प्रभावित पक्षों द्वारा लाई जानी चाहिए, न कि एक अधिवक्ता द्वारा। उन्होंने कहा कि 1956 में संसद ने संभवतः यह नहीं सोचा था कि महिलाएँ बड़ी मात्रा में स्वयं अर्जित संपत्ति रखेंगी।

    उन्होंने यह भी बताया कि धारा 30 महिला को वसीयत बनाने का पूरा अधिकार देती है, इसलिए उत्तराधिकार के सामान्य नियम (धारा 15) को असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता।

    अदालत ने स्वीकार किया कि आज महिलाएँ — विशेषकर हिंदू महिलाएँ — शिक्षा, रोज़गार और उद्यमिता के कारण बड़ी मात्रा में स्वयं अर्जित संपत्ति रखती हैं। ऐसे में यह स्थिति माता-पिता के लिए पीड़ादायक हो सकती है कि उनकी बेटी की खुद की संपत्ति पर पति के दूर-दराज़ के रिश्तेदारों को पहले अधिकार मिल जाए।

    हालाँकि अदालत ने प्रावधान की संवैधानिक वैधता पर कोई अंतिम टिप्पणी नहीं की, परन्तु प्रभावित पक्षों को भविष्य में उचित मामले में इसे चुनौती देने की पूर्ण स्वतंत्रता दी।

    अंत में, अदालत ने सभी हिंदू महिलाओं से आग्रह किया कि वे अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए वसीयत अवश्य बनाएँ, ताकि भविष्य में संपत्ति को लेकर किसी प्रकार का विवाद न हो।

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