सुप्रीम कोर्ट ने IMA अध्यक्ष द्वारा प्रकाशित माफ़ीनामे के आकार पर असंतोष व्यक्त किया

Shahadat

27 Aug 2024 5:45 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने IMA अध्यक्ष द्वारा प्रकाशित माफ़ीनामे के आकार पर असंतोष व्यक्त किया

    सुप्रीम कोर्ट ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के अध्यक्ष डॉ. आरवी अशोकन द्वारा पतंजलि अवमानना ​​मामले में मीडिया इंटरव्यू में न्यायालय के विरुद्ध की गई टिप्पणियों के संबंध में प्रकाशित माफ़ीनामे पर अपनी नाखुशी व्यक्त की।

    जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने प्रकाशित माफ़ीनामे के विज्ञापनों के आकार पर आपत्ति जताते हुए निर्देश दिया कि उनकी भौतिक प्रतियां एक सप्ताह के भीतर रिकॉर्ड पर रखी जाएं।

    सुनवाई की शुरुआत सीनियर एडवोकेट पीएस पटवालिया (IMA के लिए) द्वारा डॉ. अशोकन की ओर से प्रकाशित माफ़ीनामे की ओर न्यायालय का ध्यान आकर्षित करने से हुई। जब पीठ ने माफ़ीनामे के विज्ञापन के आकार पर असंतोष व्यक्त किया तो सीनियर एडवोकेट ने IMA अध्यक्ष के मामले की तुलना पतंजलि से करते हुए कहा कि पूर्व के इंटरव्यू को किसी भी समाचार पत्र में नहीं दिखाया गया।

    उन्होंने कहा,

    "यह केवल ऑनलाइन था।"

    जवाब में जस्टिस कोहली ने टिप्पणी की,

    "जहां भी यह गया, इसने आपको नुकसान पहुंचाया। आप हमें इस अख़बार की भौतिक प्रति दें। हमें (माफ़ीनामे का) वास्तविक आकार दिखाएं। बस इतना ही। जब तक हम इसे नहीं देख लेते, तब तक कोई तर्क नहीं। आपने हमारा ध्यान इस ओर आकर्षित किया, अब हम इसी पर टिके रहते हैं।"

    उदाहरण के तौर पर, पटवालिया ने केरल के मीडिया में प्रकाशित माफ़ीनामे का हवाला दिया।

    जस्टिस कोहली ने इस पर पलटवार करते हुए कहा,

    "पीटीआई ने उन्हें उद्धृत करके सिर्फ़ केरल में ही प्रेस में नहीं डाला, है न?"

    पटवालिया ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि माफ़ीनामे को पूरे भारत में प्रकाशित किया गया। जब पीठ ने उनसे उक्त प्रकाशित माफ़ीनामे की प्रतियां दिखाने के लिए कहा तो सीनियर वकील ऐसा करने में असमर्थ रहे। हालांकि उन्होंने दावा किया कि सभी माफ़ीनामे एक जैसे ही होते हैं।

    पटवालिया ने कहा,

    "उन्हें (डॉ. अशोकन) वास्तव में खेद है, मिलॉर्ड। वे यहां हैं। वे एक ज़िम्मेदार डॉक्टर हैं। उन्होंने वह बयान दिया और तब से उन्हें खेद है। वे यहां माफ़ीनामे को देने के लिए तैयार हैं।"

    उनकी बात काटते हुए जस्टिस मेहता ने टिप्पणी की:

    "वह (डॉ. अशोकन) माफ़ी मांगकर किसी का उपकार नहीं कर रहे हैं।"

    माफ़ी के विज्ञापन पर वापस लौटते हुए जस्टिस कोहली ने कहा कि पीठ इसे पढ़ने में असमर्थ थी, क्योंकि यह "0.01 सेमी से भी कम" था।

    तदनुसार, माफ़ी के विज्ञापन को निम्नलिखित शब्दों में दाखिल करने के निर्देश दिए गए:

    "मिस्टर पटवालिया ने कहा कि 23.08.2024 को द हिंदू अख़बार के 20 एडिशन में बिना शर्त माफ़ी प्रकाशित की गई। डॉ. अशोकन की ओर से दाखिल किए गए अख़बार का अंश पढ़ने योग्य नहीं है, क्योंकि फ़ॉन्ट बहुत छोटा है। डॉ. अशोकन के विद्वान वकील को निर्देश दिया जाता है कि वे द हिंदू अख़बार के 20 एडिशन में से प्रत्येक के प्रासंगिक पृष्ठ की कॉपी कोर्ट के अवलोकन के लिए दाखिल करें, जिसमें माफ़ी प्रकाशित की गई। 1 सप्ताह के भीतर आवश्यक कार्य किया जाएगा।"

    मामले को फिर से सूचीबद्ध करते हुए बेंच ने स्पष्ट किया कि डॉ. अशोकन को अगली तारीख पर उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होने की छूट दी जा रही है।

    जस्टिस मेहता ने आगे कहा कि यदि माफ़ी वास्तविक और प्रामाणिक पाई जाती है तो न्यायालय उस पर ध्यान देगा।

    केस टाइटल: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य | डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 645/2022

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