सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के कई मंदिरों के वकीलों के नियंत्रण में आने पर चिंता जताई, मथुरा जिला कोर्ट से रिपोर्ट मांगी
Shahadat
10 Dec 2024 9:02 PM IST
उत्तर प्रदेश में मंदिर प्रशासन से जुड़े मुद्दों और ऐसे मुद्दों पर मुकदमे लंबित रखने में रिसीवर के रूप में नियुक्त वकीलों के "निहित स्वार्थ" को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मथुरा के प्रिंसिपल जिला जज से रिपोर्ट मांगी।
जिला जज से मांगी गई रिपोर्ट में निम्नलिखित का उल्लेख किया जाएगा:
i. मथुरा जिले में उन मंदिरों की सूची जिनके संबंध में मुकदमे लंबित हैं, जिनमें न्यायालयों द्वारा रिसीवर नियुक्त किए गए।
ii. ऐसे मुकदमे कब से लंबित हैं। ऐसी कार्यवाही की स्थिति क्या है।
iii. व्यक्तियों के नाम और स्थिति, विशेष रूप से न्यायालयों द्वारा रिसीवर के रूप में नियुक्त वकीलों की।
iv. ऐसी कार्यवाही में नियुक्त रिसीवरों को दिया जाने वाला पारिश्रमिक, यदि कोई हो।
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता ईश्वर चंद शर्मा की याचिका पर विचार करते हुए यह आदेश पारित किया। उन्हें मथुरा कोर्ट ने मंदिर के प्रबंधन और संचालन (यानी रिसीवर/प्रबंधक) के लिए गठित समिति का सदस्य नियुक्त किया था। उनकी शिकायत यह है कि मथुरा कोर्ट के आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया और मामले को नए सिरे से विचार के लिए वापस भेज दिया। हाईकोर्ट के आदेश को ध्यान में रखते हुए, जिसमें उत्तर प्रदेश राज्य के मंदिरों के "कानूनी लड़ाई में उलझे होने" और मथुरा में रिसीवरशिप के "नए मानदंड" बनने के बारे में "स्पष्ट टिप्पणियां" की गईं।
खंडपीठ ने कहा,
"ऐसा प्रतीत होता है कि मंदिर प्रशासन के मुद्दे और मंदिर प्रशासन से संबंधित मुकदमों में रिसीवर की नियुक्ति, न्यायालयों के लिए सबसे कठिन पहेली बन गई। उत्तर प्रदेश राज्य, विशेष रूप से मथुरा जिले में वकीलों के लिए बहुत ही आकर्षक अदालती कार्यवाही बन गई।"
इसके अलावा, इसने रेखांकित किया कि न्यायालयों को लोगों के एक समूह के लाभ के लिए उपयोग/दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिनका मुकदमों को लंबा खींचने में निहित स्वार्थ होगा।
खंडपीठ ने कहा,
"किसी को भी न्यायालय में लंबे समय तक चलने वाले मुकदमों की आड़ में कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।"
संक्षेप में कहें तो हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जिला जज, मथुरा द्वारा तैयार की गई सूची में उल्लिखित 197 मंदिरों में से वृंदावन, गोवर्धन, बलदेव, गोकुल, बरसाना, मठ आदि में स्थित मंदिरों के संबंध में सिविल मुकदमे लंबित थे। ये मुकदमे 1923-2024 के बीच के थे और मथुरा कोर्ट के प्रैक्टिस करने वाले वकीलों को इनमें रिसीवर नियुक्त किया गया।
आगे कहा गया,
"रिसीवर का हित मुकदमे को लंबित रखने में निहित है। सिविल कार्यवाही को समाप्त करने का कोई प्रयास नहीं किया जाता, क्योंकि मंदिर प्रशासन का पूरा नियंत्रण रिसीवर के हाथों में होता है। अधिकांश मुकदमे मंदिरों के प्रबंधन और रिसीवर की नियुक्ति के संबंध में हैं।"
यह भी उल्लेख किया गया कि 8 मंदिर अर्थात राधा वल्लभ मंदिर, वृंदावन; दाऊजी महाराज मंदिर, बलदेव; नंदकिला नंद भवन मंदिर, गोकुल; मुखारबिंद, गोवर्धन; दानघाटी, गोवर्धन; अनंत श्री विभूषित, वृंदावन और मंदिर श्री लाडली जी महाराज, बरसाना रिसीवर के कब्जे में हैं और उनमें से अधिकांश का प्रबंधन मथुरा के अधिवक्ताओं द्वारा किया जाता है।
मंदिरों के प्रबंधन से अधिवक्ताओं को दूर रखने का आह्वान करते हुए हाईकोर्ट ने कहा,
"समय आ गया, जब इन सभी मंदिरों को मथुरा कोर्ट के वकीलों के चंगुल से मुक्त किया जाना चाहिए। न्यायालयों को, यदि आवश्यक हो, तो रिसीवर नियुक्त करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए, जो मंदिर के प्रबंधन से जुड़ा हो और देवता के प्रति कुछ धार्मिक झुकाव रखता हो। उसे वेदों और शास्त्रों का भी अच्छा ज्ञान होना चाहिए। वकीलों और जिला प्रशासन के लोगों को इन प्राचीन मंदिरों के प्रबंधन और नियंत्रण से दूर रखा जाना चाहिए। मंदिर विवादों से जुड़े मुकदमे को जल्द से जल्द निपटाने का प्रयास किया जाना चाहिए और मामले को दशकों तक नहीं लटकाया जाना चाहिए।"
केस टाइटल: ईश्वर चंद शर्मा बनाम देवेंद्र कुमार शर्मा और अन्य, डायरी नंबर 52096/2024सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के कई मंदिरों के वकीलों के नियंत्रण में आने पर चिंता जताई, मथुरा जिला अदालत से रिपोर्ट मांगी