BREAKING | 'गंभीर उल्लंघन': सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के तूतीकोरिन में तांबा गलाने की इकाई को फिर से खोलने की वेदांता की याचिका खारिज की

Shahadat

29 Feb 2024 5:50 PM IST

  • BREAKING | गंभीर उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के तूतीकोरिन में तांबा गलाने की इकाई को फिर से खोलने की वेदांता की याचिका खारिज की

    वेदांता की ओर से "बार-बार उल्लंघन" और "गंभीर उल्लंघन" का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (29 फरवरी) को तमिलनाडु के तूतीकोरिन में स्टरलाइट कॉपर स्मेल्टिंग प्लांट को फिर से खोलने की अनुमति देने से इनकार किया।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने अगस्त 2020 के मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ वेदांता लिमिटेड द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी। उक्त फैसले में कंपनी द्वारा तूतीकोरिन और अन्य में अपने तांबा संयंत्र को बंद करने के खिलाफ दायर याचिकाओं के बैच को खारिज कर दिया गया था।

    न्यायालय ने अपने फैसले में कहा,

    "उद्योग को बंद करना निस्संदेह पहली पसंद का मामला नहीं है। हालांकि, उल्लंघनों की बार-बार प्रकृति, उल्लंघनों की गंभीरता के साथ मिलकर इस विश्लेषण में न तो वैधानिक प्राधिकारी और न ही एचसी कोई अन्य दृष्टिकोण अपनाएंगे, जब तक कि वे इससे बेखबर न हों।“

    न्यायालय ने कहा कि वैधानिक अधिकारियों ने तथ्यों के कई निष्कर्ष दर्ज किए हैं, जिस पर हाईकोर्ट ने अपनी न्यायिक पुनर्विचार शक्ति के प्रयोग में हस्तक्षेप करने से इनकार किया। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा अनुच्छेद 136 के तहत हस्तक्षेप की आवश्यकता के लिए हाईकोर्ट के दृष्टिकोण में कोई गंभीर त्रुटि नहीं दिखाई गई।

    अपने फैसले में अदालत ने सतत विकास के सिद्धांतों, प्रदूषण फैलाने वालों को भुगतान करने के सिद्धांत और सार्वजनिक विश्वास सिद्धांत की पुष्टि की। हालांकि उक्त यूनिट राष्ट्र की उत्पादक संपत्तियों में योगदान दे रही है और क्षेत्र में रोजगार और राजस्व प्रदान कर रही है, लेकिन पर्यावरणीय न्यायशास्त्र के इन सुस्थापित सिद्धांतों को याद रखा जाना चाहिए।

    पीठ ने अपने आदेश में कहा,

    "अदालत को अन्य सुस्थापित सिद्धांतों के प्रति सचेत रहना होगा, जिसमें सतत विकास का सिद्धांत, प्रदूषणकर्ता भुगतान सिद्धांत और सार्वजनिक विश्वास सिद्धांत शामिल हैं। क्षेत्र के निवासियों का स्वास्थ्य और कल्याण अत्यंत चिंता का विषय है। अंतिम विश्लेषण में राज्य सरकार उनकी चिंताओं के संरक्षण के लिए जिम्मेदार है...सक्षम मूल्यांकन के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि औद्योगिक इकाई द्वारा विशेष अनुमति याचिका संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत हस्तक्षेप की गारंटी नहीं देती है। विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी जाती है। "

    न्यायालय ने तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा उसकी निष्क्रियता के संबंध में हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों को चुनौती देने वाली अपील भी खारिज कर दी।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

    "हमारा विचार है कि टीएनपीसीबी की ओर से अपने कर्तव्यों के निर्वहन में तत्परता की कमी के संबंध में हाईकोर्ट का यह टिप्पणी करना उचित है।"

    वेदांता की जवाबी बहस के दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ ने कंपनी के वकील सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान से कहा कि इस मामले में कई उल्लंघन शामिल हैं।

    सीजेआई ने दीवान से पूछा,

    "ये पूर्ण उल्लंघन हैं मिस्टर दीवान। और ये हाईकोर्ट द्वारा तथ्यों के निष्कर्ष हैं। हमें हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए?"

    पिछली सुनवाई में कोर्ट ने पूछा था कि खतरनाक कचरा लाइसेंस खत्म होने के बावजूद वेदांता प्लांट कैसे चला सकती है।

    वेदांता की ओर से सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान पेश हुए।

    सीनियर एडवोकेट सीएस वैद्यनाथन और गोपाल शंकरनारायणन तमिलनाडु राज्य की ओर से पेश हुए।

    केस टाइटल- वेदांता लिमिटेड बनाम तमिलनाडु राज्य एवं अन्य। | विशेष अनुमति याचिका (सिविल) नंबर 10159-10168 2020

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