सुप्रीम कोर्ट ने आयकर पुनर्मूल्यांकन नोटिस के खिलाफ पर्यावरण वकील की याचिका खारिज की

Shahadat

13 Aug 2024 4:04 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने आयकर पुनर्मूल्यांकन नोटिस के खिलाफ पर्यावरण वकील की याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण वकील रित्विक दत्ता द्वारा दायर याचिका खारिज किया। याचिका में आयकर विभाग द्वारा 2019-20 के लिए रिटर्न के पुनर्मूल्यांकन के लिए जारी किए गए नोटिस को चुनौती दी गई।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने चुनौती खारिज करते हुए कहा कि मूल्यांकन कार्यवाही के चरण में ही याचिकाकर्ता के लिए पर्याप्त उपचार उपलब्ध हैं। दत्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा उन्हें राहत देने से इनकार करने के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका दायर की।

    सीजेआई ने टिप्पणी की,

    "मूल्यांकन कार्यवाही के तहत आपको अपने सभी उपचार मिलेंगे... उपचारों की पूरी श्रृंखला उपलब्ध है।"

    याचिकाकर्ता के लिए सीनियर एडवोकेट चंदर उदय सिंह ने तर्क दिया कि विवादित आदेश द्वारा दिए गए तर्क 'पूरी तरह से दुर्भावनापूर्ण' थे।

    उन्होंने कहा,

    "यह पूरी तरह से दुर्भावनापूर्ण है, क्योंकि कोयला खनन के क्षेत्र में काम किया, कोयले से संबंधित पर्यावरणीय मुद्दों पर काम किया, इसलिए यह राष्ट्र विरोधी है।"

    उन्होंने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता के संगठन लॉयर्स इनिशिएटिव फॉर फॉरेस्ट एंड एनवायरनमेंट (LIFE) को एक ही आरोपों के आधार पर 5-6 कर निर्धारण वर्षों के लिए अलग-अलग डिमांड नोटिस दिए गए। हालांकि हाईकोर्ट ने ऐसे दो मामलों में नोटिस जारी किया और कार्यवाही पर रोक लगाई, लेकिन उसने वर्तमान मामले में राहत देने से इनकार किया।

    सिंह ने कहा,

    "इस स्तर पर अंतरिम आदेशों में एकरूपता होनी चाहिए।"

    कर अधिकारियों के वकील ने याचिकाकर्ता और विदेशी संगठन - अर्थ जस्टिस के बीच ईमेल आदान-प्रदान का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि अर्थ जस्टिस ने कोयले से संबंधित सार्वजनिक परियोजनाओं पर दबाव डालने के लिए कहा। उन्होंने तर्क दिया कि इस तरह की गतिविधि को कानूनी गतिविधि के रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता और याचिकाकर्ता द्वारा अर्थ जस्टिस से प्राप्त की गई कोई भी राशि पेशेवर प्राप्तियों के रूप में नहीं मानी जाएगी। इस प्रकार याचिकाकर्ता के ट्रस्ट को आयकर अधिनियम की धारा 68 के तहत करदाता के 'अस्पष्टीकृत नकद ऋण' के रूप में कटौती के अधीन किया जाएगा।

    उन्होंने आगे कहा,

    "धारा 68 के कारण न केवल उन पर कर की दर का 60% लगाया जाएगा, बल्कि व्यय भी अस्वीकृत कर दिए जाएंगे। इनमें से कोई भी अर्थ जस्टिस और करदाता के बीच ईमेल आदान-प्रदान की प्रकृति को देखते हुए व्यावसायिक प्राप्तियों के रूप में योग्य नहीं होगा। चल रही सार्वजनिक परियोजनाओं पर विदेशी दबाव डालने के लिए आदान-प्रदान किया गया, जिसे मुकदमेबाजी या कानूनी गतिविधि के रूप में नहीं माना जा सकता है, इसलिए यह व्यावसायिक प्राप्तियां नहीं हो सकती।"

    आयकर अधिनियम की धारा 68 में प्रावधान है कि करदाता द्वारा अकाउंट में जमा किए गए लोन सहित प्राप्त किसी भी आय को कराधान के लिए घोषित किया जाना चाहिए, जब तक कि कानून द्वारा विशेष रूप से छूट न दी गई हो। इसका अनुपालन करने में विफलता की स्थिति में करदाता को आय के स्रोत और गैर-रिपोर्टिंग की व्याख्या करने की आवश्यकता होती है।

    सिंह ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि पुनर्मूल्यांकन के लिए वर्तमान नोटिस का उपयोग दत्ता के पर्यावरण कार्य को रोकने के लिए दबाव की रणनीति के रूप में किया जा रहा है।

    आगे कहा गया,

    "वह बहुत ही प्रतिष्ठित वकील हैं, वह पर्यावरण के मुद्दों पर काम कर रहे हैं, उनका रिकॉर्ड बेदाग है। यह दबाव की रणनीति के अलावा कुछ नहीं है, क्योंकि वह कोयले पर पर्यावरण के मुद्दों से लड़ रहे हैं।"

    संघ की ओर से उपस्थित सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कर अधिकारियों की दलीलों को पूरक बनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता/करदाता ने आय को फीस के रूप में दिखाया, लेकिन इसका पेशेवर प्राप्तियों से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि इसका उद्देश्य चल रही सार्वजनिक परियोजनाओं को रोकना था।

    केस टाइटल: रितविक दत्ता बनाम आयकर उप आयुक्त, एसएलपी (सी) नंबर 016904 - / 2024

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