सुप्रीम कोर्ट ने विद्युत मंत्रालय और नियामकों को विद्युत क्षेत्र में उत्सर्जन कम करने के लिए संयुक्त कार्य योजना तैयार करने का निर्देश दिया
Shahadat
2 Aug 2025 11:18 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में (22 जुलाई) विद्युत मंत्रालय को केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) और केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC) के साथ संयुक्त बैठक आयोजित करने का निर्देश दिया ताकि विद्युत उत्पादन क्षेत्र से कार्बन उत्सर्जन कम करने हेतु एक समन्वित कार्य योजना तैयार की जा सके।
न्यायालय ने तीनों निकायों को चार सप्ताह के भीतर संयुक्त हलफनामा दायर करने का आदेश दिया, जिसमें लागू कानूनी ढाँचे और उत्सर्जन से निपटने के लिए प्रस्तावित कदमों का विवरण दिया गया हो।
जस्टिस पमिदिघंतम श्री नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की खंडपीठ ने बाल कार्यकर्ता रिधिमा पांडे द्वारा दायर जनहित याचिका पर यह आदेश पारित किया, जिसमें जलवायु परिवर्तन से निपटने के भारत सरकार के दृष्टिकोण को चुनौती दी गई थी। न्यायालय ने विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 70 और 76 के तहत सीईए और सीईआरसी को प्रतिवादी पक्ष बनाया है।
न्यायालय ने कहा,
“विद्युत उत्पादन से उत्पन्न होने वाले कार्बन उत्सर्जन के मुद्दे को हल करने के लिए हम यह आवश्यक समझते हैं कि सभी हितधारक अल्पकालिक और दीर्घकालिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए व्यवस्थित और सुसंगत रूप से योजना पर चर्चा, निर्माण और कार्यान्वयन के लिए एक ही मंच पर हों। इसलिए विद्युत उत्पादन, पारेषण और वितरण की प्रक्रिया में शामिल लोगों के साथ-साथ नियामकों को भी जोड़ना आवश्यक है। यह सुनिश्चित करना भी उतना ही आवश्यक है कि नीति निर्माता जमीनी हकीकत और नियामक एवं कार्यान्वयन तंत्र की कठिनाइयों से अवगत हों”
यह निर्देश 2021 में एक 11 वर्षीय लड़की द्वारा दायर एक अपील पर आया, जिसमें जलवायु परिवर्तन पर सरकार की प्रतिक्रिया को चुनौती दी गई। यह याचिका मूल रूप से 2017 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण के समक्ष दायर की गई और 2019 में खारिज कर दी गई। इसमें उचित जलवायु प्रभाव आकलन के बिना कार्बन-प्रधान परियोजनाओं को मंजूरी देने पर चिंता जताई गई और 2050 तक उत्सर्जन को सीमित करने के लिए एक राष्ट्रीय जलवायु पुनर्प्राप्ति योजना और एक "कार्बन बजट" की मांग की गई है।
5 दिसंबर, 2024 को न्यायालय ने अधिवक्ता जय चीमा और सुधीर मिश्रा को एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया और भारत सरकार को कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने वाले प्रासंगिक नियमों का संकलन प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
21 फरवरी, 2025 को न्यायालय ने जलवायु परिवर्तन को अस्तित्वगत वैश्विक संकट के रूप में मान्यता दी, जिसके परिणाम पर्यावरणीय क्षरण से कहीं अधिक हैं। न्यायालय ने कहा कि बढ़ते तापमान, अनियमित मौसम पैटर्न और बाढ़, सूखा और लू जैसी चरम जलवायु घटनाएं जन स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए गंभीर खतरे पैदा करती हैं।
न्यायालय ने पाया कि पर्यावरण प्रशासन से जुड़े विभिन्न मंत्रालय "अलग-अलग" काम कर रहे हैं, जिससे समन्वय की कमी हो रही है। इसने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसी नियामक संस्थाओं को वित्तीय और स्टाफिंग संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ता है और अक्सर वास्तविक समय के आंकड़ों तक उनकी पहुँच नहीं होती, जिससे प्रभावी कार्यान्वयन प्रभावित होता है।
22 जुलाई, 2025 को सुप्रीम को्रट ने एमिक्स क्यूरी के विस्तृत लिखित प्रस्तुतियों पर विचार किया। उन्होंने न्यायालय को बताया कि बिजली उत्पादन 8% कार्बन उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार है और कई कोयला-आधारित ताप विद्युत संयंत्र राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के 300 किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं।
एमिक्स ने केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) के एक अध्ययन का हवाला दिया, जिसमें पाया गया कि अप्रैल 2022 और अगस्त 2023 के बीच कई ताप विद्युत संयंत्रों ने आवश्यक उत्सर्जन मानकों का पालन नहीं किया। एक रिपोर्ट में कहा गया कि ये संयंत्र दिल्ली में पीएम 2.5 प्रदूषण में लगभग 8% का योगदान करते हैं। ऊर्जा और स्वच्छ वायु अनुसंधान केंद्र (CREA) की एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया कि ये संयंत्र पराली जलाने की तुलना में कहीं अधिक सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं, जबकि पराली जलाने पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
उन्होंने बताया कि कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र पीएम 2.5, पीएम 10, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसे हानिकारक प्रदूषक छोड़ते हैं। पराली जलाने से निकलने वाले धुएँ के विपरीत, जिसे आसानी से देखा जा सकता है, ये प्रदूषक ऊंची चिमनियों के माध्यम से निकलते हैं और लंबी दूरी तक फैल सकते हैं।
यद्यपि भारतीय कोयले में सल्फर की मात्रा लगभग 0.7% या उससे कम होती है, फिर भी जलने पर इसका अधिकांश भाग सल्फर डाइऑक्साइड और ट्राइऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है। इन उत्सर्जनों को फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) प्रणालियों और इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर्स (ESP) का उपयोग करके कम किया जा सकता है। हालाँकि, एमिक्स ने प्रस्तुत किया कि 2026 तक FGD स्थापित करने के लिए आवश्यक 540 ताप विद्युत इकाइयों में से केवल लगभग 8% ने ही ऐसा किया है।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF-&CC) ने 30 दिसंबर, 2024 को ताप विद्युत संयंत्रों (TPP) को SO2 उत्सर्जन मानदंडों को पूरा करने के लिए एक और विस्तार जारी किया, जो इस तरह की चौथी देरी है। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 27 जनवरी, 2025 को इस पर चिंता व्यक्त की थी और चेतावनी दी कि विस्तारित समयसीमा दिल्ली के वायु प्रदूषण को और खराब कर सकती है। एमिक्स ने प्रस्तुत किया कि जब तक नवीकरणीय स्रोत मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हो जाते, तब तक कोयला आधारित संयंत्र चलते रहेंगे।
एमिक्स क्यूरी ने 11 जुलाई, 2025 को जारी एक नई पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की अधिसूचना पर चिंता व्यक्त की, जिसके अनुसार, यह 2015 में निर्धारित कड़े उत्सर्जन मानदंडों को कमजोर करता है।
मंत्रालय द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया कि 2005 और 2020 के बीच भारत की उत्सर्जन तीव्रता सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में 36% कम हो गई। मंत्रालय ने कहा कि भारत का वन और वृक्ष आच्छादन अब उसके भौगोलिक क्षेत्र का 25.17% है, और 2005 और 2021 के बीच एक अरब टन CO2 समतुल्य अतिरिक्त कार्बन सिंक का निर्माण हुआ।
न्यायालय ने कहा कि बिजली उत्पादन से होने वाले उत्सर्जन से निपटने के लिए व्यवस्थित और सुसंगत दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सभी हितधारकों - उत्पादकों, नियामकों, नीति निर्माताओं और कार्यपालिका - के बीच समन्वय शामिल हो। मामले की अगली सुनवाई 19 अगस्त, 2025 को होगी।
केस टाइटल- रिधिमा पांडे बनाम भारत संघ एवं अन्य।

