BREAKING| सुप्रीम कोर्ट का ECI को निर्देश: आधार कार्ड को पहचान प्रमाण के रूप में स्वीकार करें

Shahadat

8 Sept 2025 4:17 PM IST

  • BREAKING| सुप्रीम कोर्ट का ECI को निर्देश: आधार कार्ड को पहचान प्रमाण के रूप में स्वीकार करें

    बिहार विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (8 सितंबर) को भारत के चुनाव आयोग (ECI) को निर्देश दिया कि वह आधार कार्ड को "12वें दस्तावेज़" के रूप में माने, जिसे बिहार की संशोधित मतदाता सूची में शामिल होने के लिए पहचान के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।

    इसका अर्थ है कि आधार कार्ड को मतदाता सूची में शामिल होने के लिए स्वतंत्र दस्तावेज़ के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है, जैसे कि चुनाव आयोग द्वारा मूल रूप से स्वीकार्य अन्य ग्यारह दस्तावेज़ों में से किसी एक को भी।

    न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है। न्यायालय ने भारत के चुनाव आयोग को आधार की स्वीकृति के संबंध में अपने अधिकारियों को निर्देश जारी करने का निर्देश दिया।

    न्यायालय ने आगे स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग के अधिकारी मतदाताओं द्वारा प्रस्तुत आधार कार्ड की प्रामाणिकता और वास्तविकता की पुष्टि करने के हकदार होंगे।

    न्यायालय ने कहा कि आधार अधिनियम के अनुसार, आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है। हालांकि, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 23(4) को ध्यान में रखते हुए आधार कार्ड किसी भी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के उद्देश्य से एक दस्तावेज़ है।

    न्यायालय ने चुनाव आयोग के इस वचन को दर्ज किया कि आधार कार्ड को पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाएगा।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने यह आदेश तब पारित किया जब राजद और अन्य याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि चुनाव आयोग के अधिकारी मतदाता सूची में शामिल करने के लिए आधार कार्ड को एक स्वतंत्र दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार नहीं कर रहे हैं और चुनाव आयोग द्वारा अपनी SIR अधिसूचना में निर्दिष्ट ग्यारह दस्तावेज़ों में से किसी एक को प्रस्तुत करने पर ज़ोर दे रहे हैं।

    राजद की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी कि आधार कार्ड पर भी विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित तीन आदेशों के बावजूद, निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी और बूथ स्तर के अधिकारी इसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं। उन्होंने आधार कार्ड स्वीकार करने के लिए एक BLO को कथित तौर पर जारी किए गए कारण बताओ नोटिस का हवाला दिया। सिब्बल ने दलील दी कि ECI ने अपने अधिकारियों को आधार कार्ड स्वीकार करने के लिए कोई निर्देश नहीं दिया, इसलिए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं हो रहा है। सिब्बल ने यह भी कहा कि कई मतदाताओं के हलफनामे दायर किए गए, जिनके आधार कार्ड स्वीकार नहीं किए गए।

    सिब्बल ने कहा,

    "आधार कार्ड जनता के पास सर्वत्र उपलब्ध दस्तावेज़ है। अगर वे इसे स्वीकार नहीं कर सकते तो वे किस तरह का समावेशन अभियान चला रहे हैं? वे गरीबों को इससे बाहर रखना चाहते हैं।"

    ECI की ओर से सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने दलील दी कि आधार को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस पर सिब्बल ने हस्तक्षेप करते हुए तर्क दिया कि ECI को नागरिकता निर्धारित करने का कोई अधिकार नहीं है। द्विवेदी इस दलील से असहमत हैं। उन्होंने कहा कि कम से कम मतदाता सूची के लिए ECI को यह तय करने का अधिकार है कि आवेदक नागरिक है या नहीं। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि इस मुद्दे पर एक बार और हमेशा के लिए फैसला सुनाया जाए।

    द्विवेदी ने आगे कहा कि चुनाव आयोग ने आधार को स्वीकार करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बारे में मतदाताओं को जानकारी देने के लिए मीडिया में सार्वजनिक विज्ञापन जारी किए।

    इस अवसर पर जस्टिस बागची ने बताया कि पासपोर्ट और जन्म प्रमाण पत्र को छोड़कर ECI द्वारा निर्दिष्ट अन्य 11 दस्तावेज़ों में से कोई भी नागरिकता का प्रमाण नहीं है।

    जस्टिस बागची ने कहा,

    "हम आपसे स्पष्टीकरण चाहते हैं... हमने बार-बार आदेश पारित किया कि सूची में उदाहरण के तौर पर 11 दस्तावेज़ों का उल्लेख है... अगर आप उन 11 दस्तावेज़ों को देखें तो पासपोर्ट और जन्म प्रमाण पत्र के अलावा कोई भी नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं है। हमने स्पष्ट किया है कि आधार को भी इसमें शामिल किया जाए।"

    एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सभी राज्यों में राष्ट्रव्यापी SIR की मांग करते हुए एक अलग याचिका दायर की है। उन्होंने दलील दी कि अगर व्यक्ति के पास इन ग्यारह दस्तावेज़ों में से कोई भी नहीं है तो आधार कार्ड स्वीकार नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस बागची ने इस पर कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में ही आधार कार्ड का उल्लेख है।

    सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने स्पष्ट किया कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 23(4) में आधार कार्ड को पहचान के दस्तावेज़ के रूप में संदर्भित किया गया है। एडवोकेट वृंदा ग्रोवर ने बताया कि फॉर्म 6 (पहली बार मतदान करने वालों के लिए) में भी आधार कार्ड को स्वीकार्य दस्तावेजों में से एक बताया गया।

    उपाध्याय ने जब कहा कि कई आधार कार्ड जाली हैं तो जस्टिस कांत ने कहा कि किसी भी दस्तावेज में जालसाजी की जा सकती है।

    खंडपीठ ने जब स्पष्ट किया कि आधार को कम से कम पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए तो द्विवेदी ने कहा कि ऐसा किया जाएगा। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने खंडपीठ से यह स्पष्ट करने का अनुरोध किया कि आधार को "12वें दस्तावेज" के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।

    शंकरनारायणन ने कहा,

    "अन्यथा, यह आदेश नीचे तक नहीं पहुंचेगा और यह इस न्यायालय द्वारा पारित अन्य तीन पूर्व आदेशों की तरह ही रहेगा।"

    जजों ने आपस में संक्षिप्त चर्चा के बाद अपने आदेश में यह स्पष्ट करने का निर्णय लिया कि आधार को "12वें दस्तावेज" के रूप में माना जाना चाहिए।

    Case Title: ASSOCIATION FOR DEMOCRATIC REFORMS AND ORS. Versus ELECTION COMMISSION OF INDIA, W.P.(C) No. 640/2025 (and connected cases)

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