सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को भारत-पाक युद्ध में घायल होने वाले रिटायर सैन्य अधिकारी को दिव्यांगता पेंशन के बकाया पर ब्याज देने का निर्देश दिया
Shahadat
20 Sept 2024 10:01 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सराकर को 1971 के भारत-पाक युद्ध में घुटने के नीचे अपना दाहिना पैर गंवाने वाले रिटायर सैन्य अधिकारी को विकलांगता पेंशन के बकाया पर ब्याज देने का निर्देश दिया।
जस्टिस अभय ओक, जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण द्वारा बढ़ाए जाने के बाद अपनी दिव्यांगता पेंशन के बकाया पर ब्याज मांगने वाले रिटायर सैन्य अधिकारी की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया।
प्रतिवादी की ओर से पेश हुए एएसजी ने कहा कि यद्यपि अपीलकर्ता 01.01.2016 से पहले राहत पाने का हकदार नहीं था, लेकिन केवल इसलिए कि अपीलकर्ता को भारत-पाक युद्ध में चोटें आई हैं, प्रतिवादी ने विवादित निर्णय को चुनौती नहीं दी। तथ्य यह है कि न्यायाधिकरण द्वारा अपीलकर्ता को दी गई पात्रता को प्रतिवादी द्वारा चुनौती नहीं दी गई।
न्यायालय ने कहा,
यह सच है कि मूल आवेदन 16 मार्च 2022 को देरी से दायर किया गया। हमारे विचार में अपीलकर्ता को निर्णय के पैराग्राफ 8 के अनुसार भुगतान किए जाने के निर्देशानुसार अंतर राशि पर 17 मार्च 2019 से शुरू होकर आरोपित निर्णय के पैराग्राफ 8 के अनुसार बकाया भुगतान की तिथि तक 3 वर्ष की अवधि के लिए 6% प्रति वर्ष की दर से ब्याज दिया जाना चाहिए था। हम प्रतिवादी को ब्याज राशि का भुगतान करने के लिए 3 महीने का समय देते हैं। उपरोक्त शर्तों में अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है।”
अपीलकर्ता मूल रूप से 1970 में सेना में शामिल हुआ था और 1971 के भारत-पाक युद्ध में ऑपरेशन के दौरान माइन विस्फोट में घायल हो गया था। उसका दाहिना पैर घुटने के नीचे से काट दिया गया और उसे कृत्रिम अंग लगाया गया। वर्ष 2022 में अपीलकर्ता ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के समक्ष आवेदन दायर कर युद्ध में लगी चोटों के लिए पेंशन को बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने की मांग की।
पिछले वर्ष न्यायाधिकरण ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह उसे 1 अप्रैल, 1998 से पूर्वव्यापी रूप से बढ़ी हुई दिव्यांगता पेंशन प्रदान करे। हालांकि, अपीलकर्ता ने 1 अप्रैल, 1998 से बकाया राशि पर ब्याज की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने प्रस्तुत किया कि अपीलकर्ता 1 जनवरी, 2016 से पहले बढ़ी हुई पेंशन का हकदार नहीं था, लेकिन सरकार ने अधिकारी की युद्ध चोटों की प्रकृति पर विचार करते हुए न्यायाधिकरण के आदेश को चुनौती नहीं दी।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि यद्यपि अधिकारी ने मूल आवेदन मार्च 2022 में देरी से दायर किया, लेकिन अंततः 75 प्रतिशत दिव्यांगता पेंशन के लिए उसके अधिकार को केंद्र द्वारा चुनौती नहीं दी गई। न्यायालय ने भारत संघ को 17 मार्च, 2019 से बकाया राशि के भुगतान तक तीन वर्षों के लिए अंतर राशि पर 6 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज का भुगतान करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने ब्याज भुगतान के लिए तीन महीने का समय दिया।
28 अगस्त, 2023 को पहले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि अपीलकर्ता ने अपनी दिव्यांगता पेंशन के अतिरिक्त 15 प्रतिशत घटक पर ब्याज मांगा, जबकि केंद्र सरकार ने अपना रुख बदल दिया और 10 नवंबर, 2022 को दिए गए न्यायाधिकरण के फैसले को चुनौती देने का फैसला किया। न्यायालय ने कहा कि सरकार द्वारा विलंबित एसएलपी दायर करने का प्रयास विचार में बदलाव प्रतीत होता है, क्योंकि अपीलकर्ता ने ब्याज में बहुत सीमित राहत मांगी थी।
इसके बाद न्यायालय ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में अपीलकर्ता की सेवा क्षति को उजागर करने के लिए आरोपित निर्णय के हिस्से की ओर इशारा करते हुए टिप्पणी की,
“हमें उम्मीद और भरोसा है कि जो प्राधिकारी आरोपित आदेश को चुनौती देने का निर्णय लेगा, वह निश्चित रूप से आरोपित निर्णय के पैराग्राफ 3 में उल्लिखित बातों पर विचार करेगा।”
अंततः, केंद्र सरकार ने अपीलकर्ता के पक्ष में निर्णय को चुनौती नहीं दी।
केस टाइटल- कर्नल महिंदर कुमार इंजीनियर्स (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ और अन्य।