बाद की पीठों द्वारा फैसले पलटने की बढ़ती प्रवृत्ति चिंताजनक: सुप्रीम कोर्ट
Praveen Mishra
27 Nov 2025 4:23 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (26 नवंबर) को बेंच हंटिंग की कोशिशों पर कड़ी नाराज़गी जताते हुए कहा कि हाल के वर्षों में यह प्रवृत्ति बढ़ रही है, जहां पक्षकार किसी पूर्व पीठ के फैसले को बदलवाने के लिए बाद की पीठों के सामने नई याचिकाएँ दायर करते हैं। कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर ऐसी प्रथाओं को बढ़ावा मिला, तो अनुच्छेद 141 का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा, क्योंकि कोई भी फैसला अंतिम नहीं रहेगा और हर बार नई पीठ यह मानकर उसे बदल सकती है कि उसका दृष्टिकोण “बेहतर” है।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा,
“हाल ही में हमने पीड़ा के साथ देखा है कि इस कोर्ट के फैसले—चाहे निर्णय देने वाले जज सेवा में हों या न हों और चाहे कितना ही समय बीत गया हो—बाद की पीठों या विशेष रूप से गठित पीठों द्वारा कुछ पक्षकारों के कहने पर बदलने की कोशिश की जा रही है।”
खंडपीठ ने आगे कहा कि यदि कोई मामला res integra (अभी तक अनिर्णीत) नहीं है, तो उसे दोबारा नहीं खोला जाना चाहिए, अन्यथा न्यायिक व्याख्या में स्थिरता खत्म हो जाएगी और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों की विशेष बाध्यता (Article 141) कमजोर हो जाएगी।
हाल ही में, वनशक्ति, दिल्ली पटाखा प्रतिबंध, तमिलनाडु राज्यपाल मामला, भूषण स्टील इनसॉल्वेंसी आदि मामलों में पुनर्विचार जैसी प्रवृत्ति देखी गई है।
यह टिप्पणियाँ उस समय की गईं जब खंडपीठएक हत्या के आरोपी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने अपनी जमानत की शर्तों में संशोधन की मांग की थी। आरोपी को पहले जस्टिस अभय एस. ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह कहते हुए जमानत दी थी कि उसे कोलकाता से बाहर जाने की अनुमति नहीं होगी। संशोधन का पहला आवेदन खारिज होने के बाद, आरोपी ने जस्टिस ओका के सेवानिवृत्त होने के उपरांत जस्टिस दत्ता की पीठ के सामने फिर से आवेदन दायर किया, जिससे कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि यह स्पष्ट रूप से बेंच हंटिंग का मामला है।
आवेदन खारिज करते हुए, जस्टिस दत्ता द्वारा लिखे निर्णय में कहा गया कि
“किसी पूर्व निर्णय को बाद के निर्णय से उलट देना यह नहीं दर्शाता कि न्याय बेहतर तरीके से किया गया है।”
खंडपीठ ने कहा कि इस तरह की छूट देना अनुच्छेद 141 की उस भावना को तोड़ देगा, जिसका उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को अंतिमता प्रदान करना है।
कोर्ट ने कहा,
“यदि अब शर्त में ढील दी जाती है, तो यह न केवल जमानत देने वाले आदेश का उल्लंघन होगा, बल्कि यह भी संदेश जाएगा कि सुप्रीम कोर्ट अपने ही फैसलों की अंतिमता के सिद्धांत को लेकर गंभीर नहीं है। चूँकि जमानत की कठोर शर्तें उस समय परिस्थितियों के अनुरूप उचित थीं और परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं हुआ है, इसलिए दखल देने का कोई कारण नहीं है।”
अंततः, आरोपी का आवेदन खारिज कर दिया गया।

