सुप्रीम कोर्ट ने मेघालय सरकार से बलात्कार के मामलों में 'टू-फिंगर' टेस्ट पर प्रतिबंध के बारे में स्पष्ट निर्देश जारी करने को कहा

Shahadat

16 May 2024 3:44 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने मेघालय सरकार से बलात्कार के मामलों में टू-फिंगर टेस्ट पर प्रतिबंध के बारे में स्पष्ट निर्देश जारी करने को कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने मेघालय हाईकोर्ट के फैसले से उत्पन्न आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए इस बात पर निराशा व्यक्त की कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निंदा किए जाने के बावजूद बलात्कार के मामले में "टू-फिंगर टेस्ट" का इस्तेमाल किया गया। न्यायालय ने यह भी ध्यान में रखा कि लिल्लू @ राजेश और अन्य बनाम हरियाणा राज्य (2013) 14एससीसी 643 के मामले में निर्णय में यह मानते हुए कहा था कि बलात्कार पीड़िता पर टू-फिंगर टेस्ट उसके निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है, वर्तमान घटना घटित होने से पहले पारित किया गया।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह सच है कि मौजूदा मामले में घटना एक दशक पहले 26.10.2013 को हुई थी। इस प्रकार, मौजूदा मामले में "टू-फिंगर टेस्ट" आयोजित करने के घृणित आचरण को जारी रखने का खुलासा हुआ। लिल्लू उर्फ राजेश और अन्य बनाम हरियाणा राज्य में इस न्यायालय का निर्णय [(2013) 14 एससीसी 643]।"

    जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें बलात्कार के अपराध के लिए आरोपी/वर्तमान अपीलकर्ता की सजा की पुष्टि की गई। उसी पर सुनवाई करते हुए अदालत को चौंकाने वाली घटना का सामना करना पड़ा, जहां बलात्कार पीड़िता पर टू-फिंगर टेस्ट लागू किया गया। इससे पहले कोर्ट ने मेघालय राज्य से सवाल किया कि बलात्कार के मामलों में "टू-फिंगर टेस्ट" की इस प्रथा को खत्म करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "याचिका पर विचार करते समय और चौंकाने वाली घटना सामने आई, जिसमें पता चला कि बलात्कार की शिकार महिला को यौन संबंध बनाने की आदत थी या नहीं, यह निर्धारित करने के लिए "टू-फिंगर टेस्ट" आयोजित करने की प्रथा पर प्रतिबंध के बावजूद, इस अदालत ने इसकी कड़ी निंदा की है। परीक्षण की प्रकृति प्रतिगामी और आक्रामक होने के कारण हमने राज्य के वकील से एक प्रश्न पूछा है कि इस न्यायालय के विभिन्न निर्णयों के आलोक में इस बुरी प्रथा को खत्म करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।

    तदनुसार, राज्य के एडवोकेट जनरल अमित कुमार ने झारखंड राज्य बनाम शैलेन्द्र कुमार राय उर्फ पांडव राय (2022) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में अदालत को अवगत कराया कि इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए उचित कार्रवाई की गई है। उल्लिखित मामले में न्यायालय ने वर्ष 2022 में बलात्कार के मामलों में "टू-फिंगर टेस्ट" पर रोक दोहराई थी और चेतावनी दी थी कि ऐसा टेस्ट करने वाले व्यक्तियों को कदाचार का दोषी माना जाएगा।

    उन्होंने इस प्रथा के उपयोग के खिलाफ जारी दिशानिर्देशों और हालिया पत्र का भी हवाला दिया, जिसमें चेतावनी दी गई कि शैलेन्द्र कुमार राय के मामले का उल्लंघन कदाचार माना जाएगा।

    हालांकि, ऐसे पत्र से असंतुष्ट न्यायालय ने कहा:

    “जब किसी विशेष प्रथा की इस न्यायालय द्वारा बार-बार निंदा की जाती है और इसे प्रतिगामी और आक्रामक प्रकृति के रूप में वर्णित किया जाता है तो हमारा विचार है कि दिनांक 29.4.2024 के उक्त पत्र के संदर्भ में प्रस्तावित कार्रवाई विशिष्ट होनी चाहिए और परिणाम अवश्य होंगे गंभीर प्रकृति का बताया गया।”

    इसे देखते हुए राज्य अधिकारी ने कहा कि शैलेन्द्र कुमार राय के मामले के आलोक में उचित आगे के आदेश जारी किये जाएंगे। यह सुनिश्चित करने के लिए आदेश पारित किए जाएंगे कि उक्त प्रथा का उन्मूलन हो।

    तदनुसार, अदालत ने मामले को 29 सितंबर के लिए पोस्ट कर दिया।

    केस टाइटल: सनशाइन खारपन बनाम मेघालय राज्य, डायरी नं. - 48388/2023

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