प्रभावी भाग सुनाए जाने के बाद निर्णयों को अपलोड करने में देरी न करें हाईकोर्ट: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

9 Sept 2025 3:25 PM IST

  • प्रभावी भाग सुनाए जाने के बाद निर्णयों को अपलोड करने में देरी न करें हाईकोर्ट: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को चेतावनी दी कि वे निर्णय के प्रभावी भाग सुनाए जाने के बाद उसे अपलोड करने में देरी न करें। न्यायालय ने दोहराया कि निर्णय सुरक्षित रखे जाने की तिथि से तीन महीने के भीतर पक्षकारों को उपलब्ध करा दिए जाने चाहिए।

    अदालत ने कहा,

    "हमें उम्मीद है कि हमें ऐसा कोई मामला देखने को नहीं मिलेगा, जिसमें हाईकोर्ट द्वारा तर्कसंगत आदेश अपलोड करने में, खासकर निर्णय के प्रभावी भाग सुनाए जाने के बाद, देरी हो।"

    जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की, जहां उन्होंने पाया कि आपराधिक अपील में आदेश के प्रभावी भाग को पढ़े जाने की तिथि से पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा निर्णय अपलोड करने में दो वर्ष से अधिक की देरी हुई, जहां अपीलकर्ता की दोषसिद्धि की पुष्टि की गई। हालांकि, तर्कसंगत निर्णय दो वर्ष और पांच महीने की घोर देरी के बाद अपलोड किया गया था।

    अपीलकर्ता-दोषी ने हाईकोर्ट द्वारा निर्णय अपलोड करने में देरी और गुण-दोष के अन्य आधारों पर अपनी दोषसिद्धि रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    अदालत ने दोषसिद्धि में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि यदि निर्णय अन्यथा ठोस है तो केवल निर्णय अपलोड करने में देरी से दोषसिद्धि रद्द नहीं हो सकती।

    अदालत ने कहा,

    "हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि निर्णय अपलोड करने में 2 वर्ष 5 महीने की देरी होने के बावजूद, दोनों प्रत्यक्षदर्शियों की मौखिक गवाही विश्वास पैदा करती है और रिकॉर्ड में ऐसा कोई भी आंतरिक साक्ष्य नहीं है जिससे उनकी गवाही संदिग्ध हो।"

    हालांकि, अदालत ने "गंभीर चिंता" व्यक्त की और कहा कि इस तरह की प्रथाएं पारदर्शिता को कम करती हैं और वादियों के प्रति पूर्वाग्रह पैदा करती हैं। न्यायालय ने अनिल राय बनाम बिहार राज्य (2001) 7 एससीसी 318 मामले में निर्धारित दिशानिर्देशों को दोहराया, जिसमें यह माना गया कि निर्णय सामान्यतः सुरक्षित रखे जाने के तीन महीने के भीतर सुनाए जाने चाहिए।

    अदालत ने कहा,

    "कुछ हाईकोर्ट में पिछले कुछ समय से यह चलन रहा है कि वे बिना किसी ठोस निर्णय के आदेश का क्रियान्वयनात्मक भाग सुना देते हैं। काफी समय बाद ठोस निर्णय अपलोड किया जाता है। इस अदालत ने अपने कई निर्णयों और आदेशों में इस प्रथा की निंदा की है। हाईकोर्ट की यह प्रथा पीड़ित पक्ष को आगे न्यायिक समाधान प्राप्त करने के अवसर से वंचित करती है, खासकर उन आपराधिक मामलों में जहां निचली अदालत द्वारा पारित निर्णय और दोषसिद्धि के आदेश की पुष्टि करते हुए अपील खारिज कर दी जाती है।"

    अदालत ने आगे कहा,

    "अनिल राय (सुप्रा) मामले में दिए गए दिशानिर्देश और टिप्पणियां, अदालत के समक्ष किसी भी मामले में न्याय प्रदान करने की प्रक्रिया के लिए मौलिक हैं। उनमें निर्धारित सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए। यह अदालत एक ऐसे मुद्दे से चिंतित है, जहां आदेश तो सुनाया गया। हालांकि, तीन महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी कारण स्पष्ट नहीं किए गए और दोनों पक्षकारों में से किसी को भी निर्णय उपलब्ध नहीं था।"

    खंडपीठ ने रवींद्र प्रताप शाही बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में हाल ही में दिए गए निर्देश का हवाला दिया कि यदि फैसला सुरक्षित रखने की तिथि से तीन महीने के भीतर फैसला नहीं सुनाया जाता है तो रजिस्ट्रार को मामले को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।

    रतिलाल झावेरभाई परमार एवं अन्य बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य मामले का भी हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया कि तर्कसंगत फैसला, प्रभावी भाग सुनाए जाने के 2-5 दिनों के भीतर दिया जाना चाहिए।

    हाईकोर्ट को समय पर फैसला सुनाने के लिए पूर्वोक्त चेतावनी के साथ अपील खारिज कर दी गई।

    Cause Title: RAJAN VERSUS THE STATE OF HARYANA

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