The Kashmir Walla के पत्रकार फहद शाह को सुप्रीम कोर्ट से मिली जमानत

Shahadat

16 Oct 2024 10:28 AM IST

  • The Kashmir Walla के पत्रकार फहद शाह को सुप्रीम कोर्ट से मिली जमानत

    सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट के उस फैसले को गलत करार दिया, जिसमें कहा गया कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम 1967 (UAPA Act) के तहत किसी आरोपी को जमानत दी जा सकती है, बशर्ते कि वह समाज के लिए कोई "स्पष्ट और मौजूदा खतरा" पेश न करे।

    कश्मीर के न्यूज जर्नालिस्ट पीरजादा शाह फहद को जमानत देने वाले हाईकोर्ट के फैसले में यह भी कहा गया कि भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना UAPA Act की धारा 15 के तहत आतंकवादी कृत्य नहीं माना जा सकता।

    हालांकि, हाईकोर्ट के फैसले को गलत बताते हुए और यह निर्देश देते हुए कि इसे मिसाल के तौर पर नहीं पेश किया जाना चाहिए, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने फहद शाह को दी गई जमानत में हस्तक्षेप नहीं किया।

    हाईकोर्ट ने 1919 में शेंक बनाम युनाइटेड स्टेट्स में दिए गए अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया और इस बात पर जोर दिया कि UAPA Act के तहत गिरफ्तारी को इस आधार पर उचित ठहराया जाना चाहिए कि आरोपी समाज के लिए "स्पष्ट और वर्तमान खतरा" पैदा कर रहा है।

    अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं को संबोधित करते हुए माना कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करने के खिलाफ प्रतिबंध महत्वपूर्ण है, लेकिन यह निरपेक्ष नहीं है और परिस्थितियों के अधीन हो सकता है। न्यायालय ने कहा कि किसी भाषण को संरक्षित न किए जाने के लिए, केंद्रीय मुद्दा यह है कि क्या शब्द वास्तविक बुराइयों को जन्म देने का "स्पष्ट और वर्तमान खतरा" पैदा करते हैं, जिसे रोकने का अधिकार कांग्रेस के पास है।

    सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

    पीठ ने बाबूलाल पराटे बनाम महाराष्ट्र राज्य, मद्रास राज्य बनाम वीजी रो और अरूप भुयान बनाम असम राज्य में सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों पर अपना निर्णय आधारित किया, जिन्होंने भारत में सिद्धांत की प्रयोज्यता को खारिज कर दिया है।

    बाबूलाल पराटे बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शेंक मामले का संदर्भ दिया, लेकिन अमेरिकी सिद्धांत को भारतीय कानून में शामिल करने के खिलाफ था। इसने मद्रास राज्य बनाम वीजी रो का हवाला दिया और कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत मौलिक अधिकार निरपेक्ष नहीं हैं, बल्कि अनुच्छेद 19 के खंड (2) से (6) में उल्लिखित प्रतिबंधों के अधीन हैं।

    न्यायालय ने कहा,

    "यह कहना पर्याप्त है कि संविधान पीठों के पूर्वोक्त निर्णयों को ध्यान में रखते हुए यह निर्देश दिया जाता है कि आरोपित निर्णय और आदेश को किसी अन्य मामले में मिसाल के तौर पर उद्धृत नहीं किया जाएगा।"

    न्यायालय ने UAPA Act मामले में जर्नालिस्ट पीरजादा शाह फहद को जमानत देने के फैसले को चुनौती देने वाली केंद्र शासित प्रदेश जम्मू एंड कश्मीर द्वारा दायर दो एसएलपी खारिज करते हुए यह बात कही।

    ये याचिकाएं 17 नवंबर, 2023 को हाईकोर्ट के सामान्य आदेश से उत्पन्न हुई थीं, जिसमें 'द कश्मीर वाला' के संपादक फहद को जमानत दी गई थी और UAPA Act और आईपीसी के तहत कुछ आरोपों को खारिज कर दिया गया था।

    हाईकोर्ट ने फहद को जमानत दी थी और UAPA Act की धारा 18 और आईपीसी की धारा 121 और 153बी के तहत लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने UAPA Act की धारा 13 और विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (FCRA) की धारा 35 और 39 के तहत आरोपों की पुष्टि की थी।

    इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि शेंक बनाम यूनाइटेड स्टेट्स में 1919 के अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हाईकोर्ट का भरोसा गलत था। उन्होंने तर्क दिया कि बाबूलाल पराटे बनाम महाराष्ट्र राज्य (1961) और मद्रास राज्य बनाम वीजी रो (1952) में सुप्रीम कोर्ट की दो संविधान पीठों के फैसलों, अरूप भुइयां बनाम असम राज्य (2023) में तीन जजों के फैसले ने शेंक में स्थापित "स्पष्ट और वर्तमान खतरे" सिद्धांत को खारिज कर दिया था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि UAPA Act की धारा 18 के तहत आरोप को बरकरार रखने के लिए फहाद के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने मेहता की दलीलों में कुछ योग्यता को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप न करने का फैसला किया। कोर्ट ने कहा कि फहाद करीब एक साल से जमानत पर है और मुकदमा पहले ही शुरू हो चुका है। हालांकि, इसने माना कि हाईकोर्ट का फैसला, जो कि एक तरह से गलत है, अन्य मामलों में मिसाल के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि फहाद द्वारा जमानत की शर्तों का उल्लंघन या मुकदमे में असहयोग करने पर उसकी जमानत रद्द कर दी जाएगी।

    कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि फहाद को कुछ आरोपों से मुक्त कर दिया गया, लेकिन ट्रायल कोर्ट के पास CrPC की धारा 216 के तहत सबूतों के आधार पर आरोपों को बदलने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों से किसी भी तरह से चल रहे मुकदमे में बाधा नहीं आनी चाहिए।

    यह मामला UAPA Act और आईपीसी के तहत फहाद की गिरफ्तारी और अभियोजन के इर्द-गिर्द घूमता है, कथित तौर पर उन लेखों को प्रकाशित करने के लिए, जिनके बारे में अभियोजन पक्ष का दावा है कि उन्होंने हिंसा भड़काई और अलगाववादी विचारधारा को बढ़ावा दिया। फहाद मई 2022 से हिरासत में था और नवंबर 2023 में उसे हाईकोर्ट से जमानत मिल गई।

    केस टाइटल- केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर बनाम पीरज़ादा शाह फहाद

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