प्रशासनिक आदेश का बचाव केवल दर्ज कारणों से ही संभव; बाद में नए आधार नहीं जोड़े जा सकते: सुप्रीम कोर्ट

Praveen Mishra

27 Nov 2025 4:33 PM IST

  • प्रशासनिक आदेश का बचाव केवल दर्ज कारणों से ही संभव; बाद में नए आधार नहीं जोड़े जा सकते: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि किसी सरकारी आदेश का बचाव केवल उन्हीं कारणों के आधार पर किया जा सकता है, जो स्वयं आदेश में दर्ज हों। बाद में अदालत में दाखिल किए गए हलफनामों में नए कारण जोड़कर आदेश को सही ठहराने की कोशिश नहीं की जा सकती।

    चीफ़ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्ज्वल भुइयां और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की खंडपीठ ने कहा,

    “यह न्यायालय पोस्ट-फैक्टो रेशनलाइज़ेशन की प्रथा को लेकर पहले भी सावधान कर चुका है, जहाँ अधिकारी बाद में कारण जोड़कर या घड़कर अपने निर्णय को सही ठहराने की कोशिश करते हैं। ऐसे बाद के बहाने किसी मूल रूप से मनमाने आदेश को वैध नहीं बना सकते।”

    खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि प्रशासनिक निर्णय की वैधता उस समय उपलब्ध सामग्री के आधार पर ही जांची जानी चाहिए, न कि बाद में बनाए गए कारणों से।

    “जो स्वीकार्य है वह केवल उन कारणों का स्पष्टीकरण है जो पहले से रिकॉर्ड पर मौजूद हों; लेकिन निर्णय के बाद नए कारण गढ़कर आदेश को सही ठहराना स्वीकार्य नहीं है।”

    यह टिप्पणी उस मामले की सुनवाई के दौरान की गई जिसमें हिमाचल प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट द्वारा रद्द किए गए अपने निर्णय को चुनौती दी थी। राज्य सरकार ने पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के लिए ePoS मशीनें आपूर्ति करने के अनुबंध को बिना कोई कारण बताए रद्द कर दिया था। इसके बाद ठेकेदार ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की, जहां आदेश को मनमाना बताते हुए रद्द कर दिया गया।

    सुप्रीम कोर्ट में राज्य ने पहली बार एक नया कारण पेश करते हुए कहा कि संबंधित कंपनी को पहले कई बार ब्लैकलिस्ट किया गया था—हालाँकि यह तथ्य सरकार को पहले से पता था, लेकिन अनुबंध रद्द करते समय इसका उल्लेख नहीं किया गया था।

    CJI सूर्या कांत द्वारा लिखे गए निर्णय में, हालांकि कोर्ट ने अनुबंध रद्द करने के राज्य के फैसले को Letter of Intent (LoI) की शर्तों का पालन न करने के आधार पर सही ठहराया, लेकिन सरकार द्वारा बाद में ब्लैकलिस्टिंग के आधार को शामिल करने की कोशिश को “बाद में बनाए गए औचित्य” (afterthought) माना और कहा कि इससे मनमाने आदेश को वैध नहीं ठहराया जा सकता।

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