सुप्रीम कोर्ट ने जांच को 'दोषपूर्ण' बताते हुए मौत की सज़ा पाए व्यक्ति को बरी किया, DNA साक्ष्यों के प्रबंधन पर राष्ट्रव्यापी दिशानिर्देश जारी किए
Shahadat
15 July 2025 7:45 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने एक दंपत्ति की हत्या और पीड़िता के साथ बलात्कार के मामले में मौत की सज़ा पाए व्यक्ति को DNA साक्ष्यों के प्रबंधन में गंभीर प्रक्रियात्मक खामियों का हवाला देते हुए बरी कर दिया। ऐसा करते हुए न्यायालय ने आपराधिक जांच में DNA और अन्य जैविक सामग्रियों के उचित संग्रह, संरक्षण और प्रसंस्करण को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रव्यापी बाध्यकारी दिशानिर्देश जारी किए।
न्यायालय ने कहा,
"इस फैसले के माध्यम से पूरी प्रक्रिया में सामान्य सूत्र जो चलता हुआ दिखाई देता है, वह है दोषपूर्ण जांच।"
यह मामला 2021 में तमिलनाडु में एक दंपत्ति की हत्या से संबंधित है।
जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने मामले की सुनवाई की। अपीलकर्ता कट्टावेल्लई उर्फ दीवाकर को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302, 376 और 397 के तहत अपराधों का दोषी पाए जाने पर निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट द्वारा पुष्टि की गई यह सजा लगभग पूरी तरह से परिस्थितिजन्य साक्ष्यों, मुख्यतः अपराध स्थल से एकत्र किए गए जैविक सैंपल और अभियुक्त के बीच DNA मिलान पर आधारित थी।
हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसमें पुलिस की जांच में विशेष रूप से DNA साक्ष्य के संचालन, भंडारण और अग्रेषण में व्यवस्थागत खामियों का हवाला दिया गया।
रिकॉर्ड में प्रस्तुत सामग्री पर गौर करते हुए न्यायालय ने कई प्रक्रियात्मक कमियां पाईं, जिनके कारण DNA साक्ष्य अविश्वसनीय है। न्यायालय ने कस्टडी रजिस्टर की सीरीज के अभाव फोरेंसिक लैब में सैंपल जमा करने में अस्पष्टीकृत देरी और सैंपल के स्टोरेज के तरीके के बारे में जानकारी के अभाव की ओर इशारा किया, जिससे संभावित संदूषण या छेड़छाड़ के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा हुईं।
DNA साक्ष्य की संवेदनशील प्रकृति, जिसके कमजोर पड़ने की संभावना होती है, उसको ध्यान में रखते हुए जस्टिस करोल द्वारा लिखित निर्णय में निम्नलिखित निर्देश जारी किए गए:
"1. DNA सैंपल एकत्र करने के बाद उचित सावधानी और सभी आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन किया जाएगा, जिसमें त्वरित और उचित पैकेजिंग शामिल है, जिसमें क) FIR संख्या और तारीख; ख) उसमें शामिल धारा और क़ानून; ग) जांच अधिकारी, पुलिस स्टेशन का विवरण; और घ) अपेक्षित सीरियल नंबर शामिल हैं, जिनका विधिवत दस्तावेजीकरण किया जाएगा। संग्रह को दर्ज करने वाले दस्तावेज़ में उपस्थित मेडिकल पेशेवर, जांच अधिकारी और स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर और पदनाम होंगे। यहां हम केवल यह स्पष्ट कर सकते हैं कि स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति को ऐसे साक्ष्य के संग्रह में बाधा नहीं माना जाएगा, लेकिन ऐसे गवाहों को शामिल करने के लिए किए गए प्रयास और अंततः ऐसा करने में असमर्थता को विधिवत रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा।
2. जांच अधिकारी DNA साक्ष्य को संबंधित पुलिस स्टेशन या संबंधित अस्पताल, जैसा भी मामला हो, तक पहुंचाने के लिए ज़िम्मेदार होगा। वह यह सुनिश्चित करने के लिए भी ज़िम्मेदार होगा कि लिए गए सैंपल संबंधित फोरेंसिक साइंस लैब तक शीघ्रता से पहुंच जाएं और किसी भी स्थिति में संग्रहण के समय से 48 घंटे से अधिक समय नहीं। यदि कोई बाहरी परिस्थिति उत्पन्न हो और 48 घंटे की समय-सीमा का पालन नहीं किया जा सकता तो देरी का कारण केस डायरी में विधिवत दर्ज किया जाएगा। लिए गए सैंपल की प्रकृति के अनुरूप आवश्यकतानुसार सैंपल्स को संरक्षित करने के लिए पूरे प्रयास किए जाने चाहिए।
3. जब तक जांच अपील आदि लंबित है, तब तक DNA सैंपल संग्रहीत किए जाते हैं, किसी भी पैकेज को जांच न्यायालय की स्पष्ट अनुमति के बिना खोला, बदला या पुनः सील नहीं किया जाएगा, जो विधिवत योग्य और अनुभवी मेडिकल पेशेवर के इस कथन पर कार्य करेगा कि इससे साक्ष्य की पवित्रता पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। न्यायालय को यह आश्वासन दिया जाएगा कि ऐसा कदम जांच/परीक्षण के उचित और न्यायसंगत परिणाम के लिए आवश्यक है।
4. साक्ष्य संग्रहण के बिंदु से लेकर तार्किक अंत तक अर्थात् अभियुक्त की दोषसिद्धि या दोषमुक्ति तक, अभिरक्षा रजिस्टर रखा जाएगा, जिसमें साक्ष्य की प्रत्येक गतिविधि को उसके प्रत्येक सिरे पर प्रतिहस्ताक्षर के साथ दर्ज किया जाएगा और उसका कारण भी बताया जाएगा। इस अभिरक्षा रजिस्टर को अनिवार्य रूप से विचारण न्यायालय के अभिलेख के भाग के रूप में संलग्न किया जाएगा। इसे बनाए न रखने पर जांच अधिकारी को ऐसी चूक का स्पष्टीकरण देने की ज़िम्मेदारी होगी। सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशक, कस्टडी रजिस्टर और ऊपर दिए गए सभी अन्य दस्तावेज़ों के सैंपल प्रपत्र तैयार करेंगे। आवश्यकतानुसार सभी ज़िलों को आवश्यक निर्देशों के साथ भेजना सुनिश्चित करेंगे।
न्यायालय ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह इस निर्णय की कॉपी सभी हाईकोर्ट और सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों को आवश्यक अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए भेजे।
इसके अलावा, न्यायालय ने राज्यों की पुलिस अकादमियों से भी आग्रह किया कि वे जांच अधिकारियों के प्रशिक्षण की आवश्यकता की जांच करें ताकि ऊपर दिए गए निर्देशों के अनुसार आवश्यक सावधानियों और प्रक्रियाओं का पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।
स्क्वायर सर्कल क्लिनिक, नालसार लॉ यूनिवर्सिटी ने अपीलकर्ता को कानूनी सहायता प्रदान की।
Cause Title: KATTAVELLAI @ DEVAKAR VERSUS STATE OF TAMILNADU

