Specific Relief Act | धारा 12(3) के तहत आंशिक निष्पादन के लिए दावों का त्याग मुकदमेबाजी के किसी भी चरण में किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
13 Jan 2025 1:46 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 (Specific Relief Act) की धारा 12(3) के तहत अनुबंध के आंशिक निष्पादन की मांग करते समय अनुबंध के शेष भाग और मुआवजे के सभी अधिकारों के बारे में दावों के त्याग के बारे में दलील मुकदमेबाजी के किसी भी चरण में की जा सकती है, जिसमें अपीलीय चरण भी शामिल है।
न्यायालय ने कहा,
“हम केवल यह कह सकते हैं कि अनुबंध के शेष भाग के आगे के निष्पादन के लिए दावे का त्याग और मुआवजे के सभी अधिकारों का त्याग मुकदमेबाजी के किसी भी चरण में किया जा सकता है। यह कल्याणपुर लाइम वर्क्स बनाम बिहार राज्य में एआईआर 1954 एससी 165 में रिपोर्ट किया गया। इस न्यायालय ने लाहौर हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच के फैसले को वरयाम सिंह बनाम गोपी चंद, (एआईआर 1930 लाहौर 34) में अनुमोदन के साथ संदर्भित किया।”
Specific Relief Act की धारा 12(3) के अनुसार, अनुबंध के आंशिक निष्पादन का दावा करने के लिए वादी को या तो अनुबंध के अधूरे हिस्से से जुड़े दावों को त्यागना होगा या अनुबंध के लिए सहमत प्रतिफल का पूरा भुगतान करके अनुबंध को निष्पादित करने की तत्परता और इच्छा व्यक्त करनी होगी।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ मद्रास हाईकोरर्ट के निर्णय के विरुद्ध दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जहां अपीलकर्ता ने पहली बार हाईकोर्ट के समक्ष अपीलीय चरण में अनुबंध के शेष भाग के लिए दावों के त्याग के संबंध में दलील उठाई। हालांकि हाईकोर्ट ने उनके दावे पर विचार किया, लेकिन संदेह व्यक्त किया कि क्या दावे के त्याग के संबंध में दलील परीक्षण चरण में उसी के बिना अपीलीय चरण में की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आगे के निष्पादन के लिए दावे का त्याग मुकदमे के किसी भी चरण में किया जा सकता है।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
“इस प्रकार, कानून की स्थिति यह है कि मुकदमे के किसी भी चरण में त्याग किया जा सकता है, जिसमें अपीलीय चरण भी शामिल है। इसलिए एक्ट की धारा 12(3) के तहत लाभ प्रदान करने के लिए वादी अपीलकर्ता के दावे को हाईकोर्ट द्वारा इस साधारण आधार पर खारिज नहीं किया गया कि यह ट्रायल चरण में नहीं किया गया। अपीलीय चरण में पहली बार किया गया। हमारे विचार में दावे को इस आधार पर भी खारिज नहीं किया जा सकता है कि इसे वादपत्र में शामिल नहीं किया गया था या ट्रायल कोर्ट के समक्ष लिखित रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया।"
न्यायालय ने कहा,
"हमारा विचार है कि कानून की किसी भी त्रुटि की बात तो दूर हाईकोर्ट द्वारा विवादित आदेश पारित करने में कोई त्रुटि नहीं की गई।"
केस टाइटल: विजय प्रभु बनाम एस.टी. लाजपति और अन्य।