'समान पद पर नियुक्त कर्मचारियों के साथ भेदभाव किया गया': सुप्रीम कोर्ट ने 30 वर्षों तक सेवा देने वाले कर्मचारी को नियमित करने का निर्देश दिया
Shahadat
27 Aug 2024 10:49 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के डाक एवं तार विभाग में "वाटर वूमन" (सफाईकर्मी) के रूप में कार्यरत महिला को नियमितीकरण से राहत प्रदान की, जिसने 30 वर्षों से अधिक समय तक विभाग में सेवा की, लेकिन उसे नियमित नहीं किया गया, जबकि समान पद पर नियुक्त एक अन्य महिला कर्मचारी को यह लाभ दिया गया।
यह मानते हुए कि विभाग ने दो समान पद पर नियुक्त कर्मचारियों के बीच भेदभाव किया है, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने आदेश दिया:
"प्रतिवादी के.एम. वाघेला के मामले में किए गए समान शर्तों पर अपीलकर्ता के पक्ष में एमटीएस के रूप में नियमितीकरण/नियुक्ति का आदेश पारित करेंगे। नियमितीकरण का आदेश उस तिथि से प्रभावी होगा, जिस तिथि को के.एम. वाघेला को सभी परिणामी लाभों के साथ एमटीएस के रूप में नियुक्त किया गया। इस आदेश का अनुपालन इस आदेश की तिथि से तीन महीने की अवधि के भीतर किया जाएगा।"
तथ्यात्मक पृष्ठभूमि
संक्षेप में कहें तो अपीलकर्ता फरवरी, 1986 में कच्छ डिवीजन, भुज के डाकघर अधीक्षक के कार्यालय में "वाटर वूमन" के रूप में कार्यरत थी। विभाग में लगातार 16 वर्षों तक काम करने के बाद उसने अभ्यावेदन दिया, जिसमें नियमितीकरण के लिए उसके मामले पर विचार करने और समूह 'डी' संवर्ग में अस्थायी दर्जा दिए जाने का अनुरोध किया गया (डेली रेटेड कैजुअल लेबर बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार)।
हालांकि, विभाग ने अपीलकर्ता की प्रार्थना अस्वीकार कर दी। व्यथित होकर उसने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) का दरवाजा खटखटाया। CAT ने प्रतिवादी-अधिकारियों को निर्देश देते हुए उसकी याचिका का निपटारा किया कि वे 1992 के सर्कुलर के अनुसार 3 महीने की अवधि के भीतर पूर्णकालिक कर्मचारी में रूपांतरण के लिए उसके मामले पर विचार करें।
इस सर्कुलर में अंशकालिक मजदूरों को "पूर्णकालिक" के रूप में नियमित करने की योजना प्रदान की गई। यदि अंशकालिक आकस्मिक मजदूर पांच घंटे या उससे अधिक काम कर रहे थे तो इस बात की जांच की जा सकती थी कि क्या उन्हें पुनर्समायोजन या कर्तव्यों के संयोजन द्वारा पूर्णकालिक बनाया जा सकता है।
अपीलकर्ता की नई याचिका को विभाग ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह आकस्मिक भुगतान वाली अंशकालिक 'वाटर वूमन' थी, जो प्रतिदिन चार घंटे काम करती थी, जिसे काम के घंटों की संख्या के आधार पर प्रति माह भुगतान किया जा रहा था।
इसके बाद अपीलकर्ता ने दैनिक रेटेड आकस्मिक श्रम (सुप्रा) के अनुसार तैयार की गई योजना के अनुसार अवशोषण से राहत की मांग करते हुए फिर से CAT से संपर्क किया। हालांकि, CAT ने उसका आवेदन खारिज कर दिया। गुजरात हाईकोर्ट ने भी उसे राहत देने से इनकार किया, यह देखते हुए कि वह आकस्मिक भुगतान वाली अंशकालिक 'वाटर वूमन' है, जो प्रतिदिन केवल चार घंटे काम करती है। अंततः, अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
विवाद का मुद्दा
क्या विभाग ने दो समान पदों पर कार्यरत कर्मचारियों के बीच भेदभाव किया?
पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ता की ओर से यह प्रस्तुत किया गया कि विभाग ने के.एम. वाघेला, कच्छ डिवीजन, भुज के डाकघर अधीक्षक के कार्यालय में इसी तरह की कर्मचारी हैं, जो 1991 में (अपीलकर्ता के 6 साल बाद) शामिल हुईं। इस प्रकार, अपीलकर्ता के साथ भेदभाव किया गया और वह उसी राहत की हकदार है।
दूसरी ओर, विभाग ने दावा किया कि के.एम. वाघेला की सेवाओं की पुष्टि कैट द्वारा दिए गए निर्देश के अनुपालन में की गई, जबकि अपीलकर्ता के पास उनके पक्ष में ऐसा कोई आदेश नहीं था।
न्यायालय की टिप्पणियां
सामग्री का अवलोकन करने पर न्यायालय का विचार था कि के.एम. वाघेला के मामले में CAT ने विभाग को केवल मल्टी-टास्किंग स्टाफ के पद पर नियुक्ति के मामले पर विचार करने का निर्देश दिया तथा विभाग को उनकी सेवाओं को नियमित करने का आदेश नहीं दिया गया। वास्तव में के.एम. वाघेला को पात्र पाया गया तथा CAT के आदेश से प्रभावित हुए बिना ही उन्हें एमटीएस के रूप में नियुक्त किया गया।
न्यायालय ने कहा,
"स्पष्ट रूप से के.एम. वाघेला की सेवाओं को नियमित करने तथा उन्हें एमटीएस के रूप में नियुक्त करने का निर्णय CAT के आदेश से प्रभावित हुए बिना प्रतिवादी-विभाग का स्वतंत्र निर्णय था। इसलिए अपीलकर्ता के वकील द्वारा प्रस्तुत तर्क कि के.एम. वाघेला के साथ भेदभाव किया गया, जिन्हें नियमितीकरण का लाभ दिया गया, अभिलेखों से प्रमाणित तथा स्थापित है।"
यह भी उल्लेख किया गया कि विभाग ने इस आशय का कोई संकेत नहीं दिया कि के.एम. वाघेला द्वारा किए जा रहे कर्तव्यों की प्रकृति या कार्य के घंटे अपीलकर्ता से भिन्न थे। इस प्रकार, विभाग का यह तर्क कि अपीलकर्ता केवल चार घंटे प्रतिदिन आकस्मिक कर्मचारी (जलकर्मी) के रूप में कार्य कर रही थी, प्रमाणित नहीं हुआ।
न्यायालय ने यह भी देखा कि डाक एवं तार विभाग पर लागू प्रचलित सर्कुलर के अनुसार, अस्थायी कर्मचारी जिसने पिछले 12 महीनों में विभाग में लगातार 240 दिनों से अधिक काम किया हो, वह नियमितीकरण की राहत का दावा करने का हकदार था।
निष्कर्ष
तदनुसार, अपीलकर्ता को दावा किए गए लाभ का हकदार माना गया और उसकी अपील स्वीकार की गई।
न्यायालय ने कहा,
"इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि प्रतिवादी-विभाग में अपीलकर्ता के रोजगार की तिथि से लगभग छह वर्ष बाद सेवा में शामिल किए गए कर्मचारी को एमटीएस के पद पर नियुक्ति के माध्यम से सेवा में स्थायीकरण का लाभ प्रदान किया गया, अपीलकर्ता समान लाभों का दावा करने का हकदार है।"
केस टाइटल: उषाबेन जोशी बनाम भारत संघ और अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 6427/2019