Sec.420 IPC| फर्जी दस्तावेज़ से कोई लाभ न मिला तो धोखाधड़ी का अपराध नहीं: सुप्रीम कोर्ट
Praveen Mishra
11 Sept 2025 3:42 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (10 सितम्बर) को एक शैक्षणिक संस्थान के प्रमुख के खिलाफ दर्ज धोखाधड़ी का मामला रद्द कर दिया, जिन पर फर्जी फायर डिपार्टमेंट एनओसी का इस्तेमाल कर संबद्धता (affiliation) लेने का आरोप था।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने कहा कि कॉलेज को मान्यता दिलाने के लिए फायर डिपार्टमेंट की नकली एनओसी जमा करना न तो धोखाधड़ी (cheating) है और न ही जालसाजी (forgery), क्योंकि यह दस्तावेज़ कानूनी तौर पर अनिवार्य नहीं था और न ही शिक्षा विभाग को संबद्धता देने के लिए इससे कोई वास्तविक प्रभाव पड़ा।
अपीलकर्ता, जो एक शैक्षणिक सोसाइटी का प्रमुख है, 14.20 मीटर ऊँची इमारत में कॉलेज चला रहा था। आरोप लगाया गया कि उसने शिक्षा विभाग में फर्जी एनओसी जमा की। जिला फायर ऑफिसर की शिकायत पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी) के तहत आरोपपत्र दाखिल किया, हालांकि फर्जी दस्तावेज़ बरामद नहीं हुआ।
राष्ट्रीय भवन संहिता (National Building Code), 2016 के तहत 15 मीटर से कम ऊँचाई वाली शैक्षणिक इमारतों के लिए फायर एनओसी की ज़रूरत नहीं होती। हाईकोर्ट पहले ही आदेश दे चुका था कि ऐसी इमारतों के लिए संबद्धता नवीनीकरण में एनओसी नहीं मांगी जाए।
अपीलकर्ता ने दलील दी कि जब एनओसी की ज़रूरत ही नहीं थी, तो इसे लेकर संबद्धता मिलने का सवाल ही नहीं उठता, इसलिए धोखाधड़ी का कोई मामला नहीं बनता।
जस्टिस बागची द्वारा लिखे फैसले में कोर्ट ने कहा कि धोखाधड़ी साबित करने के लिए जरूरी है कि कोई व्यक्ति झूठा बयान देकर दूसरे को नुकसान पहुँचाए और उसे ऐसा करने के लिए उकसाए जो वह अन्यथा न करता। इस मामले में ऐसा कोई बेईमान इरादा (dishonest inducement) नहीं था।
चूँकि अपीलकर्ता को बिना एनओसी कानूनी तौर पर मान्यता मिलने का अधिकार था, इसलिए न तो उसे कोई अनुचित लाभ हुआ और न ही शिक्षा विभाग को कोई नुकसान पहुँचा।
कोर्ट ने यह भी कहा कि आईपीसी की धारा 468 (जालसाजी) और धारा 471 (फर्जी दस्तावेज़ का इस्तेमाल) भी लागू नहीं होतीं, क्योंकि यहाँ आवश्यक 'दुर्भावना पूर्ण इरादा' (mens rea) सिद्ध नहीं होता।
इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार कर हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और केस को खत्म कर दिया।

