'सनातन धर्म' विवाद | उदयनिधि स्टालिन के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को एक साथ जोड़ने की मांग, सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया
Shahadat
11 May 2024 10:32 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन की विवादास्पद 'सनातन धर्म' टिप्पणी पर उनके खिलाफ कई राज्यों में दर्ज एफआईआर/आपराधिक शिकायतों को एक साथ जोड़ने की याचिका पर नोटिस जारी किया।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने स्टालिन की ओर से दायर संशोधन आवेदन पर विचार करते हुए यह आदेश पारित किया। पिछली तारीख पर अदालत ने स्टालिन के वकील, सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी से यह जांच करने के लिए कहा कि क्या संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत राहत मांगने के बजाय स्टालिन सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 406 के तहत आवेदन दायर कर सकते हैं।
तदनुसार, 3 मई को बाद के घटनाक्रम के साथ-साथ कार्यवाही के दौरान उठाए गए कानूनी मुद्दों की प्रतिक्रिया को रिकॉर्ड पर लाने के लिए स्टालिन की ओर से संशोधन आवेदन दायर किया गया। संशोधन आवेदन की अनुमति देते हुए अदालत ने आज निर्देश दिया कि संशोधित रिट याचिका को रिकॉर्ड पर लिया जाए और नोटिस दिया जाए।
संशोधित आवेदन में क्या कहा गया?
सबसे पहले, आवेदन में कहा गया कि वर्तमान में स्टालिन के खिलाफ 7 एफआईआर/शिकायतें लंबित हैं और किसी में भी आरोप पत्र दायर नहीं किया गया।
दूसरे, इसने सीआरपीसी की धारा 406 के संबंध में अदालत के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि यह प्रावधान केवल किसी मामले या अपील के स्थानांतरण पर लागू होता है, किसी भी अदालत के समक्ष लंबित जांच पर नहीं।
तीसरा, इसने पिछली तारीख पर जस्टिस दत्ता द्वारा उठाए गए प्रश्न का निपटारा किया, इस विश्वास के तहत कि सुप्रीम कोर्ट ने रिया चक्रवर्ती बनाम बिहार राज्य (2020) 20 एससीसी 184 (सुशांत सिंह राजपूत मामला) को सीआरपीसी की धारा 406 के तहत स्थानांतरित कर दिया था। आवेदन में स्पष्ट किया गया कि उक्त मामले की जांच न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करके सीबीआई को स्थानांतरित कर दी। इसमें कहा गया कि उपरोक्त मामले में आदेश के अनुसार, निष्कर्ष और टिप्पणियां केवल याचिका के निपटान के लिए थीं और इसका किसी अन्य उद्देश्य से कोई लेना-देना नहीं होगा।
आवेदन में इस दावे का समर्थन करने के लिए कुछ अन्य निर्णयों का हवाला दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट सीआरपीसी की धारा 406 के तहत जांच स्थानांतरित नहीं कर सकती।
चौथा, इसने दोहराया कि पत्रकारों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिट क्षेत्राधिकार के तहत दिए गए आपराधिक मामलों की एफआईआर/स्थानांतरण के फैसले स्टालिन के मामले पर लागू होंगे।
इस संबंध में कहा गया,
"कोई भी अनुमान कि टीवी न्यूज चैनल में कार्यरत पत्रकार और राज्य विधानसभा के मंत्री के पास स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार के लोकाचार के खिलाफ होगा और अनुच्छेद 14 का उल्लंघन के अधिकार के लिए अलग-अलग मानदंड हैं।"
इस तर्क के समर्थन में एन.वी. शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य का मामला उद्धृत किया गया। यह तर्क दिया गया कि स्टालिन BJP प्रवक्ता नूपुर शर्मा के समान राहत के हकदार है, जिनके संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर को क्षेत्राधिकार में जोड़ दिया था।
पांचवें, यह तर्क दिया गया कि स्टालिन के खिलाफ अधिकांश एफआईआर/शिकायतें महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में लंबित हैं, जो वर्तमान में BJP द्वारा शासित/प्रशासित हैं। याचिका में उल्लेख किया गया कि स्टालिन को जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। ऐसे में उनके लिए विभिन्न राज्यों में उपस्थित होना मुश्किल होगा, खासकर उन राज्यों में जहां राजनीतिक हस्तक्षेप की आशंका है।
कोर्ट ने आगे कहा,
"याचिकाकर्ता को अपने जीवन और स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा है और विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न पुलिस स्टेशनों और अदालतों के सामने पेश होने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा।"
केस टाइटल: उदयनिधि स्टालिन बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य, डब्ल्यू.पी. (सीआरएल) नंबर 104/2024