असाधारण परिस्थितियों में पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर बलात्कार का मामला रद्द किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

16 July 2025 4:30 PM

  • असाधारण परिस्थितियों में पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर बलात्कार का मामला रद्द किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बलात्कार के अपराधों से संबंधित आपराधिक कार्यवाही असाधारण परिस्थितियों में मामले के तथ्यों के अधीन समझौते के आधार पर रद्द की जा सकती है।

    न्यायालय ने कहा,

    "सबसे पहले हम मानते हैं कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 के तहत अपराध निस्संदेह गंभीर और जघन्य प्रकृति का है। आमतौर पर पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर ऐसे अपराधों से संबंधित कार्यवाही रद्द करने की निंदा की जाती है और इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। हालांकि, न्याय के उद्देश्यों को सुनिश्चित करने के लिए CrPC की धारा 482 के तहत न्यायालय की शक्ति किसी कठोर सूत्र से बाधित नहीं है। इसका प्रयोग प्रत्येक मामले के तथ्यों के संदर्भ में किया जाना चाहिए।"

    जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ के उस फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ताओं के खिलाफ बलात्कार का मामला रद्द करने से इनकार कर दिया गया, जबकि अभियोजन पक्ष ने यह कहते हुए मामले को आगे न बढ़ाने की इच्छा जताई कि आरोपी और उसके बीच मतभेद आपसी सहमति से सुलझा लिए गए हैं।

    इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अभियोजन पक्ष द्वारा दर्ज की गई दूसरी FIR पहली FIR के विरुद्ध प्रतिक्रियात्मक कदम है और अपीलकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही जारी रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा, इसलिए न्याय के हित में लंबित कार्यवाही रद्द की जाती है।

    अदालत ने कहा,

    "इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि दूसरी FIR में शिकायतकर्ता ने स्पष्ट रूप से मामले को आगे न बढ़ाने की इच्छा व्यक्त की है। उसने दलील दी है कि वह अब विवाहित है, अपने निजी जीवन में व्यवस्थित है और आपराधिक कार्यवाही जारी रखने से उसकी शांति और स्थिरता भंग होगी। उसका रुख न तो अनिश्चित है और न ही अस्पष्ट। उसने लगातार रिकॉर्ड में दर्ज हलफनामे के माध्यम से भी यही कहा कि वह अभियोजन पक्ष का समर्थन नहीं करती और चाहती है कि मामला समाप्त हो जाए। दोनों पक्षकारों ने भी सौहार्दपूर्ण ढंग से अपने मतभेदों को सुलझा लिया और आपसी सहमति पर पहुंच गए। इन परिस्थितियों में मुकदमे को जारी रखने से कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होगा। यह सभी संबंधित पक्षकारों विशेष रूप से शिकायतकर्ता के लिए केवल परेशानी को बढ़ाएगा और अदालतों पर बोझ बढ़ाएगा, जबकि कोई सार्थक परिणाम मिलने की संभावना नहीं है।"

    अदालत ने आगे कहा,

    "इसलिए इस मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने, शिकायतकर्ता द्वारा अपनाए गए स्पष्ट रुख और समझौते की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए हमारा मानना है कि आपराधिक कार्यवाही को जारी रखने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा। यह केवल प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।"

    Case Title: MADHUKAR & ORS. VERSUS THE STATE OF MAHARASHTRA & ANR.

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