राज्यपाल जब असंवैधानिकता के आधार पर विधेयक सुरक्षित रखते हैं तो राष्ट्रपति को एससी की राय लेनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
14 April 2025 7:35 AM

तमिलनाडु राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से एक और महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि जब राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए असंवैधानिकता के आधार पर सुरक्षित रखते हैं, तो राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट यानी एससी की राय लेनी चाहिए।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 143 राष्ट्रपति को सार्वजनिक महत्व के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट से परामर्शी राय लेने की शक्ति प्रदान करता है। यह परामर्शी अधिकारिता राष्ट्रपति को कानून या तथ्य के प्रश्नों पर सुप्रीम कोर्ट से परामर्श करने की अनुमति देती है।
जब भी संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए किसी विधेयक को स्पष्ट असंवैधानिकता के आधार पर राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखा जाता है, जो इस तरह की प्रकृति का है कि प्रतिनिधि लोकतंत्र के सिद्धांतों के लिए खतरा पैदा करता है तो राष्ट्रपति को इस तथ्य से निर्देशित होना चाहिए कि यह संवैधानिक न्यायालय हैं, जिन्हें कार्यकारी या विधायी कार्रवाई की संवैधानिकता और वैधता के प्रश्नों पर निर्णय लेने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसलिए विवेक के उपाय के रूप में राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए इस न्यायालय को संदर्भ देना चाहिए।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि राष्ट्रपति के लिए अनुच्छेद 143 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट से परामर्श करना "विवेकपूर्ण" होगा, जब राज्य विधेयक असंवैधानिकता के आधार पर उनकी सहमति के लिए आरक्षित हो।
न्यायालय ने कहा,
"राष्ट्रपति को इस तथ्य से निर्देशित होना चाहिए कि संविधान और कानूनों की व्याख्या करने का अंतिम अधिकार संवैधानिक न्यायालयों को दिया गया।"
न्यायालय ने कहा कि असंवैधानिक प्रतीत होने वाले विधेयक का न्यायिक विवेक से मूल्यांकन किया जाना चाहिए। न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकारिया आयोग और पुंछी आयोग दोनों ने स्पष्ट रूप से राष्ट्रपति को उन विधेयकों के संबंध में अनुच्छेद 143 के तहत इस न्यायालय की राय लेने की सिफारिश की, जिनके स्पष्ट रूप से असंवैधानिक होने की आशंका हो सकती है।
न्यायालय ने कहा,
"हमारा यह मानना है कि यद्यपि अनुच्छेद 143 के तहत किसी विधेयक को इस न्यायालय को संदर्भित करने का विकल्प अनिवार्य नहीं हो सकता है, फिर भी राष्ट्रपति को विवेक के उपाय के रूप में कथित असंवैधानिकता के आधार पर राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित किए गए विधेयकों के संबंध में उक्त प्रावधान के तहत राय लेनी चाहिए। यह और भी अधिक आवश्यक है, क्योंकि राज्यपाल के लिए राज्य स्तर पर कोई तंत्र नहीं है, जिसके द्वारा वे विधेयकों को संवैधानिक न्यायालयों को उनकी सलाह या राय के लिए संदर्भित कर सकें। संविधान की योजना के तहत, जैसा कि हम देखते हैं, राज्यपाल के लिए किसी विधेयक की स्पष्ट संवैधानिकता का पता लगाने का केवल एक ही संभव तरीका है, वह है इसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करना, जिनसे बदले में अनुच्छेद 143 को लागू करने की अपेक्षा की जाती है।"
न्यायालय ने कहा कि यह अभ्यास एक स्पष्ट रूप से असंवैधानिक विधेयक को कानून बनने से रोकेगा और इस प्रकार सार्वजनिक संसाधनों को बचाएगा। राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 143 का सहारा लेने से अनुच्छेद 200 के तहत आरक्षित विधेयकों के प्रति केंद्र सरकार के दृष्टिकोण में पक्षपात या दुर्भावना की किसी भी आशंका को कम किया जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि ऐसी स्थितियों में यह अपेक्षा की जाती है कि संघ कार्यपालिका को किसी विधेयक की वैधता निर्धारित करने में न्यायालयों की भूमिका नहीं निभानी चाहिए तथा व्यवहार में अनुच्छेद 143 के तहत ऐसे प्रश्न को सुप्रीम कोर्ट को संदर्भित करना चाहिए।
चूंकि किसी विधेयक की संवैधानिकता ऐसा मामला है, जो न्यायालयों के अनन्य अधिकार क्षेत्र में आता है, इसलिए अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई राय का बहुत अधिक महत्व है तथा इसे सामान्यतः विधायिका और कार्यपालिका द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति न्यायालय की राय से केवल तभी विचलित हो सकते हैं, जब कानूनी प्रश्नों के अलावा अन्य नीतिगत विचार हों। फिर भी राष्ट्रपति को न्यायालय के दृष्टिकोण को अस्वीकार करने के लिए ठोस कारण बताने चाहिए।
केस टाइटल: तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल और अन्य| डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 1239/2023