प्रारंभिक जांच रिपोर्ट संवैधानिक कोर्ट को FIR दर्ज करने का निर्देश देने से नहीं रोक सकती: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
13 Sept 2025 10:58 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि जांच एजेंसी द्वारा की गई प्रारंभिक जांच रिपोर्ट किसी संवैधानिक न्यायालय को यह निष्कर्ष निकालने से नहीं रोक सकती कि आरोप प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध का खुलासा करते हैं और FIR दर्ज करने का निर्देश देते हैं।
अदालत ने प्रदीप निरंकारनाथ शर्मा बनाम गुजरात राज्य मामले में अपने हालिया फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि जब प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध का खुलासा हो तो FIR दर्ज करने से पहले शिकायतों की सत्यता की जांच करने की आवश्यकता नहीं है।
अदालत ने ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार एवं अन्य मामले में दिए गए फैसले के इस सिद्धांत पर भी ध्यान दिया कि जहां सूचना से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, वहां CrPC की धारा 154 के तहत FIR दर्ज करना अनिवार्य है। ऐसे मामलों में प्रारंभिक जांच की आवश्यकता नहीं है।
ये टिप्पणियां दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त नीरज कुमार और इंस्पेक्टर विनोद कुमार पांडे द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश के विरुद्ध दायर अपीलों पर सुनवाई करते हुए आईं, जिसमें 2000-2001 में CBI में उनकी प्रतिनियुक्ति के दौरान कथित अपराध के लिए उनके खिलाफ FIR दर्ज करने का निर्देश दिया गया।
जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने CBI के संयुक्त निदेशक द्वारा की गई प्रारंभिक जांच पर पहले ही विचार कर लिया था। हालांकि, उसके इस निष्कर्ष को खारिज कर दिया कि कोई संज्ञेय अपराध नहीं बनता।
अदालत ने कहा,
"CBI की रिपोर्ट, सर्वोत्तम रूप से FIR दर्ज होने से पहले प्रस्तुत की गई प्रारंभिक जांच रिपोर्ट होती है। हालांकि, FIR दर्ज होने से पहले कानून में ऐसी जांच की आमतौर पर परिकल्पना नहीं की जाती है। इसलिए यह निर्णायक रिपोर्ट नहीं है, जिस पर संवैधानिक कोर्ट के किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने के बारे में अपना निष्कर्ष दर्ज करने के अधिकार को समाप्त करने के लिए भरोसा किया जा सके।"
अभियुक्तों की ओर से सीनियर एडवोकेट रंजीत कुमार ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने CBI की प्रारंभिक जांच के निष्कर्षों के स्थान पर अपने निष्कर्षों को प्रतिस्थापित कर दिया। जांच के दौरान रिपोर्ट को विचार से बाहर रखने का निर्देश देकर गलती की।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि आरोपों की सत्यता या सत्यता की जांच प्रारंभिक जांच के चरण में नहीं की जा सकती, खासकर जहां शिकायतें गंभीर प्रकृति की हों।
इसने प्रदीप निरंकारनाथ शर्मा मामले में दिए गए फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि सरकारी पद के दुरुपयोग और सार्वजनिक पद पर रहते हुए भ्रष्ट आचरण से जुड़े आरोप संज्ञेय अपराधों की श्रेणी में आते हैं और उनकी जांच होनी चाहिए।
अदालत ने अपने निर्णय में कहा,
प्रदीप निरंकारनाथ शर्मा बनाम गुजरात राज्य मामले में इस न्यायालय ने अपने हालिया निर्णय में कहा कि जहां आरोप सरकारी पद के दुरुपयोग और सार्वजनिक पद पर रहते हुए भ्रष्ट आचरण से संबंधित हों, ऐसे कृत्य पूरी तरह से संज्ञेय अपराधों की श्रेणी में आते हैं। इसलिए उनकी जांच की जानी चाहिए। FIR दर्ज करने से पहले किसी भी प्रारंभिक जांच की आवश्यकता नहीं है। यदि पुलिस को दी गई सूचना या प्रारंभिक रिपोर्ट से किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है तो पुलिस CrPC की धारा 154 के तहत बिना किसी देरी के FIR दर्ज करने के लिए बाध्य है।
वर्तमान मामले में अदालत ने दोनों अधिकारियों के विरुद्ध FIR दर्ज करने के हाईकोर्ट का निर्देश बरकरार रखा। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि आवश्यक हो तो जांच अधिकारी CBI की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट पर विचार कर सकता है। हालांकि, यह निर्णायक नहीं है और जांच को प्रतिबंधित नहीं कर सकती।

