ED की शिकायत पर संज्ञान लेने का आदेश रद्द होने पर PMLA आरोपी को हिरासत में नहीं रखा जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
12 Feb 2025 8:17 AM

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (12 फरवरी) को धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत मामले में आरोपी को जमानत दी। कोर्ट ने उक्त जमानत यह देखते हुए दी कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दायर अभियोजन शिकायत पर संज्ञान लेने का आदेश रद्द कर दिया गया था।
कोर्ट ने ED से आरोपी की हिरासत जारी रखने के लिए सवाल किया, जो 7 फरवरी, 2025 को संज्ञान लेने का आदेश रद्द करने के बाद अगस्त 2024 से हिरासत में था।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ भारतीय दूरसंचार सेवा के अधिकारी अरुण कुमार त्रिपाठी से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी, जिन्हें ED ने छत्तीसगढ़ शराब घोटाले से जुड़े धन शोधन मामले में 8 अगस्त, 2024 को गिरफ्तार किया था।
त्रिपाठी को आरोपी बताते हुए पूरक अभियोजन शिकायत 5 अक्टूबर, 2024 को दायर की गई। उसी दिन स्पेशल PMLA कोर्ट ने शिकायत का संज्ञान लिया था। हालांकि, 7 फरवरी, 2025 को हाईकोर्ट ने विशेष कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें शिकायत का संज्ञान लिया गया था। इस आदेश के तहत अभियोजन के लिए मंजूरी नहीं ली गई। हाईकोर्ट का फैसला पिछले साल नवंबर में प्रवर्तन निदेशालय आदि बनाम बिभु प्रसाद आचार्य आदि में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आधारित था। इस फैसले में कहा गया कि PMLA के तहत सरकारी कर्मचारियों पर मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी जरूरी है।
बेंच ने ED से पूछा कि जब संज्ञान लेने का आदेश खारिज कर दिया गया तो आरोपी को हिरासत में क्यों रखा गया है।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने दलील दी कि संज्ञान खारिज करने से गिरफ्तारी अवैध नहीं हो जाएगी। एएसजी ने आगे कहा कि अब मंजूरी मिल गई और ED ने उसी आधार पर नए संज्ञान के लिए आवेदन किया है।
जस्टिस ओक ने पूछा,
"यदि संज्ञान रद्द कर दिया गया तो आरोपी को जेल में क्यों रहना चाहिए?"
जस्टिस ओक ने यह भी आश्चर्य व्यक्त किया कि क्या PMLA का दुरुपयोग आईपीसी की धारा 498ए की तरह केवल लोगों को जेल में रखने के लिए किया जा रहा है।
जस्टिस ओक ने कहा,
"PMLA की अवधारणा यह नहीं हो सकती कि व्यक्ति को जेल में रहना चाहिए। यदि संज्ञान रद्द होने के बाद भी व्यक्ति को जेल में रखने की प्रवृत्ति है तो क्या कहा जा सकता है? देखें कि 498ए मामलों में क्या हुआ PMLA का भी उसी तरह दुरुपयोग किया जा रहा है? हम ED के दृष्टिकोण पर हैं।"
बेंच ने संज्ञान रद्द किए जाने के बारे में अदालत को सूचित करने में ED द्वारा आगे न आने पर भी अपनी नाराजगी व्यक्त की।
आरोपी की वकील सीनियर एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा ने बेंच को इस तथ्य के बारे में सूचित किया।
जस्टिस ओक ने कहा,
"यह चौंकाने वाली बात है कि ED को पता है कि संज्ञान रद्द कर दिया गया, फिर भी इसे दबा दिया गया। 5 सवालों के बाद हमें इसकी जानकारी दी गई। हमें अधिकारियों को बुलाना चाहिए। ED को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए।"
एएसजी ने जब कहा कि हाईकोर्ट का आदेश अभी उपलब्ध नहीं कराया गया तो जस्टिस भुयान ने जवाब दिया,
"आदेश (संज्ञान रद्द करने का) न्यायालय में लिखा गया। आपका अधिकारी न्यायालय में मौजूद था। फिर भी हमें यह नहीं बताया गया!"
बेंच ने यह भी बताया कि ED ने हाईकोर्ट के आदेश पर कार्रवाई करते हुए बाद में प्राप्त मंजूरी के आधार पर नए संज्ञान के लिए आवेदन किया।
जस्टिस ओक ने आश्चर्य जताते हुए कहा,
"हम किस तरह के संकेत दे रहे हैं? संज्ञान लेने का आदेश रद्द कर दिया गया और व्यक्ति अगस्त 2024 से हिरासत में है!"
एएसजी ने तर्क दिया,
"संज्ञान लेने का आदेश इस आधार पर रद्द नहीं किया गया था कि अपराध नहीं हुआ था। यह मंजूरी की कमी के कारण था और अब मंजूरी है।"
विधि अधिकारी ने कहा,
"धोखेबाज़ तकनीकी बातों पर बच नहीं सकते। ये वे अधिकारी हैं जिन्होंने समानांतर शराब का कारोबार चलाया और दुबई में पैसे की हेराफेरी की।"
जस्टिस भुयान ने तुरंत कहा कि आरोपी को अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया।
एएसजी ने तर्क दिया कि पिछले साल बिभु प्रसाद आचार्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में मंजूरी की आवश्यकता निर्धारित की गई। इससे पहले कई शिकायतें मंजूरी लिए बिना दायर की गईं। एएसजी ने तर्क दिया कि संज्ञान रद्द करने का आदेश आरोपी को नियमित जमानत का हकदार नहीं बनाएगा।
हालांकि बेंच ने एएसजी की दलील से असहमति जताई और कहा कि कानून की नजर में अब कोई शिकायत मौजूद नहीं है।
केस टाइटल: अरुण पति त्रिपाठी बनाम प्रवर्तन निदेशालय | एसएलपी (सीआरएल) नंबर 16219/2024