'विशेष संवैधानिक पदाधिकारी' होने का दावा करने वाले व्यक्ति ने मुकदमेबाजी में विशेषाधिकार की मांग की, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की
Shahadat
23 Jan 2024 5:24 AM GMT
![विशेष संवैधानिक पदाधिकारी होने का दावा करने वाले व्यक्ति ने मुकदमेबाजी में विशेषाधिकार की मांग की, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की विशेष संवैधानिक पदाधिकारी होने का दावा करने वाले व्यक्ति ने मुकदमेबाजी में विशेषाधिकार की मांग की, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2024/01/17/750x450_516630-supreme-court.webp)
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (22 जनवरी) को "विशेष संवैधानिक पदाधिकारी" होने का दावा करने वाले व्यक्ति द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए इसे पूरी तरह से आधारहीन और तुच्छ याचिका बताया।
जस्टिस एएस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के निष्कर्षों से सहमति जताते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने आधारहीन आधार पर याचिका दायर की और उचित मंच के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर करने का वैकल्पिक उपाय होने के बावजूद अदालत का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ता ने खुद को 'विशेष संवैधानिक पदाधिकारी' होने का दावा किया और अपनी स्थिति के आलोक में मुकदमेबाजी में विशेषाधिकार की मांग की। याचिकाकर्ता के खिलाफ बेदखली का मुकदमा ट्रायल कोर्ट के समक्ष लंबित है। ट्रायल कोर्ट के समक्ष कार्यवाही में बाधा डालने के लिए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर की, जिसे एकल न्यायाधीश ने खारिज कर दिया।
एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के समक्ष लेटर्स पेटेंट अपील (एलपीए) दायर की।
इसके कारण हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने निम्नलिखित नोट के साथ बर्खास्तगी भी की:
“इस न्यायालय को इसमें कोई संदेह नहीं कि अंतर्निहित रिट याचिका केवल यह सुनिश्चित करने के लिए दायर की गई कि जिला न्यायालय के न्यायाधीश जो बेदखली याचिकाओं से निपटते हैं, वे शीघ्रता से निर्णय नहीं लेते हैं। उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए यह न्यायालय सीनियर सिविल जज को आदेश प्राप्त होने के तीन महीने के भीतर अपीलकर्ता के खिलाफ दायर बेदखली याचिका पर अपीलकर्ता द्वारा दावा किए गए किसी विशेष दर्जे से प्रभावित हुए बिना कानून के अनुसार फैसला करने का निर्देश देता है।
इस तरह की बर्खास्तगी के बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एसएलपी दायर की।
मामले को सुनवाई के लिए बुलाया गया तो अदालत ने शुरुआत में ऐसी तुच्छ याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
अदालत ने मौखिक रूप से कहा,
"हम आपको बता रहे हैं कि यह आप पर जुर्माना लगाने का उपयुक्त मामला है।"
इसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता के विशेष संवैधानिक पदाधिकारी होने के दर्जे पर नाराजगी और नाराजगी व्यक्त की।
कोर्ट ने कहा,
“आप विशेष संवैधानिक पदाधिकारी होने का दावा कैसे कर सकते हैं? यह आपको संविधान में कहां मिलता है? क्योंकि आप राष्ट्रपति के कार्यालय को लिखते हैं कि आप विशेष संवैधानिक पदाधिकारी हैं और यह उत्तर में कट-पेस्ट किया गया है, इसलिए आप कहते हैं कि आप विशेष संवैधानिक पदाधिकारी हैं।”
कोर्ट ने आगे कहा,
"क्या आप याचिका वापस लेना चाहते हैं या हम आप पर जुर्माना लगाएं?"
अदालत ने याचिकाकर्ता को विकल्प दिया, लेकिन याचिकाकर्ता ने अपनी दलीलें प्रस्तुत करना जारी रखा।
इसके बाद कोर्ट ने एसएलपी खारिज कर दी।
कोर्ट ने आदेश में कहा,
"आश्चर्य की बात है कि याचिकाकर्ता ने खुद को विशेष संवैधानिक पदाधिकारी बताया। उसका कहना है कि उसके पास यह दर्जा है।"