पिछला कदाचार बर्खास्तगी को महत्व दे सकता है, भले ही कारण बताओ नोटिस में इसका उल्लेख न किया गया हो: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

1 Sept 2025 10:43 AM IST

  • पिछला कदाचार बर्खास्तगी को महत्व दे सकता है, भले ही कारण बताओ नोटिस में इसका उल्लेख न किया गया हो: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पंजाब सशस्त्र बल के एक पूर्व कांस्टेबल की सेवा से बार-बार अनधिकृत रूप से अनुपस्थित रहने का कारण बहाली रद्द कर दिया। न्यायालय ने कहा कि अनुशासनहीनता के पिछले रिकॉर्ड भले ही कारण बताओ नोटिस में विशेष रूप से उल्लेख न किए गए हों, दोषी अधिकारी को बर्खास्तगी से नहीं बचा सकते, क्योंकि इसका उपयोग दंड देने के निर्णय को महत्व देने के लिए किया जा सकता है।

    जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की खंडपीठ ने कांस्टेबल की बहाली का निर्देश देने वाले पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया। न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट ने अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा उसके पिछले आचरण पर भरोसा करने को भले ही कारण बताओ नोटिस में इसका उल्लेख न किया गया हो, प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन मानकर गलती की।

    प्रतिवादी की नियुक्ति 1989 में हुई। बाद में उसका स्थानांतरण पंजाब कमांडो बल में हो गया। उनके सेवा रिकॉर्ड में अनधिकृत अनुपस्थिति का एक पैटर्न सामने आया, जो कम समय में 68 दिन, 180 दिन और 20 दिन की अवधि सहित कुल 300 दिनों से ज़्यादा था।

    उनकी बर्खास्तगी का अंतिम कारण 1994 में हुआ, जब उन्हें केवल एक दिन की छुट्टी दी गई और वे बिना अनुमति के 37 दिनों तक अनुपस्थित रहे। विभागीय जांच में उन्हें दोषी पाए जाने के बाद अनुशासन प्राधिकारी ने उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया। अपने आदेश में प्राधिकारी ने वर्तमान 37 दिनों की अनुपस्थिति का उल्लेख किया। अनुशासनहीनता के उनके पिछले रिकॉर्ड का भी हवाला दिया।

    प्रतिवादी ने तर्क दिया कि अनुशासनहीनता के उनके पिछले रिकॉर्ड के आधार पर उनकी बर्खास्तगी बर्खास्तगी का आधार नहीं बन सकती, क्योंकि यह कारण बताओ नोटिस का हिस्सा नहीं था।

    इस तर्क को खारिज करते हुए जस्टिस बिश्नोई द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया:

    “प्रतिवादी के पिछले कदाचार को ध्यान में रखते हुए उसे सेवा से बर्खास्त करना प्रभावी कारण नहीं था। अनुशासन प्राधिकारी ने प्रतिवादी के पिछले कदाचार का उल्लेख केवल दंड देने के निर्णय को बल देने के लिए किया था।”

    अदालत ने आगे कहा,

    "जैसा कि देखा गया, वर्तमान मामले में लगभग 7 वर्षों की अल्प सेवा अवधि में विभिन्न अवसरों पर प्रतिवादी की ड्यूटी से अनुपस्थिति, प्रतिवादी की ओर से घोर अनुशासनहीनता है। इसलिए हमें अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश, जिसके तहत प्रतिवादी की सेवाएं बर्खास्त की गईं, उसमें कोई अवैधता नहीं दिखती।"

    अदालत ने कहा,

    "इस प्रकार यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि प्रतिवादी की बर्खास्तगी गंभीरतम कदाचार के आधार पर हुई, जिसके लिए अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उचित पालन करते हुए उसके विरुद्ध कार्रवाई की गई। इसलिए हमें इसमें कोई दोष नहीं दिखता। तदनुसार, हाईकोर्ट का निर्णय रद्द करते हुए वर्तमान अपील स्वीकार की जाती है। परिणामस्वरूप, प्रतिवादी/वादी द्वारा दायर वाद खारिज किया जाता है।"

    तदनुसार, अपील स्वीकार की गई।

    Cause Title: STATE OF PUNJAB AND OTHERS VERSUS EX. C. SATPAL SINGH

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