संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किसी भी कानून को कोर्ट की अवमानना नहीं माना जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
4 Jun 2025 10:20 AM IST

2007 का सलवा जुडूम मामला बंद करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में टिप्पणी की कि संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कोई भी कानून न्यायालय की अवमानना नहीं माना जा सकता।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने कहा,
“हम यह भी देखते हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य विधानमंडल द्वारा इस न्यायालय के आदेश के बाद पारित किसी अधिनियम को इस न्यायालय द्वारा पारित आदेश की अवमानना नहीं कहा जा सकता... किसी अधिनियम का सरलीकृत रूप से प्रवर्तन केवल विधायी कार्य की अभिव्यक्ति है। इसे न्यायालय की अवमानना नहीं कहा जा सकता, जब तक कि यह पहले से स्थापित न हो जाए कि इस प्रकार बनाया गया कानून संवैधानिक रूप से या अन्यथा कानून की दृष्टि से गलत है।”
छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा छत्तीसगढ़ सहायक सशस्त्र पुलिस बल अधिनियम, 2011 को लागू करना न्यायालय की अवमानना है, इस दलील को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि प्रत्येक राज्य विधानमंडल के पास अधिनियम पारित करने की पूर्ण शक्तियां हैं और ऐसा अधिनियम तब तक कानून की शक्ति रखता है, जब तक कि उसे संवैधानिक न्यायालय द्वारा संविधान के अधिकार क्षेत्र से बाहर घोषित न कर दिया जाए।
कोर्ट ने कहा,
न्यायालय ऐसे अधिनियमों की वैधता के बारे में व्याख्यात्मक शंकाओं और प्रश्नों का समाधान कर सकते हैं, "संवैधानिक न्यायालय की व्याख्यात्मक शक्ति विधायी कार्यों के प्रयोग और अधिनियम पारित करने को न्यायालय की अवमानना के उदाहरण के रूप में घोषित करने की स्थिति पर विचार नहीं करती है"।
न्यायालय ने यह भी कहा,
"हमें याद रखना चाहिए कि विधायी कार्य के केंद्र में विधायी अंग की कानून बनाने और संशोधन करने की शक्ति है। संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कोई भी कानून केवल कानून बनाने के कारण इस न्यायालय सहित न्यायालय की अवमानना का कार्य नहीं माना जा सकता है।"
शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर जोर देते हुए कोर्ट ने आगे कहा कि किसी भी कानून को केवल विधायी क्षमता और संवैधानिक वैधता के दोहरे पहलुओं पर ही चुनौती दी जा सकती है।
न्यायायल ने कहा,
"विधानसभा के पास अन्य बातों के साथ-साथ कानून पारित करने, किसी निर्णय के आधार को हटाने या वैकल्पिक रूप से किसी संवैधानिक न्यायालय द्वारा निरस्त किए गए कानून को संशोधित या परिवर्तित करके वैध बनाने की शक्तियां हैं ताकि संवैधानिक न्यायालय के उस निर्णय को प्रभावी बनाया जा सके, जिसने किसी अधिनियम के किसी भाग या उस मामले के लिए संपूर्ण अधिनियम को निरस्त किया है। यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का मूल है और हमारे जैसे संवैधानिक लोकतंत्र में इसे हमेशा स्वीकार किया जाना चाहिए।"
केस टाइटल: नंदिनी सुंदर और अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, रिट याचिका(एस)(सिविल) संख्या(एस). 250/2007