Order VII Rule 11 CPC | वादपत्र की अस्वीकृति का निर्णय केवल वादपत्र के कथनों के आधार पर होगा: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

16 Oct 2025 6:55 PM IST

  • Order VII Rule 11 CPC | वादपत्र की अस्वीकृति का निर्णय केवल वादपत्र के कथनों के आधार पर होगा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि Order VII Rule 11 CPC के तहत वादपत्र की अस्वीकृति के लिए आवेदन का निर्णय वादपत्र में दिए गए कथनों के आधार पर किया जाएगा। इसमें प्रतिवादी के बचाव या किसी बाहरी साक्ष्य पर विचार नहीं किया जाएगा।

    जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का फैसला खारिज किया, जिसमें वादपत्र में दिए गए कथनों को नज़रअंदाज़ करते हुए प्रतिवादी के बचाव को ध्यान में रखते हुए वादपत्र को शुरुआत में ही खारिज कर दिया गया था।

    कोर्ट ने कहा,

    "इसके तहत वादपत्र की अस्वीकृति पर विचार करते समय केवल वादपत्र में दिए गए कथनों पर ही विचार किया जाना चाहिए। किसी अन्य बात पर नहीं ताकि यह पता लगाया जा सके कि वाद कानून द्वारा वर्जित है या नहीं। इस स्तर पर बचाव पक्ष पर विचार नहीं किया जाना है। इस प्रकार, वाद किसी कानून द्वारा वर्जित है या नहीं, इसका निर्धारण वादपत्र में दिए गए कथनों के आधार पर किया जाना है।"

    संक्षेप में मामला

    वादी-अपीलकर्ता ने वसीयत का हवाला दिए बिना उत्तराधिकार के माध्यम से स्वामित्व और कब्जे की घोषणा की मांग करते हुए वाद दायर किया था। हालांकि, प्रतिवादी-प्रतिवादी ने वसीयत का पहलू पेश करते हुए कहा कि वादग्रस्त संपत्ति उसके पक्ष में वसीयत की गई और भूमि अभिलेखों में वादग्रस्त संपत्ति के विरुद्ध उसका नाम दर्ज है।

    ट्रायल कोर्ट ने वाद खारिज करने की मांग करने वाली प्रतिवादी की याचिका यह कहते हुए खारिज की कि चूंकि कब्जे से राहत का दावा किया जा रहा है, इसलिए परिसीमा अवधि, दाखिल-खारिज की कार्यवाही के अंतिम और निपटारे की अवधि से 12 वर्ष तक है। चूंकि दाखिल-खारिज की कार्यवाही 2017 तक लंबित थी। वाद 2019 में दायर किया गया, इसलिए वाद को परिसीमा अवधि के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह सीमा अवधि के भीतर दायर किया गया।

    हाईकोर्ट ने पुनर्विचार अधिकारिता का प्रयोग करते हुए वादपत्र से बाहर के तथ्यों पर भरोसा किया, जिसमें प्रतिवादी का यह दावा भी शामिल था कि वसीयत के आधार पर 1983 में दाखिल-खारिज हुआ था। इस तथ्य को नज़रअंदाज़ करते हुए कि दाखिल-खारिज की कार्यवाही 2017 तक जारी रही, वाद को 1983 से गणना करने पर समय-सीमा समाप्त मान लिया और उसे खारिज कर दिया।

    हाईकोर्ट के निर्णय से व्यथित होकर वादी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    हाईकोर्ट का निर्णय रद्द करते हुए और ट्रायल कोर्ट का निर्णय बहाल करते हुए जस्टिस मिश्रा द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया,

    "पुनर्विचार पर निर्णय लेते समय हाईकोर्ट ने वादपत्र के कथनों पर समग्र रूप से विचार नहीं किया और केवल इस तथ्य से प्रभावित हुआ कि वसीयत 36 वर्ष पुरानी थी।"

    अदालत ने कहा,

    "इस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया गया कि वसीयत केवल वसीयतकर्ता की मृत्यु पर ही लागू होती है। यहां, वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद म्यूटेशन की कार्यवाही में वसीयत की वैधता पर लगातार सवाल उठाए गए, जो जारी रही और अंततः 2017 में निपट गई। इस बीच क्या प्रतिवादियों ने प्रतिकूल कब्जे से अपना स्वामित्व पूर्ण किया, यह कानून और तथ्य का एक मिश्रित प्रश्न होगा और साक्ष्य प्रस्तुत होने के बाद ही उचित रूप से संबोधित किया जा सकता है। इसे शुरुआत में ही शिकायत को खारिज करने का आधार नहीं बनाया जा सकता। इसलिए हमारे विचार में हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश कायम नहीं रखा जा सकता और इसे रद्द किया जाना चाहिए। इसलिए अपीलों को स्वीकार किया जाता है। हाईकोर्ट का विवादित निर्णय और आदेश रद्द किया जाता है। Order VII Rule 11 CPC के तहत शिकायत खारिज करने की प्रार्थना को खारिज करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश को बहाल किया जाता है।"

    तदनुसार, अपील स्वीकार कर लिया गया।

    Cause Title: KARAM SINGH VERSUS AMARJIT SINGH & ORS.

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