Order VII Rule 11 CPC | परिसीमा अवधि कानून और तथ्यों का मिश्रित प्रश्न हो तो वाद को समय-सीमा समाप्त होने के कारण खारिज नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
30 April 2025 1:16 PM

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जब परिसीमा अवधि का प्रश्न विवादित तथ्यों से जुड़ा हो तो ऐसे मुद्दों पर सीपीसी के आदेश VII नियम 11 (Order VII Rule 11 CPC) के स्तर पर निर्णय नहीं लिया जा सकता।
कोर्ट ने तर्क दिया कि जब परिसीमा अवधि का मुद्दा तथ्य और कानून का मिश्रित प्रश्न हो तो पक्षकारों को कार्रवाई के कारण के बारे में साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति दिए बिना इसे संक्षेप में तय नहीं किया जा सकता।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने मद्रास हाईकोर्ट का निर्णय खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि उसने Order VII Rule 11 CPC के तहत वाद खारिज करने के लिए आवेदन को खारिज करने वाले ट्रायल कोर्ट के सुविचारित आदेश में गलत तरीके से हस्तक्षेप किया। प्रतिवादी/प्रतिवादी ने वाद को खारिज करने की मांग की थी, जिसमें कार्रवाई के कारण को जन्म देने वाले ज्ञान की तिथि के बारे में विवादित तथ्य शामिल थे।
प्रतिवादी/प्रतिवादी ने तर्क दिया कि कार्रवाई का कारण 1988 में उत्पन्न हुआ, जब सेल डीड निष्पादित और रजिस्टर्ड किया गया था। इसके विपरीत अपीलकर्ता ने दावा किया कि उसने कथित धोखाधड़ी का पता 2011 में बाद के लेन-देन के बारे में जानने पर लगाया। तदनुसार, इस कथित खोज के तीन साल के भीतर 2014 में मुकदमा दायर किया (अनुच्छेद 59 परिसीमा अधिनियम ने कार्रवाई के कारण के ज्ञान की तारीख से साधन रद्द करने की मांग करने के लिए तीन साल की सीमा अवधि निर्धारित की)।
ट्रायल कोर्ट ने Order VII Rule 11 CPC के तहत मुकदमा खारिज करने की मांग करने वाले प्रतिवादी का आवेदन खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने पुनर्विचार याचिका में उस फैसले को पलट दिया और अपीलकर्ता के कार्रवाई के कारण के ज्ञान के बारे में पक्षों को सबूत पेश करने की अनुमति दिए बिना मुकदमा खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट के फैसले से व्यथित होकर अपीलकर्ता/वादी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
हाईकोर्ट का निर्णय दरकिनार करते हुए जस्टिस महादेवन द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया कि चूंकि कार्रवाई के कारण के ज्ञान की तिथि परिसीमा की गणना करते समय कानून और तथ्य का मिश्रित प्रश्न है, इसलिए हाईकोर्ट ने पक्षकारों को साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर दिए बिना ही मुकदमा खारिज करने में गलती की।
न्यायालय ने कहा कि चूंकि वाद में विशेष रूप से 2011 को खोज की तिथि के रूप में दलील दी गई, जिसे Order VII Rule 11 CPC के प्रयोजनों के लिए सही माना जाना चाहिए, इसलिए हाईकोर्ट को यह नहीं मानना चाहिए था कि मुकदमा परिसीमा द्वारा वर्जित था।
मामले के समर्थन में दलीबेन वलजीभाई और अन्य बनाम प्रजापति कोदरभाई कचराभाई और अन्य 2024 लाइव लॉ (एससी) 1056 के मामले पर भरोसा किया गया, जहां वादी द्वारा यह भी दावा किया गया कि उसने कार्रवाई के कारण के ज्ञान के तुरंत बाद मुकदमा शुरू किया था, इसलिए ट्रायल कोर्ट ने Order VII Rule 11 CPC आवेदन खारिज कर दिया, क्योंकि उसने प्रश्न को विचारणीय मुद्दा माना। न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट का निर्णय बरकरार रखा, यह देखते हुए कि चूंकि यह मुद्दा ट्रायल योग्य था, इसलिए Order VII Rule 11(D) CPC के तहत शक्ति के प्रयोग में वाद शुरुआत में ही खारिज नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने कहा,
“हालांकि, हाईकोर्ट ने केवल प्रथम दृष्टया इस धारणा के आधार पर वाद खारिज कर दिया कि मुकदमा समय-सीमा द्वारा वर्जित था, बिना इस बात की कोई जांच किए कि क्या ज्ञान की तिथि के बारे में दलील स्पष्ट रूप से झूठी थी या रिकॉर्ड के प्रकाश में स्वाभाविक रूप से असंभव थी। इस न्यायालय की राय में इस तरह का दृष्टिकोण कानून की त्रुटि के बराबर है और Order VII Rule 11 CPC के तहत शक्ति के प्रयोग को नियंत्रित करने वाले सुस्थापित सिद्धांतों का गलत उपयोग है।”
उपर्युक्त के संदर्भ में न्यायालय ने अपील को अनुमति दी और ट्रायल कोर्ट का निर्णय बहाल कर दिया गया।
केस टाइटल: पी. कुमारकुरुबरन बनाम पी. नारायणन और अन्य।