Order 41 Rule 31 CPC | अपील में उठाए न जाने पर अपीलीय न्यायालय निर्धारण के बिंदु तय करने के लिए बाध्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
23 April 2025 6:22 AM

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में माना कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश 41 नियम 31 (Order 41 Rule 31 CPC) के तहत निर्धारण के बिंदु तय करने में अपीलीय न्यायालय की विफलता उसके निर्णय को अमान्य नहीं करती है, बशर्ते कि नियम का पर्याप्त अनुपालन हो और अपीलकर्ता ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय से कोई विशिष्ट मुद्दा न उठाया हो, जिस पर पुनर्विचार की आवश्यकता हो।
न्यायालय ने कहा,
“यह अपीलीय न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है कि वह (ट्रायल कोर्ट) कार्यवाही को संदर्भित करे। वह पक्षकारों या उनके वकीलों द्वारा विचारार्थ प्रस्तुत किए गए तथ्यों को सुनने के बाद निर्णय सुनाने में सक्षम है। इसलिए यह निष्कर्ष निकलता है कि यदि अपीलकर्ता उसके विचारार्थ कुछ भी प्रस्तुत नहीं करता है तो अपीलीय न्यायालय निचली अदालतों की किसी कार्यवाही के संदर्भ के बिना अपील पर निर्णय ले सकता है। ऐसा करते समय वह केवल यह कह सकता है कि अपीलकर्ताओं ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है, जिससे यह पता चले कि अपील के तहत निर्णय और डिक्री गलत थी।”
न्यायालय ने कहा,
"प्रावधानों का गैर-अनुपालन अपने आप में निर्णय को दूषित नहीं कर सकता। इसे पूरी तरह से निरर्थक नहीं बना सकता है। यदि इसका पर्याप्त अनुपालन हुआ है तो इसे अनदेखा किया जा सकता है।"
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने इस प्रकार इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय रद्द कर दिया, जिसने Order 41 Rule 31 CPC के अनुपालन में अपील में निर्धारण का बिंदु तैयार न करने के लिए अपीलीय न्यायालय के निर्णय को रद्द कर दिया था।
अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी। चुनौती में उसने तर्क दिया गया कि अपीलीय न्यायालय के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही का संदर्भ दे और निर्धारण का बिंदु तैयार करे, जब अपीलकर्ता द्वारा अपीलीय न्यायालय के समक्ष इस पर जोर नहीं दिया गया था।
अपीलकर्ता के तर्क में बल पाते हुए न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट ने अपीलीय न्यायालय के निर्णय को अमान्य ठहराने में गलती की, जिसमें कहा गया,
"नियम 31 के प्रावधानों को उचित रूप से समझा जाना चाहिए और (अपीलीय न्यायालय के) निर्णय में विभिन्न विवरणों का उल्लेख केवल तभी किया जाना चाहिए, जब अपीलकर्ता ने वास्तव में अपीलीय न्यायालय द्वारा निर्धारण के लिए कुछ बिंदु उठाए हों, न कि तब जब ऐसे कोई बिंदु नहीं उठाए गए हों।"
इसके समर्थन में ठाकुर सुखपाल सिंह बनाम ठाकुर कल्याण सिंह एवं अन्य, (1963) 2 एससीआर 733 मामले का संदर्भ दिया गया, जहां यह माना गया कि नियम 31 की आवश्यकताएं केवल तभी लागू होती हैं, जब अपीलकर्ता निर्धारण के लिए विशिष्ट बिंदु उठाता है। न्यायालय ने कहा कि यदि कोई तर्क नहीं दिया जाता है तो अपीलीय न्यायालय अपील को संक्षेप में खारिज कर सकता है।
न्यायालय ने ठाकुर सुखपाल सिंह बनाम ठाकुर कल्याण सिंह एवं अन्य में टिप्पणी की,
“हम इस बात से सहमत हैं और मानते हैं कि अपीलकर्ता का यह कर्तव्य है कि वह दिखाए कि अपील के तहत निर्णय कुछ कारणों से त्रुटिपूर्ण है। अपीलकर्ता द्वारा यह दिखाए जाने के बाद ही अपीलीय न्यायालय प्रतिवादी को तर्क का उत्तर देने के लिए कहेगा। केवल तभी अपीलीय न्यायालय का निर्णय नियम 31, आदेश 41 में उल्लिखित सभी विभिन्न मामलों को पूरी तरह से समाहित कर सकता है।”
इसके अलावा, न्यायालय ने दोहराया कि नियम 31 का पर्याप्त अनुपालन पर्याप्त है। नियम की तकनीकी रूप से व्याख्या नहीं की जानी चाहिए, जिससे यह पर्याप्त न्याय से समझौता न करे।
उपर्युक्त के प्रकाश में न्यायालय ने अपील को अनुमति दी।
केस टाइटल: नफीस अहमद एवं अन्य बनाम सोइनुद्दीन एवं अन्य।