'संवैधानिक पद पर वन रैंक वन पेंशन अनिवार्य': सुप्रीम कोर्ट ने रिटायर हाईकोर्ट जजों की पेंशन के सिद्धांतों की व्याख्या की

Shahadat

20 May 2025 9:39 AM IST

  • संवैधानिक पद पर वन रैंक वन पेंशन अनिवार्य: सुप्रीम कोर्ट ने रिटायर हाईकोर्ट जजों की पेंशन के सिद्धांतों की व्याख्या की

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (19 मई) को दिए ऐतिहासिक फैसला में कहा कि सभी रिटायर हाईकोर्ट जज समान और पूर्ण पेंशन के हकदार हैं, चाहे उनकी नियुक्ति की तिथि और प्रवेश का स्रोत कुछ भी हो।

    कोर्ट ने यह भी माना कि रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले लाभों के मामले में हाई कोर्ट के परमानेंट जज और एडिशनल जज एक ही पायदान पर हैं।

    विभिन्न उदाहरणों का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि "संवैधानिक पद के लिए वन रैंक वन पेंशन आदर्श होनी चाहिए।"

    विभिन्न उदाहरणों और हाईकोर्ट जज (वेतन और सेवा की शर्तें) अधिनियम 1954 के प्रावधानों का विश्लेषण करने के बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने सिद्धांतों को इस प्रकार संक्षेप में प्रस्तुत किया:

    (i) एक रिटायर जज की पेंशन की गणना करने के लिए जज के रूप में उसकी पूरी सेवा को ध्यान में रखना होगा। इसके लिए उसके द्वारा लिया गया अंतिम वेतन हाईकोर्ट जज के रूप में उसके द्वारा लिया गया वेतन होना चाहिए, न कि वह वेतन जो उसे जिला जज के रूप में मिलता, यदि उसे हाईकोर्ट का जज नियुक्त नहीं किया गया होता। संदर्भ: एम.एल. जैन एवं अन्य बनाम भारत संघ (1985) 2 एससीसी 355।

    (ii) हाईकोर्ट एक्ट की प्रथम अनुसूची के भाग III के पैराग्राफ 2 के खंड (बी) में किसी भी राशि की अधिकतम परिसीमा भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत संधारणीय नहीं है, क्योंकि यह भेदभाव पैदा करती है। किसी भी मामले में हाईकोर्ट एक्ट की प्रथम अनुसूची के भाग III के पैराग्राफ 2 के खंड (बी) के तहत प्रदान की गई उक्त अधिकतम परिसीमा 1 जनवरी 1996 से प्रभावी रूप से समाप्त हो गई, जैसा कि एम.एल. जैन बनाम भारत संघ (II) (1991) 1 एससीसी 644। इस प्रकार, रिटायर जजों की पेंशन की गणना एचसीजे एक्ट की पहली अनुसूची के भाग III के पैराग्राफ 2 के प्रावधान में प्रदान की गई छत के आधार पर की जानी चाहिए [एम.एल. जैन (II) (सुप्रा)]।

    (iii) संवैधानिक पद धारण करने वाले हाईकोर्ट जज की पेंशन के निर्धारण के संबंध में कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। जजों को जिस स्रोत से भी लिया जाता है, उन्हें उसी तरह की पेंशन का भुगतान किया जाना चाहिए जैसे उन्हें सेवारत जजों के समान वेतन, भत्ते और सुविधाएं दी जाती हैं [पी. रामकृष्णम राजू बनाम भारत संघ और अन्य (2014) 12 एससीसी 1]।

    (iv) न्यायिक अधिकारी की सेवाएं जो न्यायिक सेवाओं से हाईकोर्ट का जज बनता है, उसी तरह बार के सदस्य का अनुभव जो बार से हाईकोर्ट का जज बनता है, उसको भी ध्यान में रखा जाना आवश्यक है, रामकृष्णम राजू (सुप्रा) और जगदीश चंद्र गुप्ता बनाम भारत संघ 2024 आईएनएससी 862]।

    (v) बार से नियुक्त हाईकोर्ट जजों और सेवाओं से नियुक्त हाईकोर्ट जजों के बीच कोई भी वर्गीकरण अनुचित है। प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्य के साथ कोई कानूनी रूप से स्वीकार्य संबंध नहीं है [पी. रामकृष्णम राजू (सुप्रा)]।

    (vi) संवैधानिक पद के संबंध में वन रैंक वन पेंशन आदर्श होना चाहिए [पी. रामकृष्णम राजू (सुप्रा)]।

    (vii) फैमिली पेंशन के भुगतान के मामले में कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता [पी. रामकृष्णम राजू (सुप्रा)]।

    (viii) जिला जज के रूप में रिटायरमेंट की तिथि और हाईकोर्ट जज के रूप में पद ग्रहण करने की तिथि के बीच की अवधि के लिए सेवा में व्यवधान हाईकोर्ट जज के रूप में प्राप्त वेतन के आधार पर पेंशन से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता। ऐसे जजों की पेंशन भी हाईकोर्ट जजों के रूप में प्राप्त वेतन के आधार पर होनी चाहिए [भारत संघ बनाम जस्टिस (रिटायर) राज राहुल गर्ग (राज रानी जैन)।

    (ix) जो व्यक्ति हाईकोर्ट जज के रूप में रिटायर होता है, भले ही वह नई पेंशन योजना (एनपीएस) के लागू होने के बाद राज्य न्यायपालिका में नियुक्त किया गया हो, फिर भी वह एचसीजे एक्ट के तहत जीपीएफ के लाभ का हकदार होगा [जस्टिस शैलेंद्र सिंह बनाम भारत संघ]।

    केस टाइटल: जिला न्यायपालिका और उच्च न्यायालय एसएमडब्ल्यू (सी) संख्या 4/2024 में सेवा अवधि पर विचार करते हुए पेंशन के पुनर्निर्धारण के संबंध में, और संबंधित मामले।

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