POCSO मामले में 'One Day Trial': सुप्रीम कोर्ट ने दोषसिद्धि रद्द करने के बाद नए सिरे से सुनवाई के लिए हाईकोर्ट के आदेश की पुष्टि की

Shahadat

7 March 2024 3:26 AM GMT

  • POCSO मामले में One Day Trial: सुप्रीम कोर्ट ने दोषसिद्धि रद्द करने के बाद नए सिरे से सुनवाई के लिए हाईकोर्ट के आदेश की पुष्टि की

    सुप्रीम कोर्ट ने (01 मार्च को) मामले में 'डे-नोवो' मुकदमे के पटना हाईकोर्ट के आदेश की पुष्टि की, जहां यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत आरोपी का मुकदमा 'एक दिन' में समाप्त हो गया। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ट्रायल कोर्ट ने 'बदसूरत जल्दबाजी' दिखाई।

    जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की।

    समझने के लिए अभियोजन पक्ष का रुख यह है कि आरोपी, पीड़िता, आठ साल की बच्ची को फुसलाकर, उसे दुकान और फिर 'बागान' में ले गया। उसमें अपीलकर्ता ने कथित तौर पर पीड़िता पर यौन उत्पीड़न किया। संज्ञान लेने पर ट्रायल कोर्ट ने अगले दिन ही आरोप तय कर दिए। आरोपी को उसके खिलाफ आरोप तय करने पर ट्रायल कोर्ट को संबोधित करने का अवसर नहीं दिया गया। अभियुक्त को दोषी ठहराने वाला निर्णय भी उसी तारीख को पारित किया गया।

    उक्त निर्णय में कहा गया,

    "यहां यह उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा कि मौजूदा मामले का निपटारा इसके खुलने यानी आरोप तय होने के एक दिन के भीतर कर दिया गया।"

    हालांकि, हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि आदेश रद्द करते हुए रिमांड का आदेश पारित किया। इसमें कहा गया कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के साथ-साथ भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 की घोर उपेक्षा की गई।

    हाईकोर्ट ने कहा,

    "आरोप तय होने के तुरंत बाद उसी दिन अभियोजन पक्ष के साक्ष्य दर्ज करने में जल्दबाजी, खासकर जब आरोपी विचाराधीन कैदी हो, न्याय के उद्देश्यों को विफल कर देगा और दोनों पक्षों के लिए पूर्वाग्रह पैदा कर सकता है।"

    इस आदेश पर आपत्ति जताते हुए मूल याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वर्तमान अपील दायर की। हालांकि, डिवीजन बेंच ने हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण की पुष्टि की। ऐसा करते हुए न्यायालय ने विशेष अदालत को साक्ष्य दर्ज करने के लिए तारीख तय करने और आपराधिक प्रक्रिया, 1973 के प्रावधानों का 'सही अक्षरश और भावना के साथ' पालन करने का भी निर्देश दिया।

    कोर्ट ने आगे निर्देश दिया,

    “उपरोक्त तिथि पर विशेष अदालत दूसरे प्रतिवादी को अपनी पसंद का वकील नियुक्त करने के लिए केवल एक सप्ताह का समय देगी। ऐसा करने में विफल रहने पर वकील, जो पहले से ही दूसरे प्रतिवादी के मामले का समर्थन करने के लिए नियुक्त किया गया, दूसरे प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व करना जारी रखेगा।''

    अदालत ने अंत में अपीलकर्ता, मामले के गवाहों, परिवार के सदस्यों और अभियोजक को मुकदमे के निपटारे तक प्रदान की गई पुलिस सुरक्षा बढ़ा दी।

    केस टाइटल: बब्लू यादव बनाम बिहार राज्य

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