मध्यस्थता कार्यवाही में हस्ताक्षर न करने वालों को भाग लेने का कोई अधिकार नहीं, उनकी उपस्थिति गोपनीयता का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

14 Aug 2025 10:25 AM IST

  • मध्यस्थता कार्यवाही में हस्ताक्षर न करने वालों को भाग लेने का कोई अधिकार नहीं, उनकी उपस्थिति गोपनीयता का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (13 अगस्त) को कहा कि मध्यस्थता समझौते पर हस्ताक्षर न करने वाला पक्ष मध्यस्थता कार्यवाही में भाग नहीं ले सकता, क्योंकि मध्यस्थता समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले पक्ष केवल मध्यस्थता कार्यवाही में उपस्थित रहने के हकदार हैं।

    जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की खंडपीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया, जिसमें मध्यस्थता समझौते पर हस्ताक्षर न करने वालों को अपने वकीलों की उपस्थिति में मध्यस्थता कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति दी गई थी।

    इस प्रकार, न्यायालय ने इस मुद्दे पर विचार किया,

    "क्या मध्यस्थता कार्यवाही के लिए किसी समझौते पर हस्ताक्षर न करने वाले पक्ष के लिए ऐसी मध्यस्थता कार्यवाही में उपस्थित रहना स्वीकार्य है?"

    नकारात्मक उत्तर देते हुए जस्टिस चंदुरकर द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया:

    “एक बार जब यह स्पष्ट हो जाता है कि मध्यस्थता निर्णय उक्त समझौता ज्ञापन/एफएसडी के गैर-पक्षकारों को बाध्य नहीं करेगा, क्योंकि ऐसे पक्ष उक्त दस्तावेजों पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं है तो समझौता ज्ञापन/एफएसडी के गैर-हस्ताक्षरकर्ता को एकमात्र मध्यस्थ के समक्ष कार्यवाही में उपस्थित रहने की अनुमति देने का कोई भी कानूनी आधार नहीं होगा। जब मध्यस्थता कार्यवाही केवल मध्यस्थता समझौते के पक्षों के बीच ही हो सकती है। अधिनियम की धारा 35 ऐसे समझौते के गैर-हस्ताक्षरकर्ताओं पर पारित होने वाले मध्यस्थता निर्णय को बाध्यकारी नहीं बनाती है तो हमें अधिनियम द्वारा प्रदत्त कोई भी कानूनी अधिकार नहीं मिलता, जो समझौते के गैर-पक्षकार को समझौते के हस्ताक्षरकर्ताओं के बीच मध्यस्थता कार्यवाही में उपस्थित रहने में सक्षम बनाता हो।”

    संक्षेप में मामला

    अपीलकर्ताओं - पवन गुप्ता (पीजी) और कमल गुप्ता (केजी) के बीच मौखिक पारिवारिक समझौता (2015) बाद में समझौता ज्ञापन/पारिवारिक समझौता विलेख (2019) में औपचारिक रूप से दर्ज किया गया, जिसमें प्रतिवादी - राहुल गुप्ता को शामिल नहीं किया गया।

    समझौता ज्ञापन के मध्यस्थता खंड के अंतर्गत एक मध्यस्थता खंड लागू किया गया, जिसमें प्रतिवादी - राहुल गुप्ता ने समझौते पर हस्ताक्षरकर्ता न होने के बावजूद हस्तक्षेप की मांग की।

    हाईकोर्ट मध्यस्थता कार्यवाही में गैर-हस्ताक्षरकर्ता की उपस्थिति की अनुमति देने वाला हस्तक्षेप आवेदन स्वीकार करने के लिए इच्छुक नहीं था, लेकिन बाद में उसे रेफरल चरण के बाद यानी मध्यस्थता की नियुक्ति के बाद मध्यस्थता कार्यवाही में उपस्थित होने की अनुमति दी।

    हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ मध्यस्थता समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    हाईकोर्ट के निर्णय को रद्द करते हुए जस्टिस चंदुरकर द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया कि कार्यवाही में गैर-हस्ताक्षरकर्ता के उपस्थित होने के बावजूद, पारित निर्णय उन पर बाध्यकारी नहीं होगा। उनके पास किसी निर्णय के प्रवर्तन को चुनौती देने के लिए एकमात्र उपाय मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 36 के तहत उपलब्ध है।

    अदालत ने कहा,

    "किसी अजनबी को मध्यस्थता कार्यवाही में उपस्थित रहने की अनुमति देना, खासकर जब पारित किया जाने वाला निर्णय ऐसे अजनबी पर बाध्यकारी न हो, कानून के लिए अज्ञात मार्ग अपनाना होगा। यदि समझौते पर हस्ताक्षर न करने वाले किसी पक्षकार के विरुद्ध ऐसे निर्णय को लागू करने की मांग की जाती है तो उसके लिए अधिनियम की धारा 36 के तहत कोई उपाय उपलब्ध है।"

    गैर-हस्ताक्षरकर्ता को मध्यस्थता कार्यवाही की गोपनीयता भंग करने की अनुमति देना

    न्यायालय ने कहा,

    “इस स्तर पर अधिनियम की धारा 42A के प्रावधानों का संदर्भ लेना आवश्यक है। मध्यस्थ, मध्यस्थता संस्था और मध्यस्थता समझौते के पक्षकारों को सभी मध्यस्थता कार्यवाहियों की गोपनीयता बनाए रखनी होगी। सूचना की गोपनीयता बनाए रखने के पीछे विधायी मंशा बिल्कुल स्पष्ट है। मध्यस्थता कार्यवाही में किसी अजनबी को उपस्थित रहने और उक्त कार्यवाही का अवलोकन करने की अनुमति देना अधिनियम की धारा 42A के प्रावधानों का उल्लंघन होगा। इस आधार पर भी, विवादित आदेश को बरकरार नहीं रखा जा सकता।”

    तदनुसार, अपील स्वीकार कर ली गई।

    Cause Title: KAMAL GUPTA & ANR. VERSUS M/S L.R. BUILDERS PVT. LTD & ANR. ETC. (and connected matter)

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