पहले से मौजूद अधिकार वाली संपत्ति को हासिल करने के लिए समझौता डिक्री के लिए रजिस्ट्रेशन या स्टाम्प ड्यूटी की आवश्यकता नहीं : सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

23 Dec 2024 11:47 AM IST

  • पहले से मौजूद अधिकार वाली संपत्ति को हासिल करने के लिए समझौता डिक्री के लिए रजिस्ट्रेशन या स्टाम्प ड्यूटी की आवश्यकता नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि अगर किसी व्यक्ति के पास पहले से ही किसी संपत्ति का अधिकार है। वह समझौता डिक्री के माध्यम से इसे हासिल करता है तो उसे रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 के तहत इसे रजिस्टर्ड करने की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह की डिक्री पर कोई स्टाम्प ड्यूटी नहीं लगाई जाएगी, क्योंकि यह कोई नया अधिकार नहीं बनाती है। इसलिए भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 3 के तहत 'हस्तांतरण' के रूप में योग्य नहीं है।

    जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ एमपी हाई कोर्ट की इंदौर बेंच के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कलेक्टर ऑफ स्टैम्प्स के फैसले को बरकरार रखा गया, जिसमें अपीलकर्ता द्वारा समझौता कार्यवाही में विषय वस्तु संपत्ति को हासिल करने के लिए 6,67,500/- रुपये का स्टाम्प शुल्क निर्धारित किया गया, जिसमें उसके पास पहले से मौजूद अधिकार है।

    यह मामला मध्य प्रदेश के धार जिले के खेड़ा गांव में एक जमीन के टुकड़े के लिए स्टाम्प ड्यूटी के भुगतान से संबंधित है, जिसे अपीलकर्ता (मुकेश) ने सिविल मुकदमे में समझौता डिक्री के माध्यम से अधिग्रहित किया। 2013 में अपीलकर्ता ने जमीन पर घोषणा और स्थायी निषेधाज्ञा की मांग करते हुए सिविल मुकदमा दायर किया। राष्ट्रीय लोक अदालत द्वारा आदेशित समझौता डिक्री के माध्यम से मुकदमे का समाधान किया गया।

    हालांकि, तहसीलदार (कार्यकारी मजिस्ट्रेट) ने मामले को म्यूटेशन के लिए स्टाम्प कलेक्टर को भेज दिया। कलेक्टर ने समझौता डिक्री को भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 के अनुच्छेद 22 के तहत हस्तांतरण के रूप में मानते हुए ₹6,67,500 का स्टाम्प शुल्क निर्धारित किया।

    राजस्व बोर्ड और हाईकोर्ट ने समझौता डिक्री पर स्टाम्प ड्यूटी लगाने का फैसला बरकरार रखा।

    जस्टिस महादेवन द्वारा लिखे गए फैसले ने हाईकोर्ट का फैसला पलट दिया। इसमें कहा गया कि हाईकोर्ट ने समझौता डिक्री के माध्यम से अर्जित संपत्ति पर स्टाम्प शुल्क लगाने के कलेक्टर ऑफ स्टैम्प्स के निर्णय का समर्थन करने में गलती की, क्योंकि डिक्री ने केवल पहले से मौजूद अधिकारों की पुष्टि की है और संपत्ति में कोई नया अधिकार नहीं बनाया।

    न्यायालय के अनुसार, यदि धारा 17(2)(vi) के तहत उल्लिखित नीचे उल्लिखित तीन शर्तें पूरी होती हैं तो समझौता डिक्री के लिए रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं होगी: -

    "(i) बिना किसी मिलीभगत के समझौते की शर्तों के अनुसार समझौता डिक्री होनी चाहिए।

    (ii) समझौता डिक्री मुकदमे में विषयगत संपत्ति से संबंधित होनी चाहिए।

    (iii) विषयगत संपत्ति पर पहले से मौजूद अधिकार होना चाहिए और समझौता डिक्री से कोई नया अधिकार नहीं बनना चाहिए।"

    यह देखते हुए कि उपरोक्त शर्तें पूरी हो गई, न्यायालय ने कहा कि पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि चूंकि समझौता डिक्री केवल पहले से मौजूद अधिकार का दावा करती है। कोई नया अधिकार नहीं बनाती है, इसलिए यह भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 3 के साथ अनुसूची 22 I या I-A में सूचीबद्ध दस्तावेजों के अंतर्गत नहीं आती है और स्टाम्प शुल्क के अधीन नहीं है।

    न्यायालय ने कहा,

    "यह स्पष्ट है कि न्यायालय के आदेश/डिक्री पर स्टाम्प शुल्क नहीं लगता, क्योंकि यह भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 3 के साथ अनुसूची I या I-A में उल्लिखित दस्तावेजों के अंतर्गत नहीं आता है। यद्यपि स्टाम्प कलेक्टर ने भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की अनुसूची IA के अनुच्छेद 22 के अनुसार विषय भूमि के लिए स्टाम्प शुल्क निर्धारित किया है, जो हस्तांतरण के बारे में बताता है। इस मामले में हम पहले ही मान चुके हैं कि समझौता डिक्री अनुसूची में उल्लिखित उपकरणों के अंतर्गत नहीं आती। यह केवल पहले से मौजूद अधिकारों का दावा करती है। इसलिए मामले के तथ्यों में सहमति डिक्री हस्तांतरण के रूप में काम नहीं करेगी, क्योंकि कोई अधिकार हस्तांतरित नहीं किया गया। इसके लिए स्टाम्प शुल्क के किसी भी भुगतान की आवश्यकता नहीं है। चूंकि अपीलकर्ता ने केवल पहले से मौजूद अधिकार का दावा किया और सहमति डिक्री के माध्यम से कोई नया अधिकार नहीं बनाया गया। इसलिए विषय भूमि के म्यूटेशन से संबंधित दस्तावेज़ स्टाम्प शुल्क के लिए उत्तरदायी नहीं है।”

    न्यायालय ने आगे कहा,

    “अंतिम विश्लेषण में हम पाते हैं कि हाईकोर्ट द्वारा पारित विवादित आदेश, जिसमें नीचे के अधिकारियों के आदेशों को बरकरार रखा गया, उसका कोई आधार नहीं है। इसलिए इसे रद्द किया जाता है। तदनुसार, यह अपील स्वीकार की जाती है और संबंधित प्राधिकारी अपीलकर्ता के पक्ष में विषय भूमि के संबंध में राजस्व अभिलेखों का म्यूटेशन करेगा। लागत के संबंध में कोई आदेश नहीं है।”

    तदनुसार, अपील स्वीकार की गई।

    केस टाइटल: मुकेश बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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