मोटर दुर्घटना दावों में भविष्य की संभावनाओं पर ब्याज देना कोई अवैधता नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

14 July 2025 7:08 PM IST

  • मोटर दुर्घटना दावों में भविष्य की संभावनाओं पर ब्याज देना कोई अवैधता नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मोटर दुर्घटना मुआवज़ा दावों के मामलों में भविष्य की संभावनाओं पर ब्याज देना कोई अवैधता नहीं है।

    न्यायालय ने बीमा कंपनियों को सलाह दी कि वे दुर्घटना की सूचना मिलने पर कम से कम अस्थायी रूप से सक्रिय रूप से गणना के आधार पर दावे का निपटान करें, जिससे भविष्य की संभावनाओं पर ब्याज लगने और लंबी मुकदमेबाजी में फंसने से बचा जा सके।

    अदालत ने कहा,

    "जब मामला न्यायाधिकरण के समक्ष लंबित हो या उच्च मंचों में अपील चल रही हो तो दावेदार भविष्य की संभावनाओं के लिए मुआवज़े से वंचित रह जाते हैं। यदि उन्हें समय पर भुगतान कर दिया जाए, तो दावेदार इसका उपयोग कर सकते हैं। ऐसा न होने पर आश्रितता की हानि के कारण दावेदारों को अपनी आजीविका का स्रोत कहीं और से ढूंढना पड़ेगा। इसकी भरपाई कम से कम ब्याज देकर की जानी चाहिए, जो अक्सर नाममात्र का होता है, क्योंकि केवल साधारण ब्याज ही दिया जाता है। यदि दावेदारों को दुर्घटना की सूचना बीमा कंपनी को देने पर न्यायाधिकरण के निर्णय के अधीन मोटे अनुमान के आधार पर राशि वितरित की जाती तो कम से कम वितरित की गई राशि तक कोई ब्याज देयता नहीं होती।"

    जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने उस मामले की सुनवाई की, जिसमें अपीलकर्ता-ओरिएंटल इंश्योरेंस प्रतिवादी-दावेदार को भविष्य की संभावनाओं पर 9% ब्याज देने के हाईकोर्ट के फैसले से व्यथित था, क्योंकि वर्तमान मामले में 13 का गुणक लागू किया गया था और मामला 12 वर्षों से लंबित था। इससे दावेदारों को केवल 50,000 रुपये की राशि प्राप्त हुई थी।

    हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और तर्क दिया कि भविष्य की संभावनाएं अग्रिम भुगतान हैं। इसलिए उन पर ब्याज नहीं लगता।

    जस्टिस चंद्रन द्वारा लिखित फैसले में विवादित फैसला बरकरार रखते हुए कहा गया कि भविष्य की संभावनाएं आश्रितता की हानि के मुआवजे का हिस्सा होती हैं, जब ऐसा मुआवजा देने में देरी होती है तो बीमित व्यक्ति उस अवधि के लिए ब्याज पाने का हकदार होता है, जिसके दौरान उसे अपने उचित बकाया से अन्यायपूर्ण तरीके से वंचित किया गया था।

    इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी कहा कि भविष्य की संभावनाओं पर ब्याज देना उचित है, क्योंकि दावेदार को दी जा रही मुआवज़े की राशि गुणक अपनाने की अवधि के बाद ही प्राप्त होगी।

    न्यायालय ने कहा,

    “बीमा कंपनी द्वारा उठाया गया अत्यंत प्रासंगिक मुद्दा भविष्य की संभावनाओं पर ब्याज देने की अवैधता है, जो किसी भी स्थिति में अग्रिम रूप से प्राप्त राशि होती है, जिसका लाभ आमतौर पर दावेदारों को भविष्य में ही मिलता है... हमें इस तर्क को स्वीकार करने का कोई कारण नहीं दिखता।”

    न्यायालय ने आदेश दिया,

    “हम दोनों मामलों में हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखते हैं और उसमें हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाते। यदि दी गई राशि का भुगतान नहीं किया जाता है तो उसे 3 महीने की अवधि के भीतर चुकाया जाएगा और यदि भुगतान में चूक होती है तो भुगतान की कुल राशि पर 12% ब्याज लगेगा, जिसमें चूक की तारीख से ब्याज भी शामिल होगा।”

    तदनुसार, अपील खारिज कर दी गई।

    Cause Title: THE ORIENTAL INSURANCE CO. LTD. VERSUS NIRU @ NIHARIKA & ORS.

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