मुजफ्फरनगर स्टूडेंट को थप्पड़ मारने का मामला | 'उत्तर प्रदेश सरकार घटना के बाद अपेक्षित तरीके से कार्रवाई करने में विफल रही': सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

12 Jan 2024 8:18 AM GMT

  • मुजफ्फरनगर स्टूडेंट को थप्पड़ मारने का मामला | उत्तर प्रदेश सरकार घटना के बाद अपेक्षित तरीके से कार्रवाई करने में विफल रही: सुप्रीम कोर्ट

    मुजफ्फरनगर स्टूडेंट को थप्पड़ मारने के मामले में ताजा घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (12 जनवरी) को मौखिक रूप से टिप्पणी की कि राज्य सरकार ने घटना के बाद अपेक्षित तरीके से कार्रवाई नहीं की।

    जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ कार्यकर्ता तुषार गांधी द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें घटना की उचित और समयबद्ध जांच की मांग की गई।

    वर्तमान मामला उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में प्राथमिक विद्यालय की टीचर द्वारा स्कूली बच्चों को अपने मुस्लिम सहपाठी को थप्पड़ मारने का निर्देश देने से संबंधित है, जिसका वीडियो अगस्त में सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था।

    पिछली सुनवाई के दौरान, अदालत ने राज्य सरकार से हलफनामा दाखिल करने को कहा था कि वह पीड़िता की काउंसलिंग के संबंध में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) की सिफारिशों को कैसे लागू करना चाहती है। इस निर्देश के अनुपालन में शिक्षा विभाग ने अतिरिक्त हलफनामा दायर किया, खंडपीठ ने इसका खुलासा किया।

    हालांकि, वकील शादान फरासत ने विभाग की प्रतिक्रिया को 'अपर्याप्त' बताया।

    उन्होंने कहा,

    "मैंने हलफनामा देखा है। मुझे यह कल ही मिला है। मेरे सम्मानपूर्वक निवेदन के अनुसार, यह अपर्याप्त है।"

    जस्टिस ओक ने जवाब में वकील से याचिकाकर्ता के सुझाव उत्तर प्रदेश की एडिशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद को लिखित रूप में भेजने को कहा।

    उन्होंने कहा,

    "आपके जो भी सुझाव हैं, उन्हें लिखित रूप में दें। यदि आवश्यक हुआ तो हम एक आदेश पारित करेंगे। अंततः, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सिफारिशों का पर्याप्त रूप से अनुपालन किया जाए। अपने सुझाव उन्हें दें।"

    यह पूछे जाने पर कि क्या बच्चा अभी भी उसी स्कूल में नामांकित है, एएजी प्रसाद ने वही दोहराया, जो उत्तर प्रदेश राज्य और उसके शिक्षा विभाग ने पहले के मौकों पर कहा था। ये उत्तरदाता शुरू में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) बोर्ड के तहत इस प्राइवेट स्कूल में उनके प्रवेश की सुविधा के लिए अनिच्छुक हैं। उनका तर्क है कि उनके निवास स्थान के करीब सरकारी स्कूल हैं। उनके एडमिशन के बाद भी सरकार ने बच्चे और उसके सहपाठियों के बीच सामाजिक-आर्थिक मतभेदों के साथ-साथ स्कूल तक पहुंचने के लिए उसे प्रतिदिन तय की जाने वाली दूरी पर चिंता जताई।

    सुनवाई के दौरान, कानून अधिकारी ने फिर से कोशिश की,

    "वह पहलू हो चुका है। हालांकि, यह उन्हें तय करना है। इस छोटे बच्चे को 28 किलोमीटर की यात्रा करनी है..."

    जवाब में फरासत ने बताया कि बच्चे के पिता उसे दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता के कारण हर दिन स्कूल ले जाते हैं। हालांकि, प्रसाद ने तर्क दिया कि यह शिक्षा के अधिकार (आरटीई) अधिनियम के विपरीत है, जो कहता है कि कक्षा I से V तक के स्टूडेंट को स्कूल के एक किलोमीटर के दायरे में और कक्षा VI से VIII तक के बड़े छात्रों को तीन किलोमीटर के दायरे में रहना चाहिए।

    फरासत ने प्रतिवाद किया,

    "जो स्कूल इस दायरे में हैं, उसने उसके साथ ऐसा किया।"

    इस मौके पर जस्टिस ओक ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए टिप्पणी की,

    "यह सब इसलिए होता है, क्योंकि राज्य वह नहीं करता है, जो इस अपराध के बाद करने की अपेक्षा की जाती है। जिस तरह से यह घटना हुई है, उसके बारे में राज्य को बहुत चिंतित होना चाहिए। इसलिए हमने अधिनियम के कार्यान्वयन के संबंध में अन्य मुद्दे भी उठाए हैं। बाद में TISS की सिफारिशों पर गौर करते हुए हम जांच करेंगे कि क्या अन्य निर्देशों का अनुपालन किया गया।"

    अंत में सुनवाई 6 फरवरी तक के लिए स्थगित करते हुए खंडपीठ ने कहा,

    "[शिक्षा विभाग] द्वारा अतिरिक्त हलफनामा दायर किया गया, जिसमें टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज द्वारा की गई सिफारिशों के कार्यान्वयन के लिए सुझाव शामिल हैं। याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित वकील बच्चे के माता-पिता से परामर्श करना, इस पहलू पर [उत्तर प्रदेश राज्य] की ओर से उपस्थित वकील को सुझाव देने के लिए स्वतंत्र है। 9 फरवरी को सूची दें, जब हम TISS द्वारा सिफारिशों के कार्यान्वयन पर पक्षों को सुनेंगे।"

    अब तक क्या हुआ?

    सितंबर में अदालत ने मुजफ्फरनगर पुलिस सुपरिटेंडेंट को नोटिस जारी करते हुए जांच की प्रगति और नाबालिग पीड़िता की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदमों पर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। पुलिस सुपरिटेंडेंट की रिपोर्ट पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने मामले को संभालने के उत्तर प्रदेश पुलिस के तरीके पर असंतोष व्यक्त किया, विशेष रूप से एफआईआर दर्ज करने में देरी और उसमें सांप्रदायिक घृणा के आरोपों को हटा दिए जाने पर। नतीजतन, अदालत ने आदेश दिया कि एक सीनियर पुलिस अधिकारी मामले की जांच करे।

    विशेष रूप से, अदालत ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम और नियमों का पालन करने में "राज्य की ओर से प्रथम दृष्टया विफलता" भी नोट की, जो स्टूडेंट के शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न और धर्म और जाति के आधार पर उनके भेदभाव पर रोक लगाती है।

    खंडपीठ ने टिप्पणी की कि यदि आरोप सही हैं तो इससे राज्य की अंतरात्मा को झटका लगना चाहिए। यह भी देखा गया कि यदि किसी स्टूडेंट को केवल इस आधार पर दंडित करने की मांग की जाती है कि वे विशेष समुदाय से हैं तो कोई गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं हो सकती।

    राज्य सरकार को पीड़ित के साथ-साथ घटना में शामिल अन्य बच्चों को विशेषज्ञ परामर्श प्रदान करने और शिक्षा का अधिकार अधिनियम और संविधान के अनुच्छेद 21 ए के संदर्भ में पीड़ित को सुविधाएं प्रदान करने के लिए भी कहा गया। बाद की सुनवाई के दौरान, अदालत ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) बोर्ड के तहत प्राइवेट स्कूल में पीड़िता के एडमिशन की सुविधा देने में अनिच्छा के लिए शिक्षा विभाग को कड़ी फटकार लगाई। इसके साथ ही, इस प्रक्रिया के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित समिति के गठन की आवश्यकता पर सवाल उठाया।

    इतना ही नहीं, खंडपीठ ने मुजफ्फरनगर स्टूडेंट थप्पड़ कांड के पीड़ित से मिलने और उसे उसके घर में परामर्श प्रदान करने के लिए बाल कल्याण के क्षेत्र में काम करने वाली एक्सर्ट एजेंसी नियुक्त करने के विचार पर भी विचार किया, जबकि राज्य सरकार के आग्रह पर असंतोष व्यक्त किया कि बच्चा परामर्श प्राप्त करने के लिए परामर्श केंद्र पर जाए।

    नवंबर में कड़े शब्दों में दिए गए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता के लिए परामर्श और एडमिशन से संबंधित आदेशों का पालन करने में विफल रहने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य और उसके शिक्षा विभाग की आलोचना की। राज्य के दृष्टिकोण पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए अदालत ने परामर्श और विशेषज्ञ बाल परामर्शदाता प्रदान करने के लिए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज को नियुक्त किया। शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव को भी अगली सुनवाई में वर्चुअली उपस्थित होने का निर्देश दिया गया।

    पिछले अवसर पर अदालत ने खुलासा किया कि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने अपनी रिपोर्ट पेश की और सरकार से पूछा कि वह इसमें शामिल सिफारिशों को कैसे लागू करना चाहती है। इस पर उत्तर प्रदेश की एडिशनल एडवोकेट गरिमा प्रसाद ने अदालत को आश्वासन दिया कि राज्य सरकार ने संस्थान की सिफारिशों की जांच की है, समझा है और चर्चा की है।

    हालांकि, पीड़ित और प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले अन्य बच्चों के बीच सामाजिक आर्थिक मतभेदों के साथ-साथ उसे हर दिन यात्रा करने की दूरी पर चिंता जताते हुए सरकारी वकील ने बताया कि उसके निवास स्थान के करीब कई प्राइवेस और सरकारी स्कूल हैं।

    फरासत ने सरकार के सुझाव पर कड़ी आपत्ति जताई और कहा,

    "यह शहर का सबसे अच्छा स्कूल है। उसके माता-पिता चाहते हैं कि वह सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ें। यही वजह है कि उसके पिता उसे हर रोज छोड़ने जाने का प्रयास कर रहे हैं।"

    जस्टिस ओक ने कानून अधिकारी से कहा,

    "अपने सुझाव माता-पिता के सामने रखें। अंतत: उन्हें ही निर्णय लेना होगा। बच्चे को सर्वोत्तम संभव स्कूल में होना चाहिए।

    इसने उत्तर प्रदेश सरकार से यह भी जवाब मांगा कि उसने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज द्वारा की गई सिफारिशों को कैसे लागू करने का प्रस्ताव दिया।

    केस टाइटल- तुषार गांधी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य | रिट याचिका (आपराधिक) नंबर 406/2023

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