केवल सिविल कार्यवाही शुरू करना FIR रद्द करने का आधार नहीं : सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
30 April 2025 11:07 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि केवल सिविल कार्यवाही शुरू करने से ही FIR रद्द करने का औचित्य सिद्ध नहीं हो जाता।
कोर्ट ने कहा कि अनुबंध के उल्लंघन के लिए सिविल उपाय का अस्तित्व आपराधिक कार्यवाही शुरू करने या जारी रखने से नहीं रोकता।
बेंच ने कहा,
"केवल इसलिए कि अनुबंध के उल्लंघन के लिए उपाय उपलब्ध है, इससे कोर्ट को यह निष्कर्ष निकालने का अधिकार नहीं मिल जाता कि सिविल उपाय ही एकमात्र उपाय है।"
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि केवल समानांतर सिविल मुकदमेबाजी के आधार पर आपराधिक अभियोजन को रोका नहीं जा सकता।
फैसले में स्पष्ट किया गया कि जहां आरोप आपराधिक अपराध के होने का खुलासा करते हैं, खासकर वाणिज्यिक लेनदेन के संदर्भ में, तो मामले की जांच की जानी चाहिए और यदि आवश्यक हो तो मुकदमा चलाया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह तथ्य कि अपराध वाणिज्यिक लेनदेन के दौरान किया गया, अपने आप में यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं है कि शिकायत आगे की जांच या मुकदमे की मांग नहीं करती।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने कहा:
"यह सामान्य कानून है कि केवल दीवानी कार्यवाही शुरू करना FIR रद्द करने या विवाद को केवल दीवानी विवाद मानने का आधार नहीं है। इस न्यायालय ने विभिन्न निर्णयों में माना है कि केवल इसलिए कि अनुबंध के उल्लंघन के लिए उपाय प्रदान किया गया, यह न्यायालय को यह निष्कर्ष निकालने का अधिकार नहीं देता कि दीवानी उपाय ही एकमात्र उपाय है और किसी भी तरह से आपराधिक कार्यवाही शुरू करना न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इस न्यायालय का विचार है कि चूंकि अपराध एक वाणिज्यिक लेनदेन के दौरान किया गया, इसलिए यह मानना पर्याप्त नहीं होगा कि शिकायत आगे की जांच और, यदि आवश्यक हो, तो परीक्षण की मांग नहीं करती है।"
सैयद अक्सरी हादी अली ऑगस्टीन इमाम बनाम राज्य (दिल्ली प्रशासन) (2009) 5 एससीसी 528, ली कुन ही बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2012) 3 एससीसी 132 और ट्रिसन्स केमिकल्स बनाम राजेश अग्रवाल (1999) 8 एससीसी 686 के निर्णयों का संदर्भ दिया गया।
बेंच दिल्ली हाईकोर्ट के एक निर्णय के विरुद्ध अपील पर निर्णय ले रही थी, जिसमें बिक्री के लिए समझौते से संबंधित विवाद से उत्पन्न मामले में FIR रद्द की गई थी। मामले में क्रॉस-FIR थीं। विवाद को लेकर सिविल मुकदमे भी दायर किए गए।
जिसे FIR को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था, वह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 467/468/471/420/120बी के तहत धोखाधड़ी, जालसाजी आदि के लिए दर्ज की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने यह देखते हुए हाईकोर्ट का फैसला पलट दिया कि FIR में लगाए गए आरोपों से प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराधों का पता चलता है।
केस टाइटल: पुनीत बेरीवाला बनाम दिल्ली राज्य और अन्य।

