आईओ ने पुलिस रिमांड मांगने की हिम्मत कैसे की?: आदेश का उल्लंघन करने पर व्यक्ति को पुलिस हिरासत में भेजने पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा

Shahadat

10 Jan 2024 10:36 AM GMT

  • आईओ ने पुलिस रिमांड मांगने की हिम्मत कैसे की?: आदेश का उल्लंघन करने पर व्यक्ति को पुलिस हिरासत में भेजने पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (10 जनवरी) को गुजरात पुलिस के उन अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई अंतरिम अग्रिम जमानत की अनदेखी करते हुए व्यक्ति को हिरासत में ले लिया। कोर्ट ने मजिस्ट्रेट को भी नहीं बख्शा, जिन्होंने याचिकाकर्ता को रिमांड पर लिया।

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने पुलिस और मजिस्ट्रेट के आचरण पर बहुत असंतोष व्यक्त करते हुए गुजरात सरकार के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, पुलिस आयुक्त और पुलिस उपायुक्त, सूरत, वेसू पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर को अवमानना ​​नोटिस जारी किया। अदालत ने सूरत के अतिरिक्त मुख्य मजिस्ट्रेट को भी नोटिस जारी किया, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के बावजूद याचिकाकर्ता को पुलिस हिरासत में भेज दिया।

    'आईओ ने पुलिस रिमांड मांगने की हिम्मत कैसे की?'

    याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि 8 दिसंबर को पारित सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम अग्रिम जमानत आदेश के बावजूद, उन्हें 12 दिसंबर को नोटिस दिया गया, जिसमें उन्हें पुलिस हिरासत आवेदन के जवाब में मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया। मजिस्ट्रेट ने उन्हें 16 दिसंबर तक चार दिनों के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस हिरासत में रहते हुए उन्हें धमकी दी गई और पीटा गया।

    याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि 11 दिसंबर को पुलिस द्वारा पहले ही एक बार गिरफ्तार किए जाने और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार आवश्यक बांड भरने के बाद अग्रिम जमानत पर रिहा किए जाने के बावजूद, मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ता को रिहा नहीं किया। इस बात पर जोर दिया कि उसे नियमित जमानत याचिका दायर करनी चाहिए। इसके बाद याचिकाकर्ता द्वारा एक और नियमित जमानत याचिका दायर की गई, जिसके बाद उसे रिहा कर दिया गया और बांड निष्पादित करने के लिए कहा गया।

    खंडपीठ ने आदेश के उल्लंघन पर नाराजगी व्यक्त की।

    जस्टिस मेहता ने पूछा,

    "रिकॉर्ड के तौर पर यह अदालत के आदेश की घोर अवमानना है। उसे हिरासत में कैसे लिया जा सकता था? जांच अधिकारी रिमांड मांगने की हिम्मत कैसे कर सकता है?"

    जस्टिस गवई ने कहा,

    "इसे किसी तरह से ठीक किया जाए। जांच अधिकारी और मजिस्ट्रेट को इससे कुछ सबक सीखना चाहिए। हम मजिस्ट्रेट को अवमानना का नोटिस भी जारी करेंगे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के साथ वे इसी तरीके से निपटते हैं?"

    इस मौके पर एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने बिना शर्त माफी मांगते हुए कहा कि अधिकारियों ने "भूल" की है। लेकिन पीठ इससे प्रभावित नहीं हुई। उसने कहा कि जो कुछ भी हुआ वह "गंभीर" था।

    जस्टिस मेहता ने कहा,

    "(रिमांड) आवेदन दाखिल करना ही प्रथम दृष्टया अवमानना है। चार दिनों के लिए ज़बरदस्ती अवैध हिरासत!"

    जस्टिस गवई ने कहा,

    "मजिस्ट्रेट और आईओ को चार दिनों के लिए अंदर रहने दें।"

    जस्टिस गवई ने उनसे फुटेज की प्रतियां प्राप्त करने को कहा कि जब याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि थाने में उसके साथ, जो कुछ हुआ, वह थाने में लगे सीसीटीवी में रिकॉर्ड हो गया।

    हालांकि, राज्य के वकील ने कहा कि सीसीटीवी काम नहीं कर रहा था।

    जस्टिस मेहता ने कहा,

    "यह जानबूझकर किया गया।"

    जस्टिस गवई ने कहा,

    "यह आचरण को दर्शाता है। उसी दिन यह काम नहीं कर रहा है!"

    जस्टिस मेहता ने अविश्वास जताते हुए कहा,

    "हां, यह आचरण को दर्शाता है। नागरिक प्रकृति के मामले में रिमांड की आवश्यकता क्यों है? हत्या का हथियार बरामद किया जाना है, या क्या? घोर अवमानना। उन्हें बताना होगा कि सीसीटीवी क्यों काम नहीं कर रहा था। सूरत देश का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र है और सीसीटीवी काम नहीं कर रहा है!"

    जस्टिस गवई ने तब बताया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, सभी पुलिस स्टेशनों पर सीसीटीवी अनिवार्य हैं।

    याचिकाकर्ता द्वारा की गई दलीलों पर विचार करते हुए न्यायालय ने प्रतिवादी नंबर 5 को छोड़कर अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया, जिसे 29.01.2024 को वापस करना होगा। खंडपीठ ने कहा कि वह 29 जनवरी को फैसला करेगी कि अगले दिन से किसकी व्यक्तिगत उपस्थिति जरूरी होगी।

    जस्टिस गवई ने मौखिक रूप से कहा,

    "हलफनामा दाखिल करें। अगर हमें मिलता है तो हम डीजीपी से अवमाननाकर्ताओं को हिरासत में लेने और उन्हें साबरमती जेल या किसी अन्य जेल में भेजने के लिए कहेंगे... जब हम उनकी व्यक्तिगत उपस्थिति के लिए कहेंगे तो उन्हें अपने बैग-सामान के साथ आने के लिए कहेंगे, जब वे 29.01.2024 को अपनी उपस्थिति दिखाएंगे।''

    अदालत 8 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित अंतरिम आदेश के उल्लंघन में उन्हें गिरफ्तार करने और रिमांड पर लेने के लिए अधिकारियों के खिलाफ तुषारभाई रजनीकांत भाई शाह द्वारा दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता, जिसे धोखाधड़ी के अपराध में एफआईआर में आरोपी के रूप में नामित किया गया, गुजरात हाईकोर्ट द्वारा जमानत देने से इनकार करने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 8 दिसंबर को कोर्ट ने उनकी याचिका पर नोटिस जारी करते हुए उन्हें इस शर्त के साथ अंतरिम अग्रिम जमानत दे दी कि वह जांच में सहयोग करते रहेंगे।

    उन्होंने दलील देने के लिए सिद्धराम सतलिंगप्पा म्हेत्रे बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में पारित सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, क्योंकि इस माननीय न्यायालय द्वारा दी गई अग्रिम जमानत कभी रद्द नहीं की गई थी। इसलिए याचिकाकर्ता को नियमित जमानत याचिका दायर करने के लिए नहीं कहा जा सकता है। हिरासत से रिहा किया जाए।

    याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट इकबाल एच सैयद और एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड मोहम्मद असलम पेश हुए।

    केस टाइटल: तुषारभाई रजनीकांतभाई शाह बनाम कमल दयानिधिडायरी नंबर- 1106-2024

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