मकान मालिक-किराएदार का रिश्ता केवल बेदखली के आदेश से खत्म होता है, मध्यावधि लाभ की गणना आदेश की तारीख से की जाएगी: सुप्रीम कोर्ट

Avanish Pathak

8 April 2025 5:17 AM

  • मकान मालिक-किराएदार का रिश्ता केवल बेदखली के आदेश से खत्म होता है, मध्यावधि लाभ की गणना आदेश की तारीख से की जाएगी: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि महाराष्ट्र किराया नियंत्रण अधिनियम, 1999 के तहत यह स्थापित कानून है कि मकान मालिक और किराएदार का रिश्ता बेदखली के आदेश के पारित होने पर ही खत्म होता है।

    कोर्ट ने कहा,

    “चूंकि बेदखली का आदेश महाराष्ट्र किराया नियंत्रण अधिनियम, 1999 के तहत पारित किया गया था, इसलिए कानून की स्थापित स्थिति यह है कि बेदखली के आदेश के पारित होने पर ही मकान मालिक और किराएदार का रिश्ता खत्म होता है।”

    जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुयान की पीठ ने बेदखली के मुकदमे की तारीख से मध्य लाभ की जांच के लिए ट्रायल कोर्ट के आदेश को संशोधित कर बेदखली के आदेश की तारीख से मध्य लाभ की जांच के लिए आदेश दिया।

    जस्टिस ओका ने कहा,

    "यह मुकदमा किराया अधिनियम के तहत है; किरायेदारी की समाप्ति उस तिथि से होती है जिस दिन डिक्री पारित की जाती है। और इसलिए, मध्यवर्ती लाभ की गणना डिक्री की तिथि से की जानी चाहिए। आपको मध्यवर्ती लाभ उस तिथि से मिलेगा जिस दिन उसका कब्ज़ा अवैध हो जाता है। किरायेदारी की समाप्ति होने पर उसका कब्ज़ा अवैध हो जाता है।"

    सीपीसी की धारा 2(12) के तहत परिभाषित "मध्यवर्ती लाभ" शब्द का अर्थ है वह लाभ जो किसी व्यक्ति ने संपत्ति पर गलत तरीके से कब्ज़ा करके वास्तव में प्राप्त किया है या सामान्य परिश्रम से ऐसी संपत्ति से प्राप्त कर सकता है। मध्यवर्ती लाभ आम तौर पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अवैध कब्जे की अवधि के दौरान संपत्ति से होने वाली आय के नुकसान के लिए सही मालिक को मुआवजा देने के लिए दिया जाता है।

    वर्तमान मामले में प्रतिवादी (मकान मालिक) ने महाराष्ट्र किराया नियंत्रण अधिनियम, 1999 के तहत विभिन्न आधारों पर अपीलकर्ता (किराएदार) के खिलाफ बेदखली का मुकदमा दायर किया था। ट्रायल कोर्ट द्वारा कब्जे के लिए एक डिक्री पारित की गई थी, जो अंतिम रूप ले चुकी है। अपीलकर्ता को पहले ही परिसर से बेदखल किया जा चुका था।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुद्दा सीपीसी के आदेश XX नियम 12(1)(सी) के तहत ट्रायल कोर्ट के निर्देश के संबंध में था, जिसमें मुकदमे की तारीख से लेकर किराएदार द्वारा मकान मालिक को वाद वाली संपत्ति के खाली शांतिपूर्ण कब्जे की डिलीवरी तक के बीच के मुनाफे की जांच करने का निर्देश दिया गया था।

    चूंकि मकान मालिक-किराएदार का रिश्ता बेदखली के आदेश पर समाप्त हो जाता है, इसलिए आदेश पारित होने के बाद ही किराएदार को संपत्ति पर गलत तरीके से कब्जा करने वाला माना जाता है।

    तदनुसार, न्यायालय ने उपर्युक्त निर्देश को संशोधित किया और 29 मार्च, 2014 (बेदखली के आदेश की तिथि) से लेकर विवादित संपत्ति के खाली कब्जे की डिलीवरी तक के मध्य लाभ की जांच का आदेश दिया।

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