केरल सरकार ने उधार सीमा को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ अपने मुकदमे को सूचीबद्ध करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया

Shahadat

30 Aug 2024 12:55 PM IST

  • केरल सरकार ने उधार सीमा को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ अपने मुकदमे को सूचीबद्ध करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया

    केरल राज्य ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से वित्तीय उधार सीमा को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ दायर अपने मूल मुकदमे में संदर्भ की जांच करने के लिए एक बड़ी पीठ के गठन पर विचार करने का अनुरोध किया।

    केरल राज्य की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने मामले का उल्लेख किया।

    कह गया,

    "यह केरल की वित्तीय संरचना के बारे में मूल मुकदमा है, अदालत ने कहा कि हम सीबी को संदर्भित करेंगे, रजिस्ट्रार ने कहा कि वह ईमेल नहीं भेजेंगे, क्योंकि ये मूल मुकदमे के मामले हैं। इसलिए मैं कह रहा हूं कि माई लॉर्ड, बस इसे देखें।"

    इस पर ध्यान देते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने मामले को जल्द ही सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की।

    सीजेआई ने कहा,

    "मैं इसे सूचीबद्ध करूंगा"

    1 अप्रैल को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने संविधान के अनुच्छेद 145(3) के अनुसार राज्य की उधार लेने की क्षमता पर लगाई गई सीमाओं को चुनौती देने वाले केंद्र सरकार के खिलाफ केरल राज्य द्वारा दायर मुकदमे को 5 जजों की संविधान पीठ को भेज दिया।

    हालांकि, पीठ ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए राज्य द्वारा अतिरिक्त उधारी की अंतरिम मांग पर कोई आदेश पारित करने से इनकार किया था।

    विशेष रूप से बड़ी पीठ द्वारा विचार के लिए संदर्भित मुख्य प्रश्न हैं:

    (ए) संविधान के अनुच्छेद 131 में निहित निम्नलिखित अभिव्यक्ति का सही अर्थ और व्याख्या क्या है: "यदि और जहां तक ​​विवाद में कोई प्रश्न (चाहे कानून या तथ्य का) शामिल है, जिस पर कानूनी अधिकार का अस्तित्व या सीमा निर्भर करती है"?

    (बी) क्या संविधान का अनुच्छेद 293 राज्य को केंद्र सरकार और/या अन्य स्रोतों से उधार लेने का प्रवर्तनीय अधिकार देता है? यदि हां, तो संघ सरकार द्वारा इस तरह के अधिकार को किस सीमा तक विनियमित किया जा सकता है?

    (ग) क्या राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों द्वारा उधार लेना और पब्लिक अकाउंट से उत्पन्न होने वाली देनदारियों को संविधान के अनुच्छेद 293(3) के दायरे में शामिल किया जा सकता है?

    (घ) राजकोषीय नीति के संबंध में इस न्यायालय द्वारा न्यायिक पुनर्विचार का दायरा और सीमा क्या है, जो कथित रूप से संविधान के अनुच्छेद 293 के उद्देश्य और भावना के साथ संघर्ष में है?

    केस टाइटल: केरल राज्य बनाम भारत संघ | मूल वाद संख्या 1/2024

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