लखीमपुर खीरी मामला: क्या आशीष मिश्रा ने गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास किया- सुप्रीम कोर्ट ने UP Police से पूछा

Amir Ahmad

20 Jan 2025 12:39 PM IST

  • लखीमपुर खीरी मामला: क्या आशीष मिश्रा ने गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास किया- सुप्रीम कोर्ट ने UP Police से पूछा

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (20 जनवरी) को लखीमपुर (उत्तर प्रदेश) के पुलिस अधीक्षक को लखीमपुर-खीरी हत्याकांड मामले में आशीष मिश्रा द्वारा गवाहों को प्रभावित करने के प्रयास के आरोपों पर फैक्ट-फाइंडिंग जांच करने को कहा।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने मृतक के परिवार के सदस्यों द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया, जिसमें आशीष मिश्रा को दी गई जमानत को रद्द करने की मांग की गई। यह आरोप लगाया गया कि वह मामले में गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे थे।

    एसपी को चार सप्ताह के भीतर अदालत को रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया।

    आवेदकों की ओर से एडवोकेट प्रशांत भूषण पेश हुए।

    वहीं मिश्रा की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने आरोपों का खंडन किया और कहा कि आवेदन प्रचार उन्मुख था। उन्होंने जोर देकर कहा कि संबंधित दिन मिश्रा लोकसभा सचिवालय में थे और आरोपों के गलत होने का इससे बड़ा सबूत नहीं हो सकता।

    जब दवे ने आरोप लगाया कि आवेदकों ने मिश्रा के खिलाफ बार-बार ऐसे आरोप लगाने की आदत बना ली है तो भूषण ने मिश्रा की जमानत रद्द करने की मांग वाली याचिका के माध्यम से अदालत का ध्यान खींचा, जिसमें कहा गया कि प्रभावित किए जाने वाले गवाहों की पहचान प्रतिशोध के डर से उजागर नहीं की जा सकती।

    वकील ने अदालत से रिकॉर्डिंग दाखिल करने के लिए समय मांगा, जिससे यह दिखाया जा सके कि गवाह को गवाही न देने के बदले में इनाम देने का वादा किया गया।

    इस बिंदु पर जस्टिस कांत ने टिप्पणी की कि ऐसे परिदृश्य में यह पता लगाने के लिए समानांतर जांच की आवश्यकता हो सकती है कि क्या प्रभावित करने का प्रयास करने वाला व्यक्ति मिश्रा का सहयोगी है या किसी और द्वारा लगाया गया।

    न्यायाधीश ने विचार व्यक्त किया कि पुलिस आयुक्त को आरोपों की जांच करने के लिए कहा जा सकता है।

    आदेश में कहा गया,

    "हमारे विचार में ऐसी सामग्री की सत्यता, वास्तविकता और विश्वसनीयता की जांच पुलिस प्रशासन द्वारा की जा सकती है, जो लगाए गए आरोपों पर रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।"

    यह मामला अक्टूबर, 2021 में लखीमपुर खीरी में पांच लोगों की हत्या से जुड़ा है, जब आशीष मिश्रा के काफिले के वाहनों ने कथित तौर पर कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों के एक समूह को कुचल दिया था।

    इस मामले ने राजनीतिक विवाद को जन्म दिया, क्योंकि मिश्रा के पिता अजय कुमार मिश्रा उस समय केंद्रीय मंत्री थे।

    सुप्रीम कोर्ट ने घटना का स्वत: संज्ञान लिया और आशीष मिश्रा को गिरफ्तार करने में विफल रहने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस की आलोचना की। बाद में कोर्ट की आलोचना के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 10 फरवरी, 2022 को मिश्रा को जमानत दे दी थी लेकिन अप्रैल 2022 में तत्कालीन सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इसे खारिज कर दिया, क्योंकि कोर्ट ने अप्रासंगिक विचारों को ध्यान में रखा और प्रासंगिक कारकों को नजरअंदाज किया।

    इसके बाद जमानत अर्जी को हाईकोर्ट में वापस भेज दिया गया। सुप्रीम कोर्ट का आदेश घटना में मारे गए किसानों के रिश्तेदारों द्वारा दायर अपील पर आया।

    मामले की दोबारा सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने जमानत अर्जी खारिज कर दी।

    जनवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने मिश्रा को 8 सप्ताह के लिए अंतरिम जमानत दी, जिसे समय-समय पर बढ़ाया गया। यह आदेश कई शर्तों के साथ आया था। अंतरिम जमानत आदेश को बाद में निरपेक्ष बना दिया गया।

    कोर्ट ने मिश्रा को दिल्ली या लखनऊ, यूपी में रहने की अनुमति दी। उन्हें 2023 के आदेश में लगाए गए अन्य नियमों और शर्तों का पालन करने के लिए भी कहा गया।

    केस टाइटल: आशीष मिश्रा उर्फ मोनू बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एसएलपी (सीआरएल) संख्या 7857/2022

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