BREAKING | NCLAT सदस्य पर हाईकोर्ट जज द्वारा निर्णय प्रभावित करने के प्रयास का सनसनीखेज खुलासा, सुप्रीम कोर्ट ने मामला प्रशासनिक पक्ष में भेजा
Amir Ahmad
14 Nov 2025 3:25 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस गंभीर रिट याचिका को अपने प्रशासनिक पक्ष में निपटाने का निर्णय लिया, जिसमें NCLAT के न्यायिक सदस्य जस्टिस शरद कुमार शर्मा द्वारा किए गए उस अभूतपूर्व खुलासे की जांच की मांग की गई, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें उच्च न्यायपालिका के अत्यंत सम्मानित सदस्य ने लंबित दिवाला अपील में अनुकूल आदेश देने के लिए संदेश भेजा था।
जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि इस याचिका को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) के समक्ष विचारार्थ प्रतिनिधित्व के रूप में भेजा जाए। साथ ही वह दिवाला याचिका जिसमें यह खुलासा हुआ था, उसे NCLAT की चेन्नई पीठ से दिल्ली स्थित प्रधान पीठ में ट्रांसफर करने का भी आदेश दिया गया।
खंडपीठ ने कहा कि अन्य मुद्दे अत्यंत संवेदनशील और महत्त्वपूर्ण हैं और प्रशासनिक स्तर पर ही अधिक प्रभावी ढंग से निपटाए जा सकते हैं। इसी टिप्पणी के साथ पीठ ने याचिका का निपटारा कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह याचिका ए.एस. मेट कॉर्प प्राइवेट लिमिटेड ने दायर की थी, जो NCLAT की कार्यवाही में एक पक्ष था। मामला KLSR Infratech Ltd से जुड़े दिवाला विवाद का है।
13 अगस्त, 2025 को सुनवाई के दौरान जस्टिस शरद कुमार शर्मा ने ओपन कोर्ट में कहा था कि उन्हें उच्च न्यायपालिका के सीनियर सदस्य की ओर से संदेश मिला, जिसमें एक पक्ष के पक्ष में आदेश देने का दबाव डाला गया। उन्होंने फोन में आए संदेश एक वकील को दिखाए और तत्क्षण स्वयं को मामले से अलग कर लिया।
उसी दिन अपलोड हुए आदेश में उन्होंने लिखा कि उन्हें उच्च न्यायपालिका के अत्यंत आदरणीय सदस्य ने संपर्क किया लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया कि यह प्रयास किस पक्ष के लिए किया गया। याचिकाकर्ता का कहना है कि यही अस्पष्टता जांच आवश्यक बनाती है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए एडवोकेट प्रशांत भूषण ने बताया कि उनकी जानकारी के अनुसार संदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की ओर से आया था। भूषण ने कहा कि विस्तृत जांच की आवश्यकता भी नहीं पड़ सकती, क्योंकि NCLAT सदस्य ने मोबाइल संदेश सुरक्षित रखे हैं।
याचिका में कहा गया कि यह घटना भ्रष्टाचार निरोधक कानून और दंड प्रावधानों के तहत संज्ञेय अपराध बनाती है। ललिता कुमारी और वीरास्वामी फैसलों का हवाला देते हुए कहा गया कि न्यायिक भ्रष्टाचार के मामलों में आंतरिक जांच पर्याप्त नहीं होती और स्वतंत्र आपराधिक जांच अनिवार्य है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि वह चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से अनुमति नहीं मांग सकता, क्योंकि उसे उस जज की पहचान ही नहीं पता जिन्होंने कथित तौर पर संदेश भेजा।
याचिका में 13 अगस्त की कार्यवाही के वीडियो और ऑडियो रिकॉर्डिंग की मांग भी की गई, जिसे NCLAT रजिस्ट्री ने नियमों की कमी के आधार पर देने से इनकार कर दिया।
याचिका के अनुसार कुछ मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया कि सुप्रीम कोर्ट के महासचिव से आंतरिक जांच कराई जा रही है, लेकिन इसका कोई सार्वजनिक आदेश उपलब्ध नहीं है। ऐसे में प्रक्रिया न तो पारदर्शी है न सहभागितापूर्ण।
याचिका में मांग की गई-
* FIR दर्ज हो।
* इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य सुरक्षित कर कोर्ट में प्रस्तुत किए जाएं।
* सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज की निगरानी में जांच हो।
* KLSR Infratech का प्रबंधन जांच पूरी होने तक तटस्थ रूप से अंतरिम समाधान पेशेवर के हाथ में बना रहे।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की संवेदनशीलता और न्यायिक गरिमा पर इसके प्रभाव को देखते हुए कहा कि इस पर चीफ जस्टिस प्रशासनिक स्तर पर उचित कदम उठाएंगे।
याचिका को औपचारिक प्रतिनिधित्व का रूप देकर भेज दिया गया और संबंधित दिवाला मामला दिल्ली ट्रांसफर कर दिया गया।

