सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर CBI/EDको नोटिस जारी किया

Amir Ahmad

16 July 2024 7:33 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर CBI/EDको नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने कथित शराब नीति घोटाले में दर्ज धन शोधन और भ्रष्टाचार के मामलों में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर नोटिस जारी किया।

    जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस संजय करोलर जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने एडवोकेट विवेक जैन (सिसोदिया की ओर से पेश) की दलील सुनने के बाद यह आदेश पारित किया, जिन्होंने तर्क दिया कि सिसोदिया 16 महीने से हिरासत में हैं और मुकदमा उसी चरण में है, जिस चरण में यह अक्टूबर, 2023 में था, जब उन्हें मुकदमे की प्रगति नहीं होने पर वापस आने की स्वतंत्रता दी गई थी।

    मामले को 29 जुलाई को सूचीबद्ध किया गया।

    संक्षेप में, 4 जून को सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल द्वारा दिए गए आश्वासन को रिकॉर्ड में लेने के बाद सिसोदिया की पिछली जमानत याचिका का निपटारा किया था कि शराब नीति मामले में आरोपपत्र/अभियोजन शिकायत 3 जुलाई, 2024 को या उससे पहले दायर की जाएगी। साथ ही कोर्ट ने सिसोदिया को अंतिम शिकायत/आरोपपत्र दायर होने के बाद जमानत के लिए अपनी प्रार्थना को फिर से शुरू करने की स्वतंत्रता दी।

    8 जुलाई को सीनियर एडवोकेट डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) के समक्ष तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए सिसोदिया के आवेदन का उल्लेख किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि सिसोदिया 16 महीने से जेल में हैं और मुकदमा समाप्त होना चाहिए।

    इसके बाद मामले को 11 जुलाई को जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संजय कुमार की तीन-जजों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया। हालांकि जस्टिस संजय कुमार द्वारा मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लेने के कारण मामला स्थगित हो गया।

    वर्तमान मामले का विवरण

    सिसोदिया ने 21 मई के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके तहत उनकी दूसरी जमानत याचिका खारिज कर दी गई। वह कथित शराब नीति घोटाले के संबंध में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दर्ज मामलों में जमानत मांग रहे हैं। उन्हें पिछले साल 26 फरवरी और 9 मार्च को क्रमशः CBI और ED ने पहली बार गिरफ्तार किया था।

    आक्षेपित आदेश का विवरण

    जमानत से इनकार करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि सिसोदिया के मामले में सत्ता का गंभीर दुरुपयोग और विश्वास का उल्लंघन दर्शाया गया। इसने देखा कि मामले में एकत्र की गई सामग्री से पता चलता है कि सिसोदिया ने अपने लक्ष्य के अनुरूप जनता की प्रतिक्रिया को गढ़कर आबकारी नीति बनाने की प्रक्रिया को बाधित किया।

    न्यायालय ने कहा,

    “इस न्यायालय की राय में यह भ्रामक कृत्य एक भ्रम पैदा करने के लिए सुनियोजित कदम था कि आबकारी नीति जनता से प्राप्त प्रतिक्रिया पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद बनाई गई। वास्तव में विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट की अवहेलना करते हुए कुछ व्यक्तियों को रिश्वत के बदले में समृद्ध करने के लिए आबकारी नीति तैयार करने के आवेदक के पूर्वनिर्धारित निर्णय को सही ठहराने के लिए फीडबैक तैयार किया गया।”

    जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने यह भी देखा कि सिसोदिया ने CBI मामले में जमानत के लिए ट्रिपल टेस्ट पास नहीं किया। यह स्वीकार किया गया कि वह अपने द्वारा इस्तेमाल किए गए दो फोन पेश करने में विफल रहे और दावा किया कि वे क्षतिग्रस्त हो गए। न्यायालय ने कहा कि सिसोदिया द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। अपने दृष्टिकोण को पुष्ट करते हुए न्यायालय ने यह भी कहा कि सिसोदिया एक शक्तिशाली व्यक्ति थे, उनके पास 18 मंत्रालयों की जिम्मेदारी थी और वे प्रभावशाली हैं।

    न्यायालय ने इस संदर्भ में दर्ज किया,

    "ये सीनियर अधिकारी जिनमें से कुछ ने उनके खिलाफ बयान दिए हैं, यदि उन्हें जमानत पर रिहा किया जाता है तो प्रभावित हो सकते हैं। आवेदक आम आदमी पार्टी का सीनियर नेता भी है। इस प्रकार, वह दिल्ली की सत्ता के गलियारों में प्रभावशाली व्यक्ति हैं।"

    PMLA मामले के संबंध में अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष सिसोदिया के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का प्रथम दृष्टया मामला बनाने में सक्षम था। हालांकि, सिसोदिया को हर हफ्ते अपनी पत्नी से मिलने की अनुमति होगी और उन्हें ऐसा करने की अनुमति देने वाला ट्रायल कोर्ट का आदेश जारी रहेगा।

    केस टाइटल- मनीष सिसोदिया बनाम प्रवर्तन निदेशालय

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