गवाह के बयान का खंडन करने के लिए इस्तेमाल किए गए धारा 161 CrPC के हिस्से को जांच अधिकारी के माध्यम से साबित किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
Amir Ahmad
14 Feb 2025 6:56 AM

यह देखते हुए कि ट्रायल कोर्ट अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों का उनके पहले से दर्ज धारा 161 CrPC के बयानों के साथ खंडन करने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन करने में विफल रहा सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (13 फरवरी) को एक व्यक्ति की धारा 302 IPC के तहत दोषसिद्धि खारिज की।
जस्टिस अभय एस ओक और उज्जल भुयान की खंडपीठ ने माना कि ट्रायल कोर्ट ने गवाह के धारा 161 CrPC के बयानों के विरोधाभासी हिस्सों को जांच अधिकारी के माध्यम से ठीक से साबित किए बिना कोष्ठक में पुन: प्रस्तुत करके गलती की।
सही प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जब किसी गवाह से उसके धारा 161 CrPC के बयानों का उपयोग करके क्रॉस एग्जामिनेशन की जाती है तो विरोधाभास के लिए इस्तेमाल किए गए विशिष्ट हिस्से को पहले जांच अधिकारी के माध्यम से साक्ष्य के रूप में औपचारिक रूप से पेश किया जाना चाहिए। उसके बाद ही उस पर विचार किया जा सकता है।
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि धारा 161 के पिछले बयान के अंशों पर तभी विरोधाभास माना जाएगा जब उन्हें जांच अधिकारी के माध्यम से साबित किया जाएगा।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
“हमें ट्रायल कोर्ट द्वारा अपनाई गई अनोखी प्रथा का उल्लेख करना चाहिए। पीडब्लू-1 और पीडब्लू-3 को CrPC की धारा 161 के तहत दर्ज किए गए उनके बयानों के साथ क्रॉस एग्जामिनेशन में आमने-सामने रखा गया था। बयानों में यह उल्लेख किया गया कि गवाह का ध्यान पिछले बयान के एक विशेष हिस्से की ओर आकर्षित किया गया। गवाह के जवाब को रिकॉर्ड करने के बाद गवाह का खंडन करने के लिए इस्तेमाल किए गए पिछले बयान के हिस्से को कोष्ठक में पुन: प्रस्तुत किया गया। कानून अच्छी तरह से स्थापित है। गवाह का खंडन करने के लिए गवाह को दिखाए गए पिछले बयान के हिस्से को जांच अधिकारी के माध्यम से साबित किया जाना चाहिए। जब तक विरोधाभास के लिए इस्तेमाल किए गए पिछले बयान के उक्त हिस्से को विधिवत साबित नहीं किया जाता है, तब तक इसे गवाहों के बयान में पुन: प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। सही प्रक्रिया यह है कि ट्रायल जज को गवाह का खंडन करने के लिए इस्तेमाल किए गए पिछले बयानों के हिस्सों को चिह्नित करना चाहिए। उक्त अंशों को कोष्ठक में रखा जा सकता है तथा उन्हें AA, BB आदि के रूप में चिह्नित किया जा सकता है। चिह्नित अंश तब तक बयान का हिस्सा नहीं बन सकते जब तक कि उन्हें साबित न कर दिया जाए।”
विवादित निर्णयों को रद्द किया जाता है तथा उन्हें अलग रखा जाता है। अपीलकर्ता को उसके विरुद्ध लगाए गए अपराधों से बरी किया जाता है।
केस टाइटल: विनोद कुमार बनाम राज्य (दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार)