वकील से वादी द्वारा दिए गए पावर ऑफ अटॉर्नी की सत्यता वेरीफाई करने की अपेक्षा नहीं की जाती : सुप्रीम कोर्ट

Amir Ahmad

1 March 2025 9:40 AM

  • वकील से वादी द्वारा दिए गए पावर ऑफ अटॉर्नी की सत्यता वेरीफाई करने की अपेक्षा नहीं की जाती : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी वकील को केवल उस पावर ऑफ अटॉर्नी की सत्यता वेरीफाई न करने के लिए आपराधिक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता, जिसे वादी द्वारा केस दायर करने के लिए सौंपा गया।

    कोर्ट ने कहा कि सामान्य तौर पर किसी वकील से पावर ऑफ अटॉर्नी की सत्यता सत्यापित करने की अपेक्षा नहीं की जाती।

    धोखाधड़ी, जालसाजी आदि से संबंधित अपराधों के लिए वकील को आपराधिक मामले से मुक्त करते हुए जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ ने टिप्पणी की,

    "जब कोई वादी दूसरों का पावर ऑफ अटॉर्नी धारक होने का दावा करते हुए बार के सदस्य के पास जाता है और उसे मूल पावर ऑफ अटॉर्नी दिखाता है और उसे केस दायर करने के लिए नियुक्त करता है, तो वकील से पावर ऑफ अटॉर्नी की सत्यता वेरीफाई करने की अपेक्षा नहीं की जाती।"

    अपीलकर्ता जो एक वकील है, उसने भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 406, 420, 465, 467, 468, 471, 474, 166, 167, 193, 196, 199, 201, 203, 255, 260, 261, 262 और 120बी के तहत दंडनीय अपराधों से संबंधित आपराधिक मुकदमे में आरोपमुक्ति की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    यह आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ता द्वारा एक अन्य आरोपी की ओर से फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर किरायेदारी का मामला दायर किया गया। न्यायालय ने पाया कि वकालतनामा पर पावर ऑफ अटॉर्नी धारक द्वारा हस्ताक्षर किए गए और याचिका पर उसके द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे और उसका सत्यापन किया गया।

    न्यायालय ने अपीलकर्ता को आरोप मुक्त करते हुए कहा,

    "आरोप-पत्र में दिए गए कथनों को सही मानते हुए हम पाते हैं कि अपीलकर्ता के विरुद्ध कार्यवाही करने तथा उसके विरुद्ध आरोप तय करने के लिए कोई मामला नहीं बनाया गया।"

    न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसने अन्य आरोपियों के विरुद्ध आरोपों पर विचार नहीं किया।

    केस टाइटल: इस्माइलभाई हातुभाई पटेल बनाम गुजरात राज्य

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